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29 नवंबर: पुण्यतिथि पर जानें जे. आर. डी. टाटा को

जहाँगीर रतनजी दादाभाई टाटा भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति थे। आधुनिक भारत की बुनियाद रखने वाली औद्योगिक हस्तियों में जे. आर. डी. टाटा का नाम सर्वोपरि है। उनकी मृत्यु आज ही के दिन 29 नवम्बर, 1993 को हुई थी।

जे. आर. डी. टाटा

जे.आर.डी. टाटा ने ही देश की पहली वाणिज्यिक विमान सेवा ‘टाटा एयरलाइंस’ शुरू की थी, जो आगे चलकर भारत की राष्ट्रीय विमान सेवा ‘एयर इंडिया’ बन गई। इस कारण जे. आर. डी. टाटा को भारत के नागरिक उड्डयन का पिता भी कहा जाता है। उनका जन्म 29 जुलाई, 1904 ई. में पेरिस में हुआ था। यह रतनजी दादाभाई टाटा व उनकी फ़्रांसीसी पत्नी सुजैन ब्रियरे की दूसरी संतान थे। उनके पिता भारत के अग्रणी उद्योगपति जमशेदजी टाटा के चचेरे भाई थे। वे मात्र 34 वर्ष की आयु में वे टाटा संस के चेयरमैन बने। दशकों तक उन्होंने विशालकाय टाटा समूह की कंपनियों का मार्गदर्शन किया। उन्होंने अपनी पैतृक कम्पनी के अध्यक्ष पद पर पहुँचने से पहले सबसे नीचे स्तर से काम सम्भालना सीखा। इस प्रकार उन्हें अपने उद्योग के विभिन्न समूहों को समझने का अवसर मिला। इसी जानकारी से वे उद्योग को विभिन्न दिशाओं में बढ़ाने में सफल हुए। वे उसूलों के बेहद पक्के व्यक्ति थे। उन्होंने व्यापार में सफलता के साथ-साथ उच्च नैतिक मानदंडों को भी क़ायम रखा। उनकी अध्यक्षता में टाटा समूह ने नई बुलंदियों को छुआ। उनके काल में टाटा समूह की कंपनियों की संख्या 15 से बढ़कर 100 से ज़्यादा हो गई। साथ ही टाटा समूह की परिसंपत्ति 62 करोड़ से बढ़कर 10 हज़ार करोड़ की हो गई। वे भारत के पहले लाइसेंस प्राप्त पायलट थे। उन्होंने 1932 ई. भारत की पहली विमानन सेवा ‘टाटा एयरलाइंस’ की आधार शिला रखी। यही एयरलाइंस 1946 में ‘एयर इंडिया’ के रूप में भारत की राष्ट्रीय विमान सेवा बनी। उनके नेतृत्व में टाटा ग्रुप का टोटल एसेट 100 मिलियन यूएस डॉलर से बढ़कर 5 बिलियन यूएस डॉलर तक पहुँच गया था। जब उन्होंने टाटा समूह का नेतृत्व संभाला था, तब उनके साथ 14 कंपनियां जुड़ी हुई थीं, लेकिन जब 26 जुलाई, 1988 को उन्होंने पद छोड़ा, तब 95 कंपनियाँ इस समूह का हिस्‍सा बन चुकी थीं। उन्होंने भारतीय उद्योगों का ढांचा खड़ा करने में अपनी अहम भूमिका निभाई। इन दिनों जबकि उद्योगपतियों द्वारा नेताओं और मंत्रियों को रिश्वत देने के चर्चे अक्सर सुनाई देते हैं, जे.आर.डी. टाटा के मूल्य और उनकी नैतिकता बहुत ही प्रासंगिक हो जाते हैं। जे. आर. डी. टाटा अपने नैतिक मूल्य और उच्‍च आदर्श के लिए उद्योग जगत् में मशहूर थे। उन्होंने कभी भी राजनीतिज्ञों को रिश्वत देने या काला बाज़ारी का पक्ष नहीं लिया और वे इससे हमेशा दूर ही रहे।

pradip singh Deo
लेखक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव

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