दुमका: तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार संपन्न
दुमका: एसकेएम विश्वविद्यालय दुमका में बुधवार को अंडरस्टैंडिंग द संथाली कॉस्मो एंड द परफॉर्मेटिव रिलिजन ऑफ़ द संथाल्स विषय पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार संपन्न हो गया।
समापन समारोह में विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. विमल प्रसाद सिंह विशिष्ट अतिथि कुलसचिव डाॅ. विनय कुमार सिन्हा, अतिविशिष्ट अतिथि के रुप में छात्र कल्याण अधिष्ठाता डाॅ. संजय कुमार सिंह उपस्थित हुए।
सेमिनार समापन समारोह में विशिष्ट वक्ता के रुप में आई.आई.टी. गाँधीनगर के सहायक प्राध्यापक प्रो. आशीष रवाका ऑनलाइन माध्यम से जुड़े थे, जिसमें प्रो. रवाका ने कहा कि वर्तमान समय में दुनिया प्रगति की पथ पर आगे बढ़ रही है उनके रास्ते में यदि पर्यावरण और प्राकृति भी बाधा उत्पन्न करती है तो उसका रास्ते से हटाने का काम किया जाता है लेकिन आदिवासी ही ऐसे समुदाय है जो प्राकृति को सहेजने का काम कर रही है क्योंकि आदिवासियों का धार्मिक और अध्यात्मिक गतिविधि प्राकृति से ही जुड़ा है। संतालों का अध्यात्मिक चेतना प्राकृति में वास करती है और इसीलिए प्राकृति के महत्व को जितना संताल जनजाति समझ पा रही है शायद ही उससे अधिक और कोई जनजाति समझ सकती है। इस तरह से श्री रवाका ने प्राकृति, संताल, संतालों का धर्म, आध्यात्मिक चेतना, उनकी परम्परा तथा उनकी जीवन पद्धति के बारे में विस्तार से व्याख्यान दिया।
इसके बाद समापन सत्र का शुरुआत हुआ। समापन सत्र का परिचय सह संयोजक डाॅ. अब्दूल सत्तार ने दिया। इसके बाद समापन सत्र को सम्बोधित करते हुए कुलसचिव डाॅ. विनय कुमार सिन्हा ने कहा कि इस तरह का सेमिनार से ज्ञान अर्जन करने का मौका मिलता है। संताल समुदाय बहुत ही शांत प्रवृति के साथ-साथ प्रकृति के सनिध्य रहते हुए अपनी धार्मिक चेतना को विकसित करते हुए सभ्यता को आगे बढ़ा रहे है। संताल धर्म वास्तव में एक धर्म नहीं बल्कि प्रकृति को बचाने की एक सुव्यवस्थित मुहिम है।
कार्यक्रम के अति विशिष्ट अतिथि छात्र कल्याण अधिष्ठाता डाॅ. संजय कुमार सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय में इस तरह की कार्यक्रम आयोजित होने से न केवल संताल समुदाय का जानने का मौका मिलता है बल्कि उसके सामुदायिक ज्ञान का प्राप्ति भी विश्वविद्यालय एवं शोधार्थियों को होता है। शोधार्थी केवल किताबी ज्ञान तक ही सीमित न रहकर बल्कि समुदाय के लोगों से बातचीत कर सामुदायिक ज्ञान का लाभ भी ले सकते है। हमारें आसपास अथाह ज्ञान की भण्डार के रुप संताल समुदाय मिलते है।
कार्यक्रम के मुख्य अथिति विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. डाॅ. विमल प्रसाद सिंह ने कहा कि तीन दिवसीय सेमिनार सफलतापूर्वक समाप्त हुआ। इससे हम सभी को बहुत सारी ज्ञान की प्राप्ति हुई। अलग-अलग विषय के शोधार्थियों ने अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। कई सम्मानित वक्ता के रुप में इस सेमिनार में जुड़े। सभी तरह की शोध पत्र से विभिन्न प्रकार के ज्ञान की प्राप्ति हुई है। वास्तव में समुदाय एक समुदाय के साथ-साथ सामुदायिक ज्ञान का भण्डार है। इनकी समाजिक संरचना, आर्थिक विकास, प्रकृति पर ही निर्भर है। इनका अध्यात्मिक कार्यों का अध्ययन किसी ने नहीं किया यह उसका अच्छा पहल है। उन्होने कार्यक्रम के सहयोगी आई.आई.टी. रुड़की की प्रशंसा करते हुए कहा कि डाॅ. सबीनी बनर्जी ने एक अच्छा पहल करते हुए संताल समुदायिक ज्ञान में गोता लगाने का काम किया है। निश्चय ही कार्यक्रम का उद्देश्य आनेवाले पीढ़ीयों के लिए एक मार्गदर्शन एवं प्रेरणा का काम करेगी। विश्वविद्यालय लगातार शोध के संबंध में कार्य कर रही है। शोधार्थियों को इसका पूर्ण लाभ मिलेगा।
यह कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम के संयोजक डाॅ. सबीनी बनर्जी ने दिया जबकि मंच का संचालन प्रो. निर्मल मुर्मू ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में संताली विभाग अध्यक्ष डाॅ. सुशील टुडू, मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष डाॅ. विनोद कुमार शर्मा, माॅडल काॅलेज, दुमका की प्राचार्या डाॅ. मेरी माग्रेट टुडू, डाॅ. शमिला सोरेन, डाॅ. चम्पावती सोरेन, प्रो. बास्की निरज, प्रो. अमित मुर्मू आदि सक्रिय रहे।
कार्यक्रम में रमेश मरंडी, उपेन्द्र मरांडी, राजेन्द्र मड़ैया, मेरी मुर्मू, दुलाड़ टुडू, मीनू मरांडी, चिंतामुनी बेसरा, जोना टुडू, बिटू टुडू, राकेश कुमार, सुजीत सोरेन, मन्टु बेसरा आदि उपस्थित थे।
रिपोर्ट- आलोक रंजन Alok Ranjan