राष्ट्रीय

16 अक्टूबर: विश्व खाद्य दिवस

विश्व खाद्य दिवस प्रत्येक वर्ष ’16 अक्टूबर’ को मनाया जाता है। आज भी दुनिया भर में भूखे पेट सोने वालों की संख्या में कमी नहीं आई है। यह संख्या आज भी तेज़ी से बढती जा रही है। विश्व में आज भी कई लोग ऐसे हैं, जो भूखमरी से जूझ रहे हैं। विश्व की आबादी वर्ष 2050 तक नौ अरब होने का अनुमान लगाया जा रहा है और इसमें क़रीब 80 फीसदी लोग विकासशील देशों में रहेंगे। विश्व समाज के संतुलित विकास के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्य का सर्वांगीण विकास हो। विश्व में लोगों को संतुलित भोजन की इतनी मात्रा मिले कि वे कुपोषण के दायरे से बाहर निकल कर एक स्वस्थ जीवन जी सकें। लोगों को संतुलित भोजन मिल सके, इसके लिए आवश्यक है कि विश्व में खाद्यान्न का उत्पादन भी पर्याप्त मात्रा में हो। दिन पर दिन विश्व की जनसंख्या में हो रही वृद्धि और खाद्य पदार्थों के सीमित भंडार को देखते हुए खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने की ज़रूरत महसूस की गई। इसे ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 16 अक्टूबर, 1945 को रोम में “खाद्य एवं कृषि संगठन” की स्थापना की। संसार में व्याप्त भुखमरी के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने एवं इसे खत्म करने के लिए 1980 से 16 अक्टूबर को ‘विश्व खाद्य दिवस’ का आयोजन शुरू किया गया। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य दुनिया से भुखमरी को खत्म करना है। आज भी विश्व में करोड़ों लोग भुखमरी के शिकार हैं। वर्तमान समय में यह बहुत आवश्यक हो गया है कि विश्व से भुखमरी मिटाने के लिए अत्याधुनिक तरीके से खेती की जाये। इस दिवस का उद्देश्य खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के लिए विकासशील देशों के मध्य तकनीकी एवं वित्तीय सहयोग बढ़ाना और विकसित देशों से आधुनिक तकनीकी मदद उपलब्ध कराना है। संयुक्त राष्ट्र की तमाम संस्थाओं द्वारा विकासशील देशों में ग़रीबी एवं भूखमरी से निपटने के लिए तमाम प्रयास भी शुरू किए गए हैं। ख़ासतौर पर अफ़्रीका महाद्वीप के रवांडा, बुरुंडी, नाइजीरिया, सेनेगल, सोमालिया और इरीट्रिया आदि देशों में जहाँ यह समस्या काफ़ी भयावह है। खाद्यान्न की कमी ने विश्व के सर्वोच्च संगठनों और सरकारों को भी सोचने पर विवश कर दिया है। भारत में हाल ही में “खाद्य सुरक्षा बिल” लाया गया है, लेकिन इस बिल का पास होना या ना होना इसकी सफलता नहीं है। सब जानते हैं कि भारत में खाद्यान्न की कमी कोई ख़ास मुद्दा नहीं है, बल्कि सार्वजनिक आपूर्ति प्रणाली और खाद्यान्न भंडारण की समस्या असली समस्या है। भारत में लाखों टन अनाज खुले में सड़ रहा है। यह सब ऐसे समय हो रहा है, जब करोड़ों लोग भूखे पेट सो रहे हैं और छह साल से छोटे बच्चों में से 47 फीसदी कुपोषण के शिकार हैं। ऐसा नहीं है कि भारत में खाद्य भंडारण के लिए कोई कानून नहीं है। 1979 में ‘खाद्यान्न बचाओ’ कार्यक्रम शुरू किया गया था। इसके तहत किसानों में जागरूकता पैदा करने और उन्हें सस्ते दामों पर भंडारण के लिए टंकियाँ उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन इसके बावजूद आज भी लाखों टन अनाज बर्बाद होता है।

pradip singh Deo
लेखक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव