राष्ट्रीय

‘विजयी विश्व तिरंगा प्यारा….’ गीत के रचियता श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’ की पुण्यतिथि आज

श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक सेनानी, पत्रकार, समाजसेवी एवं अध्यापक थे। वे भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान उत्प्रेरक झण्डा गीत ‘विजयी विश्व तिरंगा प्यारा’ के रचयिता थे। आज ही के दिन 10 अगस्त, 1977 को उनकी मृत्यु हुई थी।

उनका जन्म 16 सितम्बर, 1893 को कानपुर ज़िले के नरवल कस्बे में साधारण व्यवसायी विश्वेश्वर गुप्त के घर पर हुआ था। ये अपने पांच भाइयों में सबसे छोटे थे। इन्होंने मिडिल की परीक्षा के बाद विशारद की उपाधि हासिल की। जिसके पश्चात् ज़िला परिषद तथा नगरपालिका में अध्यापक की नौकरी प्रारंभ की परन्तु दोनों जगहों पर तीन साल का अनुबंध भरने की नौबत आने पर नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। वर्ष 1921 में गणेश शंकर विद्यार्थी के संपर्क में आये तथा राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन में सहभागिता की। आपने एक व्यंग्य रचना लिखी जिसके लिये तत्कालीन अंग्रेज़ी सरकार ने आपके उपर 500 रुपये का जुर्माना लगाया। आपने वर्ष 1924 में झंडागान की रचना की जिसे 1925 में कानपुर में कांग्रेस के सम्मेलन में पहली बार झंडारोहण के समय इस गीत को सार्वजनिक रूप से सामूहिक रूप से गाया गया। यह झंडागीत इस प्रकार है- विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा उंचा रहे हमारा। सदा शक्ति बरसाने वाला, वीरों को हर्षाने वाला, शांति सुधा सरसाने वाला, मातृभूमि का तन मन सारा, झंडा उंचा रहे हमारा …. जो आज भी हर राष्ट्रीय कार्यक्रमों में सुनने को मिलता है। राजनीतिक कार्यों के अलावा वे सामाजिक कार्यों में भी अग्रणी रहे। उन्होंने दोसर वैश्य इंटर कालेज एवं अनाथालय, बालिका विद्यालय, गणेश सेवाश्रम, गणेश विद्यापीठ, दोसर वैश्य महासभा, वैश्य पत्र समिति आदि की स्थापना एवं संचालन किया। इसके साथ ही स्त्री शिक्षा व दहेज विरोध में आपने सक्रिय योगदान किया। उन्होंने विधवा विवाह को सामाजिक मान्यता दिलाने में सक्रिय योगदान किया। उन्होंने वैश्य पत्रिका का जीवन भर संपादन किया। रामचरितमानस उनका प्रिय ग्रंथ था। वे श्रेष्ठ ‘मानस मर्मज्ञ’ तथा प्रख्यात रामायणी भी थे। रामायण पर उनके प्रवचन की प्रसिद्ध दूर-दूर तक थी। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी को उन्होंने संपूर्ण रामकथा राष्ट्रपति भवन में सुनाई थी। नरवल, कानपुर और फतेहपुर में उन्होंने रामलीला आयोजित की। भारत भूमि से उनका प्रेम आज़ादी के बाद उत्पन्न हुई परिस्थितियों में उन्होंने एक नये गीत की रचना 1972 में की जिसे 12 मार्च को लखनऊ के कात्यायिनी कार्यक्रम में सुनाया : देख गतिविधि देश की मैं, मौन मन से रो रहा हूं, आज चिंतित हो रहा हूं, बोलना जिनको न आता था, वही अब बोलते है, रस नहीं वह देश के, उत्थान में विष घोलते हैं। 1973 में उन्हें ‘पद्म श्री’ से अलंकृत किया गया। उनकी मृत्यु के बाद कानपुर और नरवल में उनके अनेकों स्मारक बने। नरवल में उनके द्वारा स्थापित बालिका विद्यालय का नाम ‘पद्मश्री श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’ राजकीय बालिका इंटर कालेज किया गया। फूलबाग, कानपुर में ‘पद्मश्री’ श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’ पुस्तकालय की स्थापना हुई। 10 अगस्त, 1994 को फूलबाग में उनकी आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई। इसका अनावरण उनके 99वें जन्मदिवस पर किया गया। झंडागीत के रचयिता, ऐसे राष्ट्रकवि को पाकर देश की जनता धन्य है।

लेखक डॉ प्रदीप कुमार सिंह देव विवेकानंद शैक्षणिक, सांस्कृतिक एवं क्रीड़ा संस्थान के केंद्रीय अध्यक्ष हैं