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रोजगार: मातृभाषा में खुलती शिक्षा की की नई नई राहें

हाल के कुछ वर्षों में बेरोजगारी एक बड़ा मुच बनकर उभरा है। इसी की ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार देश की शीर्ष 500 कंपनियों में एक करोड़ युवाओं के लिए विशेष इंटर्नशिप योजना शुरू करने जा रही है। इस इंटर्नशिप योजना में अभ्यर्थी को हर महीने पांच हजार रुपये का भत्ता मिलने के साथ साथ कारोबार के वास्तविक माहौल को जानने और अलग-अलग पेशे की चुनौतियों से रूबरू होने का अवसर मिलेगा। इससे देश में रोजगार और कौशल विकास क्षेत्र को एक बड़ा प्रोत्साहन मिलेगा। इसके अलावा, केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए अनुदान में चार हजार करोड़ रुपये से अधिक की वृद्धि करके वित्त वर्ष 2024-25 के लिए 15,928 करोड़ रुपये आवंटित करना स्वागतयोग्य कदम है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के बजट में सरकार ने नौ प्रतिशत वृद्धि की है। पिछले वित्त वर्ष के 17,473 करोड़ रुपये की तुलना में बढ़कर यह 19,024 करोड़ रुपये हो गया है। यूजीसी नई शिक्षा नीति के तहत देश में उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठा रहा है। हाल ही में शुरू हुई अस्मिता परियोजना क्षेत्रीय भाषाओं शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु एक मुख्य पहल है। उम्मीद है कि इस पहल से उच्च शिक्षा के भीतर विभिन्न विषयों में भारतीय भाषाओं में अनुवाद एवं मौलिक पुस्तक लेखन के लिए एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र बनाने तथा भारत की भाषा परंपराओं को संरक्षित एवं उसे बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। साथ ही यह पहल 22 अनुसूचित भाषाओं में शैक्षणिक संसाधनों का एक व्यापक पूल बनाने, भाषाई विभाजन की पाटने, सामाजिक सामंजस्य और एकता को बढ़ावा देने तथा हमारे युवाओं की सामाजिक रूप से जिम्मेदार वैश्विक नागरिकों में बदलने में भी मदद करेगी।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यदि देखें, तो तथ्य यह है कि बिना स्थानीय और मातृभाषा के उच्च शिक्षा के स्तर की मजबूती देना संभव नहीं होग। यही कारण है कि यूजीसी ने विश्वविद्यालयों सहित देश के सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में स्थानीय अथवा मातृभाषा में पाठ्यक्रम शुरू करने के निर्देश दिए हैं। इसके अलावा, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद यानी एआइसीटीई ने भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी सहित आठ भारतीय भाषाओं में भी कराए जाने की पहल की है।
बौद्धिक विकास हमारे देश में उच्च अध्ययन-अध्यापन मुख्य रूप से विदेशी भाषाओं में होता रहा है, जबकि भारतीय भाषाओं की इस क्षेत्र में इतना महत्त्व कभी भी नहीं मिला। हालांकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 ने प्राथमिक और उच्च शिक्षा स्तरों पर शिक्षा के लिए क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग पर बल दिया है। विभिन्न अध्ययनों से लगातार पुष्टि हुई है कि बच्चों को अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने से उनका न केवल बौद्धिक विकास होता है, बल्कि उनके विचार करने और चिंतन करने की क्षमता में बढ़ोतरी होती है। जो छात्र अपनी मातृभाषा या घर में प्रचलित भाषा में शिक्ष प्राप्त करते हैं, वे स्कूल में उन छात्रों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करते हैं जिन्हें विदेशी या अपरिचित भाषा में शिक्षण प्रदान किया जाता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वे पाठ्यक्रम सामग्री तक अधिक आसानी और आत्मविश्वास से पहुंच सकते हैं तथा अपने कौशल एवं ज्ञान को अन्य भाषाओं में स्थानांतरित कर सकते हैं शोध आधारित सक्ष्य बताते हैं कि बच्चें की प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए। इससे उनकी संखने की क्षमता कई गुना बढ़ जाती है। जब हम मातृभाषा में चीजों की संखते हैं तो वे हमारे लिए प्राथमिक होती हैं, क्योंकि इसके लिए हमारे मस्तिष्क को अनुवाद की प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ता। इसके विपरीत जब हम मातृभाषा के अतिरिक्त अपनी द्वितीयक या तृतीयक भाषा में विचारों को ग्रहण करते हैं, तो पहले उसे अपनी मातृभाषा में बदलते हैं, फिर उसे ग्रहण करते हैं। यही कारण है कि मातृभाषा में मस्तिष्क की ग्राह्यता सर्वाधिक होती है।
चौंकाने वाली बात यह है कि वैश्विक आबादी के 40 प्रतिशत हिस्से को उनकी मातृभाषा से अलग किसी अन्य भाषा में पढ़ाया जाता है ऐसा होने पर बच्चों की सीखने की गति कम हो जाती है और सामाजिक असमानताएं पैदा होती हैं। शिक्षा के प्राथमिक माध्यम के रूप में मातृभाषा शुरूआत करने और बाद में अंग्रेजी को शामिल करने से अंग्रेजी सीखना आसान हो जाता है। बाद में किसी अन्य भाषा का ज्ञान लिया जा
सकता है, लेकिन प्रारंभिक वर्षों के दौरान मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनए जाने के फलस्वरूप जी कौशल विकसित होता है, वह अमूल्य साबित होता है। पहली भाषा कौशल जितनी अधिक विकसित होगी, दूसरी भाषा में परिणाम उतने ही बेहतर होंगे।
आत्मविश्वास की वृद्धि मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने से विद्यार्थियों में आत्मविश्वास की वृद्धि होता है। वे अपनी भाषा में प्रश्न पूछने चर्चा करने और विचार व्यक्त करने में सहज महसूस करते हैं, जिससे उनकी शैक्षिक और व्यक्तिगत विकास में मदद मिलती है। मातृभाषा में शिक्षा का एक प्रमुख लाभ यह है कि यह स्थानीय संस्कृति, परंपराओं और धरोहर को संरक्षित रखती है। इसके माध्यम से विद्यार्थी अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखते हैं। मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने से विद्यार्थी स्थानीय समस्याओं और जरूरतों को बेहतर समझ सकते हैं। इससे वे समाज के विकास और सुधार में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं। इसके अलावा, मातृभाषा में दक्षता होने के कारण वे स्थानीय बाजार में रोजगार के बेहतर अवसर प्राप्त कर सकते हैं।
वर्तमान में देश इस समस्या से जूझ रहा है कि प्रारंभिक कक्षाओं में सीखना- सिखाना बेहतर नहीं हो पा रहा है। शिक्षा जगत नई योजनाएं व रणनीतियां तो बनता है, लेकिन समस्या के समाधान के बजाय वे अधिक गाढ़ी हो जाती हैं। समस्या की वजह में बच्चे व शिक्षक गिनाए जाते हैं, लेकिन लंबे समय तक असली समस्या की अनदेखी होती रही। चूंकि मातृभाषा या घरेलू भाषा में ही बच्चों की भाषाई क्षमता का विकास होता है, उसे तजकर दूसरी या तीसरी भाषा पर छलांग लगाकर अपेक्षित सीखना समझना नहीं हो पाता। अच्छी बात नई शिक्ष नीति के आने के बाद मातृभाषा को टीचिंग-लर्निंग की भाषा के रूप में स्वीकार किया जाने लगा है। शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति में मातृभाषा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मातृभाषा में पढ़ते हुए विद्यार्थियों को कमतर नहीं आंकना चाहिए। तकनीकी शिक्ष भी मातृभाषा में देनी चाहिए। मातृभाषा का विस्तार इंटरनेट की भाषा के रूप में होनी चाहिए। मातृभाषा को सभी विद्यार्थी लर्निंग की भाषा के रूप में स्वीकार करें, इसके लिए मातृभाषा में रोजगार के अवसर भी सृजित होने चाहिए। उच्च शिक्षा में मातृभाषा को लेकर राष्ट्रीय नीतियों को ऐसे सूक्ष्म और स्थूल वातावरण का निर्माण करना चाहिए, जो किस प्रकार की सहायता पर निर्भरता के बजाय सशक्तीकरण के माध्यम से युवाओं के लिए बेहतर शिक्षा और जीवन स्थितियों के अनुकूल हो । विभिन्न देशों ने अंग्रेजी के स्थान पर अपनी मातृभाषा में शिक्ष प्रदान करने में सफलता हासिल की है और उन देश से विश्व स्तर के विज्ञानी, शोधकर्ता, तकनीशियन और विचारक अपनी प्रसिद्धि बिखेर रहे हैं। भाषा की बाधा तब तक है, जब तक संबंधित भाषा में उचित प्रोत्साहन का अभाव है। सरकार को क्षेत्रीय भाषाओं में मूल वैज्ञानिक लेखन और पुस्तकों के प्रकाशन को प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि लोगें में स्थानिक भाषाओं को लेकर जागरूकता और जिज्ञासा बढ़े।

लेखक विजय गर्ग, सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य, शैक्षिक स्तंभकार, मलोट (पंजाब) हैं