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30 जनवरी: कवि माखनलाल चतुर्वेदी की पुण्यतिथि

माखनलाल चतुर्वेदी भारत के ख्याति प्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। आज ही के दिन 30 जनवरी 1968 को उनकी मृत्यु हुई थी। माखनलाल चतुर्वेदी सरल भाषा और भावों-भावनाओं के अनूठे प्रणेता थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठित पत्रों के संपादक रहे माखनलाल जी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रसार किया और नई पीढ़ी को प्रोत्साहित किया कि वे गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए और इसके लिए उन्हें अनेक बार ब्रिटिश साम्राज्य का कोप भाजन बनना पड़ा। वे सच्चे देशप्रेमी थे और 1921-22 में असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए जेल भी गए। उनकी कविताओं में देशप्रेम के साथ-साथ प्रकृति और प्रेम का भी चित्रण हुआ है। अत: वे सच्चे अर्थों में युग-चारण माने जाते हैं। उनका जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में बाबई नामक स्थान पर हुआ था। उनका तत्कालीन राष्ट्रीय परिदृश्य और घटनाचक्र ऐसा था जब लोकमान्य तिलक का उद्घोष- ‘स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ बलिपंथियों का प्रेरणास्रोत बन चुका था। दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के अमोघ अस्त्र का सफल प्रयोग कर कर्मवीर मोहनदास करमचंद गाँधी का राष्ट्रीय परिदृश्य के केंद्र में आगमन हो चुका था। आर्थिक स्वतंत्रता के लिए स्वदेशी का मार्ग चुना गया था, सामाजिक सुधार के अभियान गतिशील थे और राजनीतिक चेतना स्वतंत्रता की चाह के रूप में सर्वोच्च प्राथमिकता बन गई थी। ऐसे समय में माधवराव सप्रे के ‘हिंदी केसरी’ ने सन 1908 में ‘राष्ट्रीय आंदोलन और बहिष्कार’ विषय पर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया। खंडवा के युवा अध्यापक माखनलाल चतुर्वेदी का निबंध प्रथम चुना गया। अप्रैल 1913 में खंडवा के हिंदी सेवी कालूराम गंगराड़े ने मासिक पत्रिका ‘प्रभा’ का प्रकाशन आरंभ किया, जिसके संपादन का दायित्व माखनलालजी को सौंपा गया। सितंबर 1913 में उन्होंने अध्यापक की नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह पत्रकारिता, साहित्य और राष्ट्रीय आंदोलन के लिए समर्पित हो गए। इसी वर्ष कानपुर से गणेश शंकर विद्यार्थी ने ‘प्रताप’ का संपादन-प्रकाशन आरंभ किया। 1916 के लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन के दौरान माखनलालजी ने विद्यार्थीजी के साथ मैथिलीशरण गुप्त और महात्मा गाँधी से मुलाकात की। महात्मा गाँधी द्वारा आहूत सन 1920 के ‘असहयोग आंदोलन’ में महाकोशल अंचल से पहली गिरफ्तारी देने वाले माखनलालजी ही थे। सन 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी उन्हें गिरफ्तारी देने का प्रथम सम्मान मिला। उनके महान कृतित्व के तीन आयाम हैं : एक, पत्रकारिता- ‘प्रभा’, ‘कर्मवीर’ और ‘प्रताप’ का संपादन। दो- उनकी कविताएँ, निबंध, नाटक और कहानी। तीन- उनके अभिभाषण/ व्याख्यान।

pradip singh Deo
लेखक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव

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