देवघर (शहर परिक्रमा)

सृजन देवता विश्वकर्मा रंगभरो प्रतियोगिता में प्रियांशु, आराध्या, दिव्या एवं निशा अव्वल

देवघर: विश्वकर्मा को हिन्दू धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों के अनुसार निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है। उनके पूजनोत्सव के अवसर पर स्थानीय विवेकानंद शैक्षणिक, सांस्कृतिक एवं क्रीड़ा संस्थान एवं योगमाया मानवोत्थान ट्रस्ट के युग्म बैनर तले देश के कई हिस्सों में ‘सृजन देवता विश्वकर्मा रंगभरो प्रतियोगिता’ का आयोजन सम्पन्न हुआ जिसमें लगभग छः हजार प्रतिभागियों ने अपनी अपनी भागीदारी निभाई। आज देवघर जिला के परिणाम की घोषणा की गई।

जानकारी के अनुसार ग्रुप ए (वर्ग नर्सरी से द्वितीय) में ज्ञान विद्या विहार के प्रियांशु राज को प्रथम सान्दीपनी पब्लिक स्कूल के कुमार अभिराज को द्वितीय, लवली टिनी टॉट्स के अक्षित केशरी को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ। तानवी गुप्ता, विराज कश्यप, कृशा चौधरी व उत्सव कुमार मिश्रा द्वारा रंग भरे चित्रों को भी सराहा गया। ग्रुप बी (वर्ग तृतीय से षष्ठ) में गीता देवी डीएवी पब्लिक स्कूल की आराध्या श्री को प्रथम, देवघर संत फ्रांसिस स्कूल की सानवी केशरी को द्वितीय एवं सान्दीपनी पब्लिक स्कूल की पलक झा को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ। इसी विद्यालय की आराध्या गुप्ता एवं श्री शारदा बालिका मध्य विद्यालय की शारदा गुप्ता द्वारा रंग भरे चित्रों को भी सराहा गया। ग्रुप सी (वर्ग सप्तम से दशम) में संत मेरी बालिका उच्च विद्यालय की दिव्या कुमारी को प्रथम, ब्राइट कैरियर स्कूल की राशि कुमारी को द्वितीय जबकि आशुतोष बालिका उच्च विद्यालय, रोहिणी की अनुराधा कुमारी एवं देवघर बालिका विद्या मंदिर की प्राची गुप्ता को युग्म रूप से तृतीय स्थान प्राप्त हुआ। जसीडीह की रजनी कुमारी व मधुपुर की रुक्मिणी खातून द्वारा रंग भरे चित्रों को भी सराहा गया। ग्रुप डी (सर्वसाधारण के लिए) में रमा देवी बाजला महिला महाविद्यालय की निशा कुमारी को प्रथम, देवघर महाविद्यालय की कुमकुम कुमारी व रूबी कुमारी को क्रमशः द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त हुआ। इसी कॉलेज की निशा गुप्ता एवं सान्दीपनी पब्लिक स्कूल की शिक्षिका निशि कुमारी द्वारा रंग भरे चित्रों को भी सराहा गया। सभी विजेताओं को आगामी 2 अक्टूबर को दीनबंधु उच्च विद्यालय स्थित रवींद्र सभागार में वेक्सो इंडिया के संरक्षक प्रो. रामनंदन सिंह, केंद्रीय अध्यक्ष डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव, दीनबंधु के प्रधानाध्यापक काजल कांति सिकदार एवं अन्य अतिथियों के करकमलों से पुरस्कृत किया जाएगा।

मौके पर डॉ. देव ने कहा- भारतीय संस्कृति और पुराणों में भगवान विश्वकर्मा को यंत्रों का अधिष्ठाता और देवता माना गया है। उन्हें हिन्दू संस्कृति में यंत्रों का देव माना जाता है। विश्वकर्मा ने मानव को सुख-सुविधाएँ प्रदान करने के लिए अनेक यंत्रों व शक्ति संपन्न भौतिक साधनों का निर्माण किया। इनके द्वारा मानव समाज भौतिक चरमोत्कर्ष को प्राप्त करता रहा है। प्राचीन शास्त्रों में वैमानकीय विद्या, नवविद्या, यंत्र निर्माण विद्या आदि का भगवान विश्वकर्मा ने उपदेश दिया है। माना जाता है कि प्राचीन समय में स्वर्ग लोक, लंका, द्वारिका और हस्तिनापुर जैसे नगरों के निर्माणकर्ता भी विश्वकर्मा ही थे। आदि काल से ही विश्वकर्मा अपने विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण ही न देवल मानवों अपितु देवगणों द्वारा भी पूजित और वंदनीय हैं। भगवान विश्वकर्मा के आविष्कार एवं निर्माण कार्यों के सन्दर्भ में इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी और शिवमण्डलपुरी का उल्लेख है। पुष्पक विमान का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुएँ भी इनके द्वारा ही निर्मित हैं। कर्ण का ‘कुण्डल’, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशूल और यमराज का कालदण्ड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भी भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है।