देवघर (शहर परिक्रमा)

जिससे जिसको अलग नही किया जा सकता वही उसका धर्म है: श्रीराम नरसिंहम

देवघर: सेवाधाम, देवघर में चल रहे जीवन विद्या परिचय शिविर के दूसरे दिन का सत्र आज सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर दिव्य पथ संस्थान अमरकंटक की ओर से आए शिक्षाविद श्रीराम नरसिम्हम ( IIT DELHI) ने सत्र में ‘मानव के अध्ययन’ को अस्तित्वमूलक दृष्टिकोण से समझाने का प्रयास किया। ‘जीना क्यों?’ इस महत्वपूर्ण प्रश्न के साथ यह स्पष्ट किया गया कि मानव एक बहुआयामी वास्तविकता है, जो भौतिक, व्यावहारिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक संपन्नता के साथ होता है।

सत्र में बताया गया कि मानव के इन सभी आयामों के होने में उसकी कोई व्यक्तिगत भूमिका नहीं होती, बल्कि यह उसका मौलिक स्वरूप है। इन सभी आयामों में संतुलन और व्यवस्था को पहचानने और तदनुसार जीने से ही समाधान प्राप्त होता है, और यही समाधान मानव का वास्तविक ‘सुख’ है।

यह भी बताया गया कि जिस चीज़ को किसी से अलग नहीं किया जा सकता, वही उसका ‘धर्म’ होता है। इस प्रकार, मानव का धर्म ‘सुख’ है, क्योंकि उसे सुख से अलग नहीं किया जा सकता। परन्तु यह सुख तभी संभव है जब वह समग्र रूप से भौतिक, व्यावहारिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक आयामों में पूर्ण हो।

शिविर में यह भी स्पष्ट किया गया कि प्रकृति में व्यवस्था है, क्योंकि वह नियमबद्ध है। शरीर भी एक व्यवस्था है, क्योंकि यह भी नियमों के अधीन है। इसी प्रकार, मानव-मानव के बीच की व्यवस्था भी नियमों पर आधारित है, और इन्हीं नियमों के अध्ययन से मानवीय व्यवहार को समझा जा सकता है।

मानव स्वयं में भी एक व्यवस्था है, जिसके निश्चित नियम होते हैं। इन नियमों को समझने और उनके अनुसार जीने से ही वह अपने और अन्य मनुष्यों तथा समग्र अस्तित्व के साथ अपने संबंधों को पहचान सकता है।

शिविर के दूसरे दिन भी सभी देश के कई राज्यों एवम देवघर के ढेरों विद्वजनों ने सत्र में सक्रियता और जिज्ञासा के साथ भाग लिया ।