13 अक्टूबर: सिस्टर निवेदिता की पुण्यतिथि
सिस्टर निवेदिता का पूरा नाम ‘मार्ग्रेट एलिज़ाबेथ नोबल’ था। इनका जन्म 28 अक्टूबर, 1867, डेंगानेन, आयरलैण्ड में हुआ और मृत्यु 13 अक्टूबर, 1911, दार्जिलिंग, भारत में हुई। इन्हें 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना और राष्ट्रीय चेतना, एकता, पुनर्जागरण व राष्ट्रीय स्वाधीनता के नए विचार, जो 1947 में भारत की स्वतंत्रता में फलीभूत हुए, को बढ़ावा देने वाले प्रखर वक्ताओं में से एक माना जाता है।
निवेदिता ने प्रत्यक्ष रूप से कभी किसी आन्दोलन में भाग नहीं लिया, लेकिन उन्होंने भारतीय युवाओं को प्रेरित किया, जो उन्हें रूमानी राष्ट्रीयता और प्रबल भारतीयता का दर्शनशास्त्री मानते थे। 1895 में मार्ग्रेट स्वामी विवेकानन्द से उनकी इंग्लैण्ड यात्रा के दौरान मिलीं। वह वेदान्त के सार्वभौम सिद्धान्तों, विवेकानन्द की मीमांसा और वेदान्त दर्शन की मानववादी शिक्षाओं की ओर आकर्षित हुईं तथा उन्होंने विवेकानन्द के 1896 में भारत आने से पहले तक वह इंग्लैण्ड में वेदान्त आन्दोलन के लिए काम करती रहीं। उनके सम्पूर्ण समर्पण के कारण विवेकानन्द ने उन्हें निवेदिता नाम दिया, जिसका अर्थ है- ‘जो समर्पित है’। आरम्भ में वह एक शिक्षिका के रूप में भारत आई थीं, ताकि विवेकानन्द की स्त्री-शिक्षा की योजनाओं को मूर्त किया जा सके। उन्होंने कोलकाता के एक छोटे से घर में स्थित स्कूल में कुछ महीनों तक पश्चिमी विचारों को भारतीय परम्पराओं के अनुकूल बनाने के प्रयोग किए। भारत में विधिवत दीक्षित होकर वह स्वामी जी की शिष्या बन गई और उन्हें रामकृष्ण मिशन के सेवाकार्य में लगा दिया गया। इस प्रकार वह पूर्णरूप से समाजसेवा के कार्यों में निरत हो गई और कलकत्ता में भीषण रूप से प्लेग फैलने पर भारतीय बस्तियों में प्रशंसनीय सुश्रुषा कार्य उसने एक आदर्श स्थापित कर दिया। उत्तरी कलकत्ता के उस भाग में एक बालिका विद्यालय की स्थापना उन्होंने की, जहाँ पर घोर कट्टरपंथी हिन्दू बहुसंख्या में थे। प्राचीन हिन्दू आदर्शों को शिक्षित जनता तक पहुँचाने के लिए अंग्रेज़ी में पुस्तकें लिखीं और सम्पूर्ण भारत में घूम-घूमकर अपने व्याख्यानों के द्वारा उनका प्रचार किया। वह भारत की स्वतंत्रता की कट्टर समर्थक थीं और अरविंदो घोष सरीखे राष्ट्रवादियों से उनका घनिष्ठ सम्पर्क था। उनकी मृत्यु दार्जिलिंग में 44 वर्ष की आयु में हुई। भारतीयों के साथ उनके घनिष्ठ सम्पर्क के दौरान यहाँ के लोगों ने अपनी ‘सिस्टर’ को पूज्य भावना के साथ श्रद्धापूर्ण प्रशंसा और प्रेम दिया। उनकी समाधि पर अंकित है-यहाँ सिस्टर निवेदिता का अस्थि कलश विश्राम कर रहा है, जिन्होंने अपना सर्वस्व भारत को दे दिया।