राष्ट्रीय

21 अगस्त: भारतरत्न शहनाई वादक बिस्मिल्लाह ख़ाँ की पुण्यतिथि

उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ ‘भारत रत्न’ से सम्मानित प्रख्यात शहनाई वादक थे जिनकी मृत्यु आज ही के दिन 21 अगस्त, 2006 को हुई थी। सन 1969 में ‘एशियाई संगीत सम्मेलन’ के ‘रोस्टम पुरस्कार’ तथा अनेक अन्य पुरस्कारों से सम्मानित बिस्मिल्लाह खाँ ने शहनाई को भारत के बाहर एक विशिष्ट पहचान दिलवाने में मुख्य योगदान दिया। वर्ष 1947 में देश की आज़ादी की पूर्व संध्या पर जब लालकिले पर भारत का तिरंगा फहरा रहा था, तब बिस्मिल्लाह ख़ान की शहनाई भी वहाँ आज़ादी का संदेश बाँट रही थी। तब से लगभग हर साल 15 अगस्त को प्रधानमंत्री के भाषण के बाद बिस्मिल्लाह ख़ान का शहनाई वादन एक प्रथा बन गयी।

बिस्मिल्लाह ख़ाँ

बिस्मिल्लाह ख़ाँ का जन्म 21 मार्च, 1916 को बिहार के डुमरांव नामक स्थान पर हुआ था। वे विश्व के सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक माने जाते थे। उनके परदादा शहनाई नवाज़ उस्ताद सालार हुसैन ख़ाँ से शुरू यह परिवार पिछली पाँच पीढ़ियों से शहनाई वादन का प्रतिपादक रहा है। उन्हें उनके चाचा अली बक्श ‘विलायतु’ ने संगीत की शिक्षा दी, जो बनारस के पवित्र विश्वनाथ मन्दिर में अधिकृत शहनाई वादक थे। उन्होंने जटिल संगीत की रचना, जिसे तब तक शहनाई के विस्तार से बाहर माना जाता था, में परिवर्द्धन करके अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया और शीघ्र ही उन्हें इस वाद्य से ऐसे जोड़ा जाने लगा, जैसा किसी अन्य वादक के साथ नहीं हुआ। उन्होंने भारत के पहले गणतंत्र दिवस समारोह की पूर्व संध्या पर नई दिल्ली में लाल क़िले से अत्यधिक मर्मस्पर्शी शहनाई वादक प्रस्तुत किया। उन्होंने बजरी, चैती और झूला जैसी लोकधुनों में बाजे को अपनी तपस्या और रियाज़ से ख़ूब सँवारा और क्लासिकल मौसिक़ी में शहनाई को सम्मानजनक स्थान दिलाया। उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान, यूरोप, ईरान, इराक, कनाडा, पश्चिम अफ़्रीका, अमेरिका, भूतपूर्व सोवियत संघ, जापान, हांगकांग और विश्व भर की लगभग सभी राजधानियों में शहनाई का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। भारतीय शास्त्रीय संगीत और संस्कृति की फिजा में शहनाई के मधुर स्वर घोलने वाले प्रसिद्ध शहनाई वादक बिस्मिल्ला ख़ाँ शहनाई को अपनी बेगम कहते थे और संगीत उनके लिए उनका पूरा जीवन था।

लेखक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव विवेकानंद शैक्षणिक, सांस्कृतिक एवं क्रीड़ा संस्थान के केंद्रीय अध्यक्ष हैं।