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17 सितम्बर: प्रसिद्ध चित्रकार मक़बूल फ़िदा हुसैन जयंती

मक़बूल फ़िदा हुसैन महाराष्ट्र के प्रसिद्ध चित्रकार जिनका पूरा जीवन चित्रकला को समर्पित था और जिन्हें प्रगतिशाली चित्रकार माना जाता है। मक़बूल फ़िदा हुसैन को कला के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1991 में भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।

मक़बूल फ़िदा हुसैन का जन्म 17 सितम्बर, 1915 को हुआ था। माँ के देहांत के बाद मक़बूल फ़िदा हुसैन का परिवार इंदौर चला गया। मक़बूल फ़िदा हुसैन ने आरंम्भिक शिक्षा इंदौर से ही की थी। 20 साल की उम्र में वे मुंबई पहुंचे, जहाँ जे. जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में उन्होंने पेंटिंग की शिक्षा ली। लंबे समय तक उन्होंने फ़िल्मों के पोस्टर बना कर अपना जीवन गुजारा। 1952 में ज्युरिख में उनकी पहली एकल प्रदर्शनी लगी। उनकी फ़िल्म ‘थ्रू द आइज़ ऑफ़ अ पेंटर’ 1966 में फ्रांस के फ़िल्म समारोह में पुरस्कृत हो चुकी है। उन्होंने रामायण, गीता, महाभारत आदि ग्रंथों में उल्लिखित सूक्ष्म पहलुओं को अपने चित्रों के माध्यम से जीवंत बनाया है। 1998 में उन्होंने हैदराबाद में ‘सिनेमाघर’ नामक संग्रहालय की स्थापना की। क्रिस्टीज़ ऑक्शन में उनकी एक पेंटिंग 20 लाख अमरीकी डॉलर में बिकी. इसके साथ ही वे भारत के सबसे महंगे चित्रकार बन गए। उनकी एक कलाकृति क्रिस्टीज की नीलामी में 20 लाख डॉलर में और ‘बैटल ऑफ गंगा एंड यमुना- महाभारत 12’ वर्ष 2008 में एक नीलामी में 16 लाख डॉलर में बिकी। यह साउथ एशियन मॉडर्न एंड कंटेम्परेरी आर्ट की बिक्री में एक नया रिकॉर्ड था। हालाँकि एमएफ़ हुसैन अपनी चित्रकारी के लिए जाने जाते रहे किन्तु चित्रकार होने के साथ-साथ वे फ़िल्मकार भी रहे। मीनाक्षी, गजगामिनी जैसी फ़िल्में बनाईं। उनका माधुरी दीक्षित प्रेम भी ख़ासा चर्चा में रहा। शोहरत के साथ साथ विवादों ने भी उनका साथ कभी नहीं छोड़ा। गायन की विशेषता, उल्लास या अवसाद को चित्र में व्यक्त नहीं किया जा सकता, लेकिन हुसैन ने यह भी कर दिखाया। एक कार्यक्रम में पंडित भीमसेन जोशी जब अपने गायन का हुनर दिखा रहे थे तो सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में हुसैन ने उनके गायन के साथ कैनवस पर रंगों और रेखाओं से जुगलबंदी करके सबको हैरत में डाल दिया। मुंबई में अपनी कार पर चित्र बनाकर उसका प्रदर्शन करना, शादी के कार्ड, विज़िटिंग कार्ड और बुक कवर डिज़ाइन कर देना, फ़र्नीचर और खिलौने डिज़ाइन करना, अपनी पेंटिंग को साड़ियों पर चित्रित कर देना, सिगरेट की डिब्बी पर तत्काल चित्र बनाकर किसी परिचित को भेंट कर देना, होटल, रेस्टोरेंट या पान के खोखे पर पेंटिंग बना देना, भव्य बिल्डिंगों पर म्यूरल बना देना और युवा कलाकारों की पेंटिंग ख़रीद लेना, ये वे सारे काम थे, जो हुसैन करते रहते थे और उनकी ओर प्रशंसा के फूलों के साथ-साथ आलोचना के पत्थर भी उछलते रहते थे। हुसैन कला सिर्फ कला के लिए वाली अवधारणा को नहीं मानते थे। उनका कहना था, ज़रूरी नहीं कि कलाकार किसी मुद्दे पर आंदोलन करने के लिए सड़कों पर उतरे, लेकिन समाज के प्रति उसकी ज़िम्मेदारी और जवाबदेही तो होती ही है। साथ ही वह कला के लिए ख़ास माहौल जैसी चीज़ अवधारणा को भी नहीं स्वीकर करते थे। उनके मुताबिक़़, अगर किसी भी तरह की सुविधा नहीं है तो कोयले से दीवार या ज़मीन पर भी चित्र बनाया जा सकता है। बीसवीं शताब्दी में दुनिया में पिकासो के बाद सबसे चर्चित कलाकार हुसैन ही रहे। उनका निधन 9 जून 2011 को लंदन में हुआ था।

pradip singh Deo
लेखक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव