निर्भया कांड के बाद….
कल्पना कीजिए कि एक व्यक्ति अपनी राह पर चल रहा है और एक नन्ही चींटी उसके पैरों के नीचे आ जाती है, लेकिन नाक की सीध में चल रहे इंसान को शायद ही जमीन पर चल रही चींटी नजर आती है और वह उसे कुचलता हुआ आराम से आगे निकल जाता है। निरीह चींटी की करुण आवाज या उसका कमजोर विरोध उसे कभी नहीं दिखता है। कारण कि इंसान उस चींटी से कई गुना ज्यादा शक्तिशाली होता है और उसे चींटी से किसी भी तरह के खतरे का डर नहीं होता । ठीक इस दृश्य के विपरीत यही इंसान जब किसी हिंसक जानवर के चंगुल में फंस जाता है तो उसे अपनी जान और खुद को सुरक्षित रखने के लिए किए गए विरोध की कीमत का पता चलता है।
दरअसल, जब कुछ हमारी सहमति के विपरीत हो रहा होता है तो हम अपनी तरफ से उस बात का पुरजोर विरोध करते हैं। किसी बात या घटना का विरोध करना, उसके खिलाफ जाना या उसे रोकने के लिए एक कड़ी लड़ाई लड़ना है, जिसे हर शख्स अपनी ताकत भर जरूर लड़ता है। अपने साथ हो रही किसी भी विपरीत घटना के खिलाफ विरोध करना हर जीव का अधिकार है।
निर्भया दिल्ली में 2012 कांड को शायद ही किसी ने भुलाया होगा। आज इस घटना के बारह वर्ष होने के बाद भी माहौल कुछ खास नहीं बदला है जब देश के अलग-अलग हिस्सों से इसी तरह की हृदय विदारक घटनाएं घटित हो रही हैं। इनके विरोध में जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे हैं, लेकिन क्या विरोध प्रदर्शनों की सीमा केवल जख्मों पर मरहम लगाने तक ही सीमित है या ये प्रभावी भी होते हैं ? निर्भया कांड के बाद दिल्ली सहित देश के बाकी हिस्सों में भी तब खूब विरोध प्रदर्शन हुआ था। लोग मोमबत्ती लेकर सड़कों पर उतरे थे। निर्भया कांड के बाद हुए इन विरोध प्रदर्शनों ने देश में महिलाओं की सुरक्षा और न्यायिक प्रणाली में सुधार की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ दिया था ।
इसने प्रशासन और समाज को यह समझने के लिए मजबूर किया था कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता और इसके लिए त्वरित और सख्त कार्रवाई की जरूरत है। जनता के विरोध प्रदर्शनों के बाद सरकार ने बलात्कार और यौन अपराधों के खिलाफ कानूनों को सख्त बनाने के लिए आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013, को पारित किया, जिसे आमतौर पर निर्भया कानून कहा जाता है। इस कानून के तहत बलात्कार, यौन उत्पीड़न और यौन शोषण के मामलों में सख्त सजा का प्रावधान किया गया, जिसमें मौत की सजा भी शामिल है। इस घटना के बाद 2015 में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम में संशोधन किया गया, जिससे गंभीर अपराधों में शामिल पाए जाने वाले सोलह से अठारह वर्ष के किशोर अपराधियों के लिए भी सख्त सजा का प्रावधान किया गया। निर्भया कांड के बाद ही त्वरित अदालतों की स्थापना भी की गई, ताकि यौन अपराधों से संबंधित मामलों की त्वरित सुनवाई और न्याय सुनिश्चित किया जा सके।
इन सभी साक्ष्यों के बावजूद क्यों बहुत से लोग इस बात पर आश्वस्त हैं कि विरोध प्रदर्शन अप्रभावी होते हैं? इसका एक संभावित कारण यह है कि विरोध के पीछे कई अंतर्निहित उद्देश्य- शोषण, नस्लवाद, पितृसत्ता और लोकतंत्र की खराब गुणवत्ता – प्रणालीगत समस्याएं हैं। विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने वालों को अक्सर संदेह और ऐसे सवाल का सामना करना पड़ता है- ‘इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, तो परेशान क्यों होना ?’
यह सही है कि विरोध प्रदर्शन से समस्या का समाधान पूरी तरह से नहीं हो सकता, लेकिन यह समाज में एक महत्त्वपूर्ण संदेश भेजने और परिवर्तन की दिशा में कदम उठाने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है। विरोध प्रदर्शन काम करते हैं, क्योंकि हम लगातार ऐसे उदाहरण देखते हैं जहां विरोध से फर्क आया है। हमने 2024 में ही देखा है कि फ्रांस के किसानों द्वारा नाकेबंदी और विरोध प्रदर्शन ने सरकार को रियायतें देने के लिए प्रेरित किया है। इसी तरह, भारत में, दिल्ली की ओर बढ़ रहे नए किसान आंदोलन से पहले ही सरकार ने फसलों के लिए बेहतर कीमतों की पेशकश की। बुडापेस्ट में बाल यौन शोषण कांड को लेकर सड़कों पर हुए बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों के कारण कुछ समय पहले इस कांड को संबोधित करने के लिए कानून पेश किया गया। पिछले वर्ष के अंत में पनामा में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों और सड़कों पर नाकेबंदी के कारण वहां की सरकार को दुनिया की सबसे बड़ी तांबे की खदानों में से एक को बंद करना पड़ा। अगर कोलकाता में प्रशिक्षु महिला चिकित्सक के बलात्कार और हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से सीबीआइ से जल्द से जल्द स्थिति रपट मांगना कहीं न कहीं इन प्रदर्शनों की वजह से ही संभव हुआ है ,विरोध प्रदर्शनों का होना इस बात का भी संकेत होता है कि जनता को वर्तमान स्थिति पसंद नहीं है और वह इसके खिलाफ खड़े होने का साहस कर सकती है। कई बार यह पीड़ितों और उनके परिवारों को मानसिक और भावनात्मक रूप से समर्थन प्रदान कर मजबूती से खड़ा होने में मदद करता है। इससे उन्हें न्याय के लिए संघर्ष करने का हौसला मिलता है। यह कई बार देखने को मिला है कि बड़े पैमाने पर होने वाले विरोध प्रदर्शनों से सरकार और प्रशासन पर दबाव बनता है, जिससे वे अधिक कठोर कानूनों का निर्माण कर सकते हैं, अपराधियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई कर सकते हैं और पीड़ितों के लिए न्याय सुनिश्चित कर सकते हैं। इसलिए चाहे छोटी हो या बड़ी, हर गलत बात के लिए विरोध करने का साहस होना चाहिए।
-विजय गर्ग