राष्ट्रीय

त्योहार और आर्थिक उत्सव की लालसा

भारत उत्सवधर्मी देश है। यहां विभिन्न परंपराओं और क्षेत्रीय संस्कृति का सम्मिश्रण कई नए रंग- बिरंगे अवसर पैदा करता है, जब देशवासियों को उत्सव मनाते देखा जा सकता है। उत्सवधर्मी इस देश में आर्थिक लाभ यही होता है कि साधारण व्यक्ति भी अपनी आर्थिक सीमा से बाहर जाकर खर्च करता है। त्योहार के दिनों में बाजारों में मंदी की उदासी नहीं फैलती। इतने बड़े देश में चूंकि ऐसा होता ही रहता है, इसलिए आज जब पूरा विश्व आर्थिक मंदी और गिरती हुई मांग के चंगुल में फंसा है, भारत की आर्थिक विकास दर सब देशों से आगे है। मगर हम आठ फीसद की विकास दर तक नहीं पहुंच पाए। पिछले वर्ष इस विकास दर के करीब पहुंच गए थे, इस वर्ष के अंत में यह सात फीसद से भी नीचे जाती दिखाई देती है, लेकिन फिर भी मांग की कमी भारत के लिए कोई समस्या नहीं। हां, इस मांग को पूरा करने के लिए उचित उत्पादन बढ़ाने की समस्या हो सकती है। जैसा कि अर्थशास्त्री और रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी कहा राजन ने भी कहा है कि देश विनिर्माण और कृषि विकास की ओर ध्यान दे। उनका कहना है कि पिछले वर्षों में जिन बुनियादी उद्योगों के विकास की ओर हमने ध्यान दिया, उसी के फलस्वरूप आज तरक्की की की मंजिलें तय कर रहे हैं।
आज हम दुनिया की पांचवीं आर्थिक महाशक्ति हैं, तीसरी आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना देख रहे हैं और उम्मीद करते हैं कि 2047 जब आजादी का शताब्दी महो का शताब्दी महोत्सव मनाएंगे, तो अपना देश विकसित हो चुका होगा और अगर यह दुनिया की सबसे ताकतवर आर्थिक शक्ति नहीं बनता, , तो भी यह चौथी औद्योगिक क्रांति का अगुआ होगा, जो इस बार पूरब से और तीसरी दुनिया से उभरेगी। अपने सांस्कृतिक मूल्यों 5 बल पर पूरी दुनिया का गुरु बन कर उसको रास्ता भी दिखाएगा। है आने वाले दिनों की बात इस समय खबरें भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर आ रही हैं, वे अच्छी हैं। नीति निर्माता भी कुछ ऐसे कदम उठा लेना चाहते हैं जिससे जनता का भला हो सके। इस पर कुछ विवेचन कर लिया जाए। चाहे दावा किया जा रहा है कि नए कर्तव्य समर्पित विकास के माहौल में रोजगार सृजन हो रहा है, लेकिन यह रोजगार कहां हो रहा है? रोजगार की एक अजब स्थिति पैदा हो रही है। जिन लोगों के पास इस बदलती हुई दुनिया की प्रौद्योगिकी का शिक्षण-प्रशिक्षण है, उनके लिए तो नौकरियों की कतार लगी है और कला और विज्ञान संकायों से निकल कर आए नौजवान अपना कोई भविष्य इस बदलते भारत में नहीं पाते। उनके लिए रोजगार प्रदान करने वाले लघु और कुटीर उद्योगों का कोई नया अभियान नजर नहीं आता। आता भी है, तो उसमें निजी क्षेत्र और ‘स्टार्टअप’ के नाम पर परोक्ष और प्रत्यक्ष रूप से धनकुबेरों के लिए भी चोर दरवाजे खोले जा रहे हैं। तो, भारत की प्रगति को समझ कर रोजगार देने का गंभीर प्रयास हो, ताकि देश का निर्माण उसकी विशेष पहचान के अनुसार हो। उस
पर उधार के लबादे ओढ़ा कर उसका वह आधुनिकीकरण न किया जाए, जो उसके मिजाज में नहीं।
वैसे, देश में धूमधाम है कि आने वाले त्योहारी मौसम में प्रगति ही प्रगति, विकास ही विकास दिखाई देगा। इसके साक्षी हैं, शेयर बाजार के सूचकांक और निफ्टी के नए शिखर, क्योंकि इसमें न केवल भारतीय. बल्कि अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का भरोसा भी दिखता है कि जैसे ही अमेरिका ने अपनी फेडरल नीति में पचास आधार अंक की कमी की, तो विदेशी निवेश जो निकला जा रहा था, वह भारत लौटने लगा। इस बीच भारत के स्थानीय निवेशकों ने भी अपने घरेलू निवेश से शेयर बाजार को बिखरने नहीं दिया। तेजी का यह सिलसिला बनाए रखा। इस तेजी के साथ भारत का नया उभरता हुआ मध्यवर्ग और उसका घरेलू निवेश भी बंधी हुई बैंक एफडी के क्षेत्र से थोड़ा रुख बदल कर शेयरों और म्युचुअल फंड की तरफ आ गया, जिसमें नए निवेश को स्थायित्व देना शुरू कर दिया। इधर अंतरराष्ट्रीय स्थिति के मद्देनजर भारत की जनता उम्मीद करती है कि कच्चे तेल के घटते दाम का फायदा उन्हें भी मिलेगा, क्योंकि अभी तक वह महंगाई की समस्या से जूझ रही है। अगर पेट्रोल और डीजल के दामों में इतने लंबे समय के बाद थोड़ी सी कटौती हो जाए, तो उससे उनके लिए महंगाई को नियंत्रित करने की गुंजाइश पैदा हो जाएगी और उत्सव के इन दिनों को एक नया रंग मिल जाएगा।
इस समय पेट्रोलियम कंपनियों की कमाई बढ़ गई है। इसलिए हर विशेषज्ञ यह कहता है कि पेट्रोल और डीजल के दाम जनसाधारण के लिए कुछ कम करने की गुंजाइश है। हमारे आयात भुगतान का बिल भी घट गया, क्योंकि हम अपनी जरूरत का पचासी फीसद तेल आयात करते हैं, तो हो सकता है इसका लाभ उत्सव के दिनों में कुछ कटौती के रूप में जनता को दे दिया जाए। इस बीच पेट्रोलियम कीमतें केवल एक बार दो रुपए घटाई गई, लेकिन इसकी भरपाई भी राज्य सरकारों ने अपना-अपना वैट बढ़ा कर पूरी कर ली। पंजाब ने भी पिछले दिनों वैट दरें बढ़ाई। मार्च में तो इसका दाम 84-85 डालर प्रति बैरल था, तब दो रुपए दाम घटा दिए गए, तो फिर अब क्यों नहीं घटा कर उत्सव के दिनों में लोगों को यह उपहार दे दिया जाए।
स्वास्थ्य एवं जीवन बीमा पर जीएसटी के लिए मंत्री समूह की बैठक 19 अक्तूबर को होने जा रही है। सूचना है कि त्योहारों के के लिए कई वस्तुओं पर जीएसटी घटाने पर विचार हो सकता है। जीवन बीमा पर दरें घटा दी जाएं। यह मांग विपक्ष ही नहीं, सत्तापक्ष के कुछ नेताओं की भी है। समिति के सामने व्यक्तिगत, समूह और वरिष्ठ नागरिकों, मानसिक बीमारी से ग्रस्त लोगों और विभिन्न श्रेणियों के अन्य लोगों के लिए चिकित्सा बीमा दरें घटाने की सोच देर से लंबित है। अब अगर बीमा दरों में कटौती का यह उपहार जनता को मिल जाए, तो इससे बड़ा उत्सव और क्या हो सकता है। पेट्रोल और डीजल की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए इनको भी जीएसटी के दायरे में ले आने का विचार काफी समय ‘चल रहा है। क्यों जाए। इस परवाह के बगैर कि अगर केंद्र इसे जीएसटी दरों अधीन ले आया, तो राज्य अपनी कर दरों को बढ़ा कर ‘कर-खोरी’ शुरू कर देंगे। त्योहारों के दिन शुरू हो गए हैं। जनता को अगर यह चंद कल्याणकारी कदम उठते हुए नजर आ जाएं, तो शायद यह उनके लिए एक बड़ा आर्थिक उत्सव मनाने की भूमिका हो सकती है। वैसे भी कहा जाता है कि भारत प्रजातांत्रिक समाज के लिए प्रतिबद्ध है और गरीब की चिंता, उसे संपन्न देशों से अधिक है।

-लेखक विजय गर्ग