देवघर (शहर परिक्रमा)

देवघर: मुंशी प्रेमचंद निबंध लेखन एवं रंगभरो प्रतियोगिता के विजयी प्रतिभागी हुए पुरस्कृत

स्थानीय विवेकानंद शौक्षणिक, सांस्कृतिक एवं क्रीड़ा संस्थान तथा योगमाया मानावोत्थान ट्रस्ट के युग्म बैनर तले पिछले दिन, प्रेमचंद जयंती के अवसर पर संपूर्ण राष्ट्र में विद्यार्थियों के बीच निबन्ध लेखन एवं रंगभरो प्रतियोगिताओं का आयोजन सम्पूर्ण भारत में हुआ था। आज स्थानीय विजेताओं को दीनबन्धु उच्च विद्यालय स्थित रवींद्र सभागार में मुख्य अतिथि, कोलकाता से आई हुई स्वानामधन्य मॉडल पीयू चक्रबर्ती, वेक्सो इंडिया के संरक्षक प्रो. रामनंदन सिंह, केंद्रीय अध्यक्ष डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव, दीनबंधु स्कूल के प्रधानाध्यापक काजल कांति सिकदार व अन्य अतिथियों के करकमलों से प्रशस्ति पत्र प्रदान कर पुरस्कृत किया गया। प्राप्त जानकारी के अनुसार मुंशी प्रेमचंद शीर्षक निबंध लेखन प्रतियोगिता के ग्रुप बी में, माउंट लिटेरा जी स्कूल की माही सिन्हा को प्रथम, मधुपुर की रिया कुमारी को द्वितीय एवं संदीपनि पब्लिक स्कूल की पालक झा को तृतीय स्थान, आशुतोष बालिका उच्च विद्यालय की वैष्णवी कुमारी केशरी, आरोही गुप्ता एवं समीक्षा कुमारी पांडेय को क्रमशः चतुर्थ, पंचम एवं षष्ठ स्थान प्राप्त हुआ था। इसी प्रतियोगिता के ग्रुप सी, जिसका शीर्षक था – साहित्य जगत में मुंशी प्रेमचंद की देन, में जसीडीह के राघवेंद्र कुमार व अंशुमान कुमार को क्रमशः प्रथम व द्वितीय जबकि आशुतोष विद्यालय की खुशी उपाध्याय को तृतीय एवं इसी विद्यालय की सुहानी कुमारी को सराहनीय स्थान प्राप्त हुआ था। रंगभरो प्रतियोगिता के ग्रुप बी में सारठ के सत्येंद्र कुमार को प्रथम, मधुपुर के पुष्पेन्दु कुमार को द्वितीय जबकि माउंट लिटेरा जी स्कूल की माही सिन्हा को तृतीय, आशुतोष बालिका उच्च विद्यालय की वैष्णवी कुमारी केशरी, समीक्षा कुमारी पांडेय एवं आरोही गुप्ता को क्रमशः चतुर्थ, पंचम एवं षष्ठ स्थान प्राप्त हुआ था। इसी प्रतियोगिता के ग्रुप सी में, इसी विद्यालय की रीतिका कुमारी व पलक प्रिया को क्रमशः प्रथम व द्वितीय जबकि अन्य शिक्षण संस्थान की श्रुति सारदा को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ था।

मौके पर रामनंदन सिंह ने कहा- प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह माने जाते हैं। उनका पहला उपलब्‍ध लेखन उनका उर्दू उपन्यास ‘असरारे मआबिद’ है। प्रेमचंद का दूसरा उपन्‍यास ‘हमखुर्मा व हमसवाब’ जिसका हिंदी रूपांतरण ‘प्रेमा’ नाम से 1907 में प्रकाशित हुआ। डॉ. देव ने कहा- प्रेमचंद का पहला कहानी संग्रह सोज़े-वतन नाम से आया जो 1908 में प्रकाशित हुआ। सोजे-वतन यानी देश का दर्द। देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत होने के कारण इस पर अंग्रेज़ी सरकार ने रोक लगा दी और इसके लेखक को भविष्‍य में इस तरह का लेखन न करने की चेतावनी दी। इसके कारण उन्हें नाम बदलकर लिखना पड़ा। ‘प्रेमचंद’ नाम से उनकी पहली कहानी बड़े घर की बेटी ज़माना पत्रिका के दिसम्बर 1910 के अंक में प्रकाशित हुई। मुख्य अतिथि पीयू चक्रबर्ती ने कहा- मरणोपरांत उनकी कहानियाँ मानसरोवर नाम से 8 खंडों में प्रकाशित हुई। कथा सम्राट प्रेमचन्द का कहना था कि साहित्यकार देशभक्ति और राजनीति के पीछे चलने वाली सच्चाई नहीं बल्कि उसके आगे मशाल दिखाती हुई चलने वाली सच्चाई है। यह बात उनके साहित्य में उजागर हुई है।