पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम एवं पक्षी विज्ञानी सालिम अली की पुण्यतिथि आज
आज भारत के यशस्वी पक्षी विज्ञानी और प्रकृतिवादी सालिम अली एवं पूर्व राष्ट्रपति अवुल पकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम की पुण्यतिथि है। सालिम अली की मृत्यु 27 जुलाई, 1987 जबकि कलाम साहब की मृत्यु 27 जुलाई, 2015 को हुई थी।
स्थानीय साइंस एण्ड मैथेमेटिक्स डेवेलोपमेंट आर्गेनाईजेशन के राष्ट्रीय सचिव डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव दोनों महान विभूतियों के बारे में बताते हैं कि सालिम अली एक भारतीय पक्षी विज्ञानी और प्रकृतिवादी थे। उन्हें भारत के बर्डमैन के रूप में जाना जाता है। वे भारत के ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत भर में व्यवस्थित रूप से पक्षी सर्वेक्षण का आयोजन किया और पक्षियों पर लिखी उनकी किताबों ने भारत में पक्षी-विज्ञान के विकास में काफ़ी मदद की है। सन् 1906 में दस वर्ष के बालक की अटूट जिज्ञासा ने ही पक्षी शास्त्री के रूप में उन्हें आज विश्व में मान्यता दिलाई है। पक्षियों के सर्वेक्षण में 65 साल गुजार देने वाले इस शख़्स को परिंदों का चलता फिरता विश्वकोष कहा जाता था। पद्म विभूषण से नवाजे इस ‘परिंदों के मसीहा’ के प्रकृति संरक्षण की दिशा में किए गए प्रयासों को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। उनका जन्म 12 नवम्बर, 1896 को मुम्बई में हुआ। ये अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। पक्षियों की अलग-अलग प्रजातियों के अध्ययन के लिए वे भारत के कई क्षेत्रों के जंगलों में घूमे। कुमाऊँ के तराई क्षेत्र से उन्होंने बया की एक ऐसी प्रजाति ढूंढ़ निकाली जो लुप्त घोषित हो चुकी थी। डॉ. देव ने आगे डॉ. कलाम के संदर्भ में कहा – कलाम साहब भारत के पूर्व राष्ट्रपति, प्रसिद्ध वैज्ञानिक और अभियंता के रूप में विख्यात थे। उनका राष्ट्रपति कार्यकाल 25 जुलाई, 2002 से 25 जुलाई, 2007 तक रहा। उन्हें मिसाइल मैन के नाम से भी जाना जाता है। वह एक गैर राजनीतिक व्यक्ति थे। विज्ञान की दुनिया में चमत्कारिक प्रदर्शन के कारण ही राष्ट्रपति भवन के द्वार उनके लिए स्वत: ही खुल गए। जो व्यक्ति किसी क्षेत्र विशेष में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करता है, उसके लिए सब सहज हो जाता है और कुछ भी दुर्लभ नहीं रहता।
अब्दुल कलाम इस उद्धरण का प्रतिनिधित्व करते नज़र आते थे। उन्होंने विवाह नहीं किया था। उनकी जीवन गाथा किसी रोचक उपन्यास के नायक की कहानी से कम नहीं है। चमत्कारिक प्रतिभा के धनी अब्दुल कलाम का व्यक्तित्व इतना उन्नत था कि वह सभी धर्म, जाति एवं सम्प्रदायों के व्यक्ति नज़र आते थे। वह एक ऐसे स्वीकार्य भारतीय थे, जो सभी के लिए ‘एक महान् आदर्श’ बन चुके हैं। विज्ञान की दुनिया से देश का प्रथम नागरिक बनना कपोल कल्पना मात्र नहीं है, क्योंकि यह एक जीवित प्रणेता की सत्य कथा है।