देवघर (शहर परिक्रमा)

पेंशनर समाज के साथ भाविप देवघर शाखा ने मनाया परिषद का स्थापना दिवस

10 जुलाई भारत विकास परिषद का स्थापना दिवस है। भाविप देवघर शाखा ने आज झारखंड पेंशनर्स कल्याण समाज देवघर के वरिष्ठ प्रबुद्धजनों के साथ स्थापना दिवस मनाया। इस अवसर पर “स्वस्थ समर्थ संस्कारित भारत के निर्माण में सामाजिक पहल” विषय पर परिचर्चा भी किया गया। सर्वप्रथम पेंशनर समाज और भारत विकास परिषद के पदाधिकारियों ने भारत माता, स्वामी विवेकानंद और परिषद के संस्थापक डॉ. सूरज प्रकाश की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित कर तथा सभी उपस्थित लोगों ने वन्दे मातरम् गीत गाकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।

स्थापना दिवस कार्यक्रम में पेंशनर समाज की ओर से संस्थापक सचिव सह संरक्षक अवध बिहारी प्रसाद, पूर्व सचिव सह मुख्य सलाहकार राजेंद्र प्रसाद, से.नि. मुख्य अभियंता सह संरक्षक सुनील कुमार ठाकुर, सचिव जयप्रकाश सिंह और सेवानिवृत अधीक्षण अभियंता जयप्रकाश चौधरी तथा भारत विकास परिषद की ओर से शाखा अध्यक्ष आलोक मल्लिक, प्रांतीय उपाध्यक्ष प्रकाश चंद्र सिंह, संरक्षक सह राष्ट्रीय विस्तारक इंजीनियर एसपी सिंह, संरक्षक डॉ. गोपाल वर्णवाल, संयोजक संस्कार रामसेवक सिंह गुंजन और विशिष्ट अतिथि के रूप में आर्ट ऑफ लिविंग के राष्ट्रीय प्रशिक्षक निशांत कुमार मंचस्थ थे।
कार्यक्रम के शुभारंभ में देवघर शाखा के अध्यक्ष आलोक मल्लिक ने मंचासीन और उपस्थित प्रबुद्धजनों का स्वागत अभिनंदन करते हुए भारत विकास परिषद को संपर्क सहयोग संस्कार सेवा व समर्पण का संगम बताया। उन्होंने बताया कि 1962 में जब अचानक चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया तो देश व्यथित हो गया था और हमारी सेना का मनोबल भी गिर रहा था। वैसे समय में भारत के प्रमुख उद्योगपतियों एवं समाज सुधारकों जैसे लाला हंसराज, राष्ट्र को समर्पित डॉक्टर सूरज प्रकाश, बसंत राव ओक, केदारनाथ साहनी आदि ने मिलकर सेना का मनोबल बढ़ाने और चीनी आक्रमण का प्रतिकार करने के उद्देश्य से एक नागरिक समिति सिटीजन काउंसिल की स्थापना की थी। दिल्ली में प्रारंभ हुई इसी सिटीजन काउंसिल को बाद में राष्ट्र आवश्यकताओं को देखते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन पूजनीय सरसंघचालक श्री बाला साहब देवरस जी की प्रेरणा से स्वामी विवेकानंद जनशताब्दी वर्ष में 12 जनवरी 1963 को इसे भारत विकास परिषद का नाम दिया गया। इसका पंजीकरण 10 जुलाई 1963 को हुआ और इसी दिन इसका स्थापना दिवस मनाया जाता है। 1983 में परिषद के पहला राष्ट्रीय सम्मेलन किया गया जिसमें कुल 31 प्रतिनिधि विभिन्न राज्यों से शामिल हुए। वही भारत विकास परिषद आज 10 क्षेत्र, 78 प्रांत, लगभग 1500 शाखाएं तथा डेढ़ लाख से ज्यादा सदस्यों के परिवार के रूप में आज विस्तारित है। भारतीय संस्कृति एवं भारतीय जीवन मूल्य परिषद के मूल मंत्र है। परिषद के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ लक्ष्मीमल सिंघवी ने भारत विकास परिषद को यूं परिभाषित किया था – भारत विकास परिषद एक संस्था भी है और एक आंदोलन भी है। यह भारतीय दृष्टि से अंकुरित, संपर्क से अभिसिंचित, सहयोग के हाथों से निर्मित, संस्कार के हृदय से स्पंदित और सेवा की अंजलि में प्रसाद के रूप में है। श्री मल्लिक ने परिषद के विभिन्न प्रकल्प के द्वारा सेवा संस्कार के कार्यों के बारे में भी सदन को अवगत कराया।
स्वस्थ समर्थ संस्कारित भारत के निर्माण में सामाजिक पहल विषय पर परिचर्चा में वक्ताओं ने इसकी परिमार्जित व्याख्या करते हुए सामाजिक संस्थाओं और बुद्धिजीवी वर्ग को आगे बढ़कर योगदान देने की आवश्यकता बताई। परिषद के संरक्षक इंजीनियर एसपी सिंह ने भारत विकास परिषद को गूढ़ता और उदाहरण के साथ परिभाषित करते हुए समाज को चिंतन करने की बात कही। प्रांतीय उपाध्यक्ष प्रकाश चंद्र सिंह ने आज के हालात को चित्रण करते हुए परिवार के बड़े बुजुर्गों को अपने बच्चों को संस्कारी और अनुशासित करने पर बल दियाऔर कहा कि तभी हम एक स्वस्थ संस्कारित भारत का निर्माण कर पाएंगे। डॉक्टर गोपाल बरनवाल ने कहा कि सनातन प्रवृत्ति का अनुसरण कर ही हम स्वस्थ भारत निर्माण की परिकल्पना कर सकते हैं। शाखा सचिव श्रीमती पुष्पा सिंह और महिला संयोजक श्रीमती कंचन शेखर ने भी अपने विचारों से सदन को अवगत कराया और छोटे-छोटे सुधारवादी कार्यक्रमों और जागरूकता अभियान, वंचित वर्ग को सेवा तथा युवाओं को संस्कारित कर हम स्वस्थ और सुसंस्कृत भारत का निर्माण करने में हाथ बता सकते हैं।
विशिष्ट अतिथि निशांत कुमार ने स्वयं को अनुशासित, व्यवस्थित और संस्कारी तथा स्वस्थ और समर्थ बना कर समाज को परिवर्तित करने या सुधारने में अपना हाथ बंटा पाएंगे। उन्होंने अपने जीवन को कलात्मक अंदाज में खुशियों से जीने की कला बताते हुए कहा कि यही सामाजिक सरोकार को परिवर्तित करने में सहयोगी बनेगा।
दूसरी ओर झारखंड पेंशनर्स कल्याण समाज देवघर के सचिव जयप्रकाश सिंह ने भारत विकास परिषद के कार्यों की सराहना की तथा सुसंस्कारित भारत के निर्माण में सामाजिक दायित्व के निर्वहन की आवश्यकता पर बल दिया। सेवानिवृत्ति अधीक्षण अभियंता जयप्रकाश चौधरी ने इस विषय को एक पूर्ण विषय बताते हुए विस्तार से अलग-अलग स्वस्थ भारत, समर्थ भारत और संस्कारित भारत के निर्माण में अपने पक्ष को रखा और सामाजिक दायित्व पर जोड़ दिया। पेंशनर समाज के पूर्व सचिव सह मुख्य सलाहकार 93 वर्षीय राजेंद्र प्रसाद ने जोश और अनुभव के सम्मिश्रण से भारत के युवाओं तथा सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश को मजबूत करने में समाज को आगे बढ़ने का आह्वान किया। परिचर्चा की अध्यक्षता कर रहे पेंशनर समाज के संस्थापक सचिव सह संरक्षक अवध बिहारी प्रसाद ने बताया कि परिवार से ही सक्षम भारत की छवि बाहर निकलती है। जब तक परिवार में हम बड़े बुजुर्ग अपने घरों में बच्चों, युवाओं को संस्कार और अनुशासन की पाठ नहीं पढ़ाएंगे तब तक संस्कारित और संयमित देश की परिकल्पना अधूरी रहेगी। आज जरूरत है घर के अभिभावक जो अपेक्षाएं दूसरे के बच्चों से करते हैं वही चीज अपने परिवार में अपने बच्चों को संस्कारी करने में लगाएं। घर के बच्चे जब संस्कारित होंगे तो देश संस्कारी और अनुशासित होकर समर्थ बनेंगे और वे विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने का दायित्व निभाएंगे। पूरे कार्यक्रम का संचालन परिषद के संस्कार संयोजक रामसेवक सिंह गुंजन ने बखूबी अपने अंदाज में किया और रूपा केसरी ने अपनी भावनाओं को रखते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर पेंशनर समाज और परिषद के 50 से भी ज्यादा लोग उपस्थित थे।
भारत विकास परिषद के संगठन सचिव एसपी भुईयां बिलास, उपाध्यक्ष कंचन्मुर्ति साह, सेवा संयोजक पशुपति कुमार, प्रशांत सिन्हा के साथ सभी सदस्यों ने सभी आगंतुक बुद्धिजीवियों को सम्मान स्वरूप एक-एक लघुपौध और सभी वक्ताओं को पुस्तक भेंट कर सम्मानित किया।