शिक्षा

भारत में समान शिक्षा की वर्तमान स्थिति

भारत में समान शिक्षा की वर्तमान स्थिति जटिल और विविध है। देश में शिक्षा प्रणाली के विभिन्न पहलुओं को सुधारने और सभी के लिए शिक्षा को सुलभ बनाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन चुनौतियां अब भी बनी हुई हैं।

समान शिक्षा की स्थिति:

1. सरकारी और निजी स्कूलों का अंतर:

सरकारी स्कूलों में शिक्षा मुफ्त या कम लागत वाली होती है, लेकिन गुणवत्ता और संसाधनों की कमी आम है।

निजी स्कूल अधिक संसाधनों और सुविधाओं के साथ बेहतर गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान करते हैं, लेकिन ये आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए सुलभ नहीं होते।

2. ग्रामीण और शहरी असमानता:

शहरी क्षेत्रों में स्कूलों की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों की कमी, अधूरी आधारभूत संरचना और डिजिटल संसाधनों का अभाव प्रमुख समस्याएं हैं।

3. लिंग असमानता:

लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं जैसे ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’, लागू की गई हैं। फिर भी, कई क्षेत्रों में लिंग असमानता बनी हुई है, विशेष रूप से ग्रामीण और पारंपरिक सोच वाले क्षेत्रों में।

4. वंचित वर्गों की शिक्षा:

अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, और अन्य पिछड़े वर्गों के छात्रों के लिए विशेष योजनाएं और आरक्षण हैं। लेकिन सामाजिक और आर्थिक भेदभाव उनकी शिक्षा में बाधा डालता है।

5. राष्ट्रीय शिक्षा नीति  2020

भारत सरकार ने समान शिक्षा के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लागू की है, जो समग्र, समावेशी और सुलभ शिक्षा प्रदान करने का लक्ष्य रखती है। इसमें प्री-स्कूल से उच्च शिक्षा तक सुधार और डिजिटल शिक्षा पर जोर दिया गया है।

6. डिजिटल असमानता:

डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है, लेकिन इंटरनेट और उपकरणों की अनुपलब्धता के कारण ग्रामीण और गरीब तबके के बच्चे इससे वंचित हैं।

चुनौतियां:

#गुणवत्ता और समानता के बीच संतुलन बनाना।

#सामाजिक और सांस्कृतिक भेदभाव को समाप्त करना।

#सभी के लिए डिजिटल संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करना।

#ड्रॉपआउट रेट को कम करना, खासकर लड़कियों और गरीब वर्गों में।

सरकारी प्रयास:

#मिड-डे मील योजना, ताकि बच्चे स्कूल में बने रहें।

#समग्र शिक्षा अभियान, जिससे स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर और गुणवत्ता में सुधार हो।

 #शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई)  2009, जो 6 से 14 साल के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार देता है।

निष्कर्ष:

भारत में समान शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन अभी भी पूर्ण समानता प्राप्त करने के लिए आर्थिक, सामाजिक और प्रौद्योगिकी संबंधी चुनौतियों का समाधान आवश्यक है। शिक्षा के क्षेत्र में सतत प्रयास और जागरूकता ही देश को इस दिशा में आगे बढ़ा सकते हैं।
-लेखक विजय गर्ग