दुनिया के लिए एक बड़ी समस्या…
शहरों के विस्तार के साथ ही शहरों में डिब्बाबंद खाने और बोतलबंद पेय का चलन तेजी से बढ़ा है। कई बार पैकिंग के डिब्बे ऐसे होते हैं कि हमें लगता है कि इन्हें धोकर रख लेते हैं, आगे कहीं खाना भर कर ले जाने या कोई और छोटा-मोटा सामान रखने के काम आएंगे। यों लालच में हम अपने घर में भी ढेर सारे प्लास्टिक के डिब्बे, बोतलें, छोटे-मोटे गत्ते के डिब्बे, कार्टन और कांच की बोतलें बढ़ाते जाते हैं। धीरे-धीरे रसोईघर की अलमारियों में ये डिब्बे बढ़ते जाते हैं और फिर थोड़े दिनों बाद रसोईघर एक छोटा संग्रहालय की तरह दिखने लगता है। कई बार कुछ लोग खाली भूखंडों में इन्हें फेंकते देखे जा सकते हैं। इन खाली डिब्बों में खाने की गंध से गाय, कुत्ते भोजन की तलाश में आ जाते हैं । इसी क्रम में कई बार गायों के पेट में प्लास्टिक चले जाने के कारण उन्हें गंभीर बीमारियों से ग्रसित होते देखा जा सकता है। कई बार उनकी मौत तक हो जाती है ।
अक्सर प्लास्टिक का उपयोग न करने के लिए जागरूकता अभियान भी चलाए जाते रहे हैं, लेकिन वे ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ जितने ही चल पाए हैं। कूड़े का उचित निपटान आज भी दुनिया के सामने एक बड़ी समस्या है, क्योंकि जितना उसका उत्पादन होता है, उतने उसके निपटान के प्रयास और साधन आज भी उपलब्ध नहीं हैं । यह दुनिया की एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। वर्ष 2020 में दुनियाभर में 2.20 अरब टन कचरा पैदा हुआ। विश्व बैंक का अनुमान है कि 2050 तक इसका उत्पादन 3.88 अरब टन हो जाएगा। बहुत से स्थानों और शहरों में बड़ी संख्या में कूड़े का एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरण करना निपटान का विकल्प देखा जाता रहा है जो स्थायी हल नहीं है। कचरे के संपर्क में आने से बैक्टीरिया जानवरों और मनुष्यों तक आ जाते हैं और बीमारी का कारण बनते हैं । इससे वायु प्रदूषण बढ़ता है, जो वन्यजीवों और हमारी अर्थव्यवस्था को खतरे में डालता । धरती की सुंदरता नष्ट होती है। कई देशों में इस समस्या का हल समुद्र में भी ढूंढ़ा गया। समुद्र कूड़ा डाल देना भी कम नुकसानदायक नहीं है। समुद्री कूड़ा नौवहन और जलीय जीवों के लिए घातक है ।
कुछ समय पहले आनलाइन खरीदारी के तहत मंगवाई गई एक पुस्तक जब पहुंची, तो पुस्तक पर ध्यान जाने से पहले इस पर ध्यान गया कि उसे एक डिब्बे में बंद करने के लिए क्या- क्या जतन किए गए थे। पुस्तक चौड़ी पारदर्शी टेप से पूरी तरह बंद की गई थी। उसके अंदर एक मोटा कागज था और उसके अंदर फिर प्लास्टिक की एक मोटी ‘शीट’ थी । पुस्तक को इतने मजबूत तरीके से डिब्बाबंद किया गया था कि उसे बिना चाकू से खोला जाना लगभग नामुमकिन था। सवाल है कि एक किताब को सुरक्षित अपनी जगह पहुंचाने के लिए क्या उसे इतने मजबूत तरीके से डिब्बाबंद करने की जरूरत होती है ? आनलाइन खरीदारी में कई ऐसे सामान होते हैं, जिन्हें इसी तरह भेजा जाता है। ऐसे डिब्बाबंद करने में ही कितनी सामग्री लगती होगी? क्या इससे कुछ कम में काम नहीं चल सकता है, जिससे वस्तु सुरक्षित अपनी जगह पहुंच जाए और ज्यादा कचरा भी न पैदा हो ?
दरअसल, अब साफ-सफाई की व्यवस्था में अभिन्न हो गई अव्यवस्था की समस्या गांवों, शहरों, देशों से आगे बढ़कर विश्व की समस्या हो गई है और विश्व से देशों, शहरों और गांवों की भी समस्या बनती जा रही है। लगभग पच्चीस से तीस साल पुराने कूड़े से एक प्रकार का द्रव्य ‘लीचेट’ निकलना शुरू हो जाता है। यह जहरीला होता है । यह कूड़े के पहाड़ों के आसपास के भूजल और मिट्टी में मिलकर उसे जहरीला बना देता है। कूड़े के ढेरों से उठने वाली बदबू और आए दिन उन्हें जलाने से उठने वाला धुंआ, दोनों ही वहां रहने वालों के लिए कष्टदायक हैं। हमारे देश में कचरा निस्तारण की समस्या को लेकर लगातार दायर की जाने वाली याचिकाओं के बाद अब सूखा कचरा निष्पादन नियम 2016 लाया गया है । इन नियमों में सूखे और गीले कूड़े को अलग-अलग रखने के निर्देश दिए गए हैं। ऐसा न करने की स्थिति में दंड का प्रावधान भी रखा गया है।
संविधान के अनुच्छेद 51 (ए) में दिए गए मौलिक कर्तव्यों में स्पष्ट कहा गया है कि ‘जंगल, झील, नदी और वन्य-जीवन जैसे प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा और विकास करना हर नागरिक का कर्तव्य है ।’ कचरा निष्पादन के संबंध में कुछ अन्य नियम ऐसे हैं जो कचरे का जैविक निष्पादन कर उसे संतुलित रखने पर बल देते हैं। इससे संबंधित बहुत- चुनौतियां अभी भी सामने खड़ी हैं, जिनसे निपटने के लिए कानूनों के व्यावहारिक स्तर पर अमल किए जाने की नितांत आवश्यकता है। कई स्थानों पर लगाए गए कचरे से ऊर्जा बनाने वाले संयंत्र भी कारगर सिद्ध नहीं हो पा रहे हैं। इन संयंत्रों से आर्थिक नुकसान भी हो रहा है। इनमें आने वाला गीला कूड़ा व्यर्थ जाता है। केवल सूखा कूड़ा ही ऊर्जा उत्पादन के काम आता है। दूसरे, इन संयंत्रों से अपेक्षित ऊर्जा भी नहीं मिल रही है। कचरा रूपांतरण संयंत्रों से वायु प्रदूषण बहुत अधिक होता है । इस बड़ी समस्या के हल बड़े और छोटे स्तरों पर करने की जरूरत है या यों कहें कि इस ओर कोशिशें तेज करने की महती आवश्यकता है ।
-लेखक विजय गर्ग