आधुनिक नर्सिग की जन्मदाता फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल की आज पुण्यतिथि
फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल ‘आधुनिक नर्सिग आन्दोलन की जन्मदाता’ मानी जाती हैं। प्रेम, दया व सेवा-भावना की प्रतिमूर्ति फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल “द लेडी विद द लैंप” के नाम से प्रसिद्ध हैं। आज ही के दिन 13 अगस्त, 1910 को उनकी मृत्यु हुई थी।
फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल का जन्म 12 मई सन 1820 को फ्लोरेंस, ग्रैंड डची ऑफ टस्कैनी में हुआ था। हर वर्ष 12 मई को उनकी जयंती पर अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस का आयोजन किया जाता है। वे एक अच्छे परिवार में पैदा हुई थीं। उनका नाम इटली के एक शहर के नाम पर रखा गया था, जहाँ पर वह पैदा हुई थीं। फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल इंग्लैंड में जवान हुईं। घर पर ही उनके पिता ने उन्हें पढ़ाना शुरू हुआ। उन्होंने अंग्रेज़ी, इटैलियन, लैटिन, जर्मनी, फ़्रेन्च, इतिहास और दर्शन सीखा। फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल ने अपनी बहन और माता-पिता के साथ अनेक देशों की यात्रा की। उस युग के ब्रिटिश वैभवपूर्ण जीवन के प्रति उनमें कोई आकर्षण नही था। इसके विपरीत दु:खी मानवता के लिए फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल के हृदय में अपार संवेदना थी। सन 1840 में इंग्लैंड में भयंकर अकाल पड़ा और अकाल पीड़ितों की दयनीय स्थिति देखकर फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल बैचैन हो गयीं। अपने एक पारिवारिक मित्र डॉ. फोउलेर से उन्होंने नर्स बनने की इच्छा प्रकट की। उनका यह निर्णय सुनकर उनके परिजनों और मित्रों में खलबली मच गयी। उनकी माँ को यह आशंका थी कि उनकी पुत्री किसी डॉक्टर के साथ भाग जायेगी। ऐसा इन दिनों शायद आम था। इतने प्रबल विरोध के बावजूद फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल ने अपना इरादा नहीं बदला। विभिन्न देशों में अस्पतालों की स्थिति के बारे में उन्होंने जानकारी जुटाई और शयन कक्ष में मोमबत्ती जलाकर उसका अध्ययन किया। उनके दृढ़ संकल्प को देखकर उनके माता-पिता को झुकना पड़ा और उन्हें कैन्सवर्थ संस्थान में नर्सिंग के प्रशिक्षण के लिए जाने की अनुमति देनी पड़ी। सन 1855 की बसंत ऋतु में ब्रिटिश सरकार ने अस्पताल का जायजा लेने के लिए एक सैनिटरी कमीशन बनाकर भेजा। जांच में पाया गया कि बराक अस्पताल का निर्माण सीवर के ऊपर किया गया था। जिसकी वजह से सैनिकों के पास पीने के लिए गंदा पानी आ रहा था। नतीजतन सभी अस्पतालों की सफाई करवाई गई और मौतों का आंकड़ा कम होने लगा। इस दौरान अखबारों में फ्लोरेंस हाथ में मशाल लिए तस्वीर छपने के बाद उसके हजारों फैन बन गए। इस तस्वीर की वजह से वह ‘द लेडी विद द लैम्प’ के नाम से मशहूर हो गई। उनके मिशन की वजह से ब्रिटेन ने नेशनल हेल्थ सर्विस की दिशा में काम करना शुरू किया। फ्लोरेंस नाइटिंगेल भारत में भी ब्रिटिश सैनिकों की सेहत को बेहतर करने की मुहिम से जुड़ी हुई थी। इस दौरान उन्होंने भारत में साफ पानी की सप्लाई पर जोर दिया। उस वक्त भारत में अकाल के हालात ठीक तुर्की के स्कुतारी के जैसे थे। फ्लोरेंस को भारत के हालात के बारे में 1906 तक रिपोर्ट भेजी जाती रही और वे भारत के हालातों में सुधार करती रही। भारत भी फ्लोरेंस नाइटिंगेल का कर्जदार है।