कारगिल विजय दिवस आज
पाकिस्तान के विरुद्ध लड़े गए चौथे युद्ध के चिह्न कारगिल में नज़र आ जाते हैं : डॉ. प्रदीप सिंह देव
विजय दिवस प्रत्येक वर्ष ’26 जुलाई’ को मनाया जाता है। भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य में आज से 25 वर्ष पहले भारतीय सेना ने 26 जुलाई, 1999 के ही दिन नियंत्रण रेखा से लगी कारगिल की पहाड़ियों पर कब्ज़ा जमाए आतंकियों और उनके वेश में घुस आए पाकिस्तानी सैनिकों को मार भगाया था। पाकिस्तान के ख़िलाफ़ यह पूरा युद्ध ही था, जिसमें पांच सौ से ज़्यादा भारतीय जवान शहीद हुए थे। इन वीर और जाबांज जवानों को पूरा देश ’26 जुलाई’ के दिन याद करता है और श्रद्धापूर्वक नमन करता है। देश की इस जीत में कारगिल के स्थायी नागरिकों ने भी बड़ी भूमिका निभाई थी।
स्थानीय विवेकानंद शैक्षणिक, सांस्कृतिक एवं क्रीड़ा संस्थान के केंद्रीय अध्यक्ष डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव ने कारगिल युद्ध में शहीद सैनिकों को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा- कारगिल युद्ध, भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में मई के महीने में कश्मीर के कारगिल ज़िले से प्रारंभ हुआ था। इस युद्ध का महत्त्वपूर्ण कारण था बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों व पाक समर्थित आतंकवादियों का ‘लाइन ऑफ कंट्रोल’ यानी भारत-पाकिस्तान की वास्तविक नियंत्रण रेखा के भीतर घुस आना। इन लोगों का उद्देश्य था कि कई महत्त्वपूर्ण पहाड़ी चोटियों पर क़ब्ज़ा कर लेह-लद्दाख को भारत से जोड़ने वाली सड़क का नियंत्रण हासिल कर सियाचिन ग्लेशियर पर भारत की स्थिति को कमज़ोर कर हमारी राष्ट्रीय अस्मिता के लिए खतरा पैदा करना। पूरे दो महीने से भी अधिक समय तक चले इस युद्ध में भारतीय थलसेना व वायुसेना ने ‘लाइन ऑफ कंट्रोल’ पार न करने के आदेश के बावजूद अपनी मातृभूमि में घुसे आक्रमणकारियों को मार भगाया था। स्वतंत्रता का अपना ही मूल्य होता है, जो वीरों के रक्त से चुकाया जाता है। इस युद्ध में भारत के पाँच सौ से भी ज़्यादा वीर योद्धा शहीद हुए और 1300 से ज्यादा घायल हो गए। इनमें से अधिकांश जवान अपने जीवन के 30 वसंत भी नहीं देख पाए थे। इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाह किया, जिसकी सौगन्ध हर भारतीय सिपाही तिरंगे के समक्ष लेता है। इन रणबाँकुरों ने भी अपने परिजनों से वापस लौटकर आने का वादा किया था, जो उन्होंने निभाया भी, मगर उनके आने का अंदाज़निराला था। वे लौटे, मगर लकड़ी के ताबूत में। उसी तिरंगे मे लिपटे हुए, जिसकी रक्षा की सौगन्ध उन्होंने उठाई थी। जिस राष्ट्र ध्वज के आगे कभी उनका माथा सम्मान से झुका होता था, वही तिरंगा मातृभूमि के इन बलिदानी जाँबाजों से लिपटकर उनकी गौरव गाथा का बखान कर रहा था।