दुमका: भारत के शिक्षक डॉ सपन ने नैतिकता, सामाजिक दायित्व, पर्यावरण मित्र के साथ भारतीय शिक्षा पद्धति से विश्व के शिक्षकों को कराया अवगत
बासुकीनाथ: जापान एवं जर्मनी द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय शिक्षाविदों के संगोष्ठी में भारत के झारखंड के दुमका जिला के शिक्षक डॉ सपन कुमार शामिल हुए। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में प्राचीन एवं आधुनिक शिक्षा पर हो रहे बदलाव पर विश्व के 10 देशों के शिक्षाविदों ने अपना विचार प्रकट किया।
भारत के इनोवेटिव (नवाचारी ) शिक्षक डॉ सपन कुमार ने भारत में शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे बदलाव, आधुनिक एवं प्राचीन शिक्षा पद्धति के बारे में विस्तार से अपने विचारों को साझा किया। डॉ सपन कुमार ने कहा कि वैश्विक स्तर पर हर क्षेत्र में नित्य बदलाव देखा जा रहा है। शिक्षा का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। सामाजिक मूल्यों, नैतिकता, पर्यावरण संरक्षण के साथ में सामाजिक दायित्वों को ध्यान में रखते हुए शिक्षा को जन-जन तक सरल तरीके से पहुंचना ही वर्तमान समय में अत्यंत आवश्यक है। विश्व के सुदूर क्षेत्र के गरीब घर के बच्चों को सरल एवं सुलभ तरीके से शिक्षा प्राप्त हो इसके लिए विश्व के सभी शिक्षाविदों को एक साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
डॉ. सपन कुमार ने नई शिक्षा नीति के साथ भारतीय प्राचीन शिक्षा पद्धति के बारे में बताने के साथ उनके द्वारा प्रकृति से जुड़कर सुदूर आदिवासी क्षेत्र में किए जा रहे हैं नवाचारों के बारे में भी विस्तार से बताया गया। शिक्षा के क्षेत्र में कठिन समय कोरोना काल में ब्लैकबोर्ड मॉडल ,शिक्षा के नए नवाचारों इलेक्ट्रिक पॉल मॉडल, एडल्ट एजुकेशन, शून्य निवेश नवाचार एवं पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए पशु पक्षियों के लिए दाना पानी अभियान, प्रकृति में मौजूद संसाधन से सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में किए जा रहे नवाचारों के बारे में डॉ. सपन ने बताया।
विदित हो कि कोरोना काल में अडॉ. सपन कुमार ने नई शिक्षा नीति के साथ भारतीय प्राचीन शिक्षा पद्धति के बारे में बताने के साथ उनके द्वारा प्रकृति से जुड़कर सुदूर आदिवासी क्षेत्र में किए जा रहे हैं नवाचारों के बारे में भी विस्तार से बताया गया। शिक्षा के क्षेत्र में कठिन समय कोरोना काल में ब्लैकबोर्ड मॉडल ,शिक्षा के नए नवाचारों इलेक्ट्रिक पॉल मॉडल, एडल्ट एजुकेशन, शून्य निवेश नवाचार एवं पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए पशु पक्षियों के लिए दाना पानी अभियान, प्रकृति में मौजूद संसाधन से सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में किए जा रहे नवाचारों के बारे में डॉ. सपन ने बताया।नोखा ब्लैकबोर्ड मॉडल के जन्मदाता शिक्षक डॉ. सपन पत्रलेख के नवाचार को भारत सहित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिक्षाविदों के साथ कई मंचो पर सराहना मिल चुकी है। जापान के शिक्षाविद प्रोफेसर कीमा सुजीनो ने जापान के में किए जा रहे शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव के बारे में बताया। वहीं जर्मनी के बेंजामिन ने जर्मनी में शिक्षा के क्षेत्र में किया जा रहे हैं कार्यों के बारे में विस्तार से बताया। विश्व के शिक्षाविदों ने भारतीय शिक्षा पद्धति की सभी ने सराहना की। सभी शिक्षाविदों ने विश्व स्तर पर कठिन क्षेत्र में रहने वाले सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले गरीब घर के बच्चों तक सरल एवं सहज रूप से शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए अपनाए जा रहे नवाचारों को विश्व स्तर पर अपनाने की सहमति जताई एवं सभी ने मिलकर एक साथ कार्य करने की बात दोहराई है। जर्मनी साइप्रस एवं जापान के शिक्षाविदों ने जल्द ही भारत भ्रमण कर भारतीय शिक्षा पद्धति पर अध्ययन करने की बात दोहराई है। झारखंड के शिक्षक डॉ सपन ने इस वेबीनार के बाद बताया कि यह उनके लिए अविश्वरणीय पल है। विश्व के शिक्षाविदों के साथ मंच साझा करना एवं अपने विचारों को जर्मनी, जापान, इंग्लैंड जैसे विकसित देशों के शिक्षाविदों के साथ अपनी बातों को साझा करना उनके लिए अकल्पनीय क्षण है। ऑनलाइन बेबीनार के माध्यम से यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चतुर्थ शिक्षाविदों का संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
जापान के ओसाका यूनिवर्सिटी एवं जर्मनी के यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित इस बेविनार मे जापान, जर्मनी, इंडोनेसिया, भारत, मलेशिया, इंग्लैंड, साइप्रस, अर्जेटिना, कोलम्बिया, अफ्रीका, आदि देशों के शिक्षाविद शामिल हुए।
रिपोर्ट- शोभाराम पंडा