राष्ट्रीय

2 अक्टूबर: राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी एवं लालबहादुर शास्त्री जयंती

सम्पूर्ण भारत में 2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी एवं अपने वतन के द्वितीय प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की जयंती धूमधाम से मनाई जाती है। महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को पोरबंदर, भारत में हुआ था। अपने पूरे जीवन में, वे अहिंसक विचारों से प्रेरित रहे। भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराने के लिए बापू ने बहुत संघर्ष किया और अपनी निजी सम्पत्ति का बहुत बड़ा हिस्सा त्याग दिया, लेकिन वे अपने अहिंसक विश्वासों से कभी विचलित नहीं हुए। उनका कानूनी करियर उन्हें दक्षिण अफ्रीका ले गया, जहाँ उन्होंने नस्लीय अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उन्होंने तेरह साल की उम्र में कस्तूरबा से शादी की और लंदन में अपनी स्कूली शिक्षा जारी रखी। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विभिन्न आंदोलनों में अहिंसा का प्रयोग किया, जिसमें चंपारण और खेड़ा आंदोलन, असहयोग आंदोलन, नमक मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन शामिल हैं। उनका प्रभाव दुनिया भर में महसूस किया गया, जिससे नेल्सन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग जूनियर जैसी हस्तियाँ प्रेरित हुईं। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता, पर्यावरण स्थिरता और सामाजिक परिवर्तन में योगदान दिया। उनकी विरासत उनकी अहिंसा विचारधारा पर दृढ़ता से आधारित है। 30 जनवरी, 1948 को उनकी हत्या कर दी गई, फिर भी उनका प्रभाव आज भी कायम है, जिससे उन्हें भारत के इतिहास में प्रसिद्ध “राष्ट्रपिता और बापू” की उपाधि मिली। उनकी विरासत हमेशा जीवित रहेगी, और उनके शब्दों और उदाहरणों से आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा मिलेगी।

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को मुगलसराय, उत्तरप्रदेश में ‘मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव’ के यहां हुआ था। उनकी माता का नाम ‘रामदुलारी’ था। वे सच्चे गांधीवादी थे जिन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से बिताया और उसे गरीबों की सेवा में लगाया। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आंदोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही और उसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेलों में भी रहना पड़ा। स्वाधीनता संग्राम के जिन आंदोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही उनमें 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च तथा 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन उल्लेखनीय हैं। 1961 में गृह मंत्री के प्रभावशाली पद पर नियुक्ति के बाद उन्हें एक कुशल मध्यस्थ के रूप में प्रतिष्ठा मिली। तीन साल बाद जवाहरलाल नेहरू के बीमार पड़ने पर उन्हें बिना किसी विभाग का मंत्री नियुक्त किया गया और नेहरू की मृत्यु के बाद जून 1964 में वह भारत के प्रधानमंत्री बने।

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लेखक डॉ प्रदीप कुमार सिंह देव