देवघर (शहर परिक्रमा)

दिवाली की पूर्व संध्या पर देवघर सेंट्रल स्कूल में विविध कार्यक्रमों का आयोजन

देवघर: उत्सव, पर्व त्यौहार मानवजीवन को उत्साह से भर देते हैं। यही कारण है कि हमारे देश में समय समय पर कोई न कोई उत्सव मनता रहता है। प्राचीनतम संस्कृति के कारण हमारी विरासत सर्वथा सुसंपन्न है। वास्तव में यही हमारी पहचान भी है जो हमें शेष विश्व से अलग करती है। अनेकानेक पौराणिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाला उत्सव दीपोत्सव या दिवाली की पूर्व संध्या पर स्थानीय देवघर सेंट्रल स्कूल परिसर में विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।

उत्सवी माहौल में विद्यालय के नौनिहालों ने अपनी क्रियाशीलता एवं सृजनात्मकता से विद्यालय परिसर को सुसज्जित करने में कोई कोर कसर नहीं रखा।

मौके पर प्राचार्य ने कहा कि रंगोली हमारी प्राचीनतम परंपरा का अंग है । हम प्रतिदिन या त्योहारों के अवसर पर घर के बाहर रंगोली का निर्माण करते हैं। ज्ञात हो कि रंगोली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द रंगावल्ली से हुई है जिसका अर्थ रंगों की पंक्तियाँ है। रंगोली का निर्माण सर्वप्रथम अयोध्या वासियों ने रामचंद्र जी के वनवास से वापस आने के उपलक्ष्य में किया था। हड़प्पा मोहनजोदड़ो के अवशेषों से भी रंगोली निर्माण कला की जानकारी मिलती है। बच्चों के द्वारा विविध ज्वलंत मुद्दों पर आधारित रंगोली बरवस दर्शकों के मनमस्तिष्क को गुदगुदाने के लिए काफी है। रंगोली के माध्यम से सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव, पर्यावरण संरक्षण, पटाखों को न कहे, समग्र भारत व अन्य को प्रदर्शित किया। रंगोली प्रतियोगिता में संस्कृति समूह प्रथम, संस्कार को द्वितीय तथा विरासत को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ। पोस्टर निर्माण में भी पटाखों को न दीया को हाँ का संदेश देकर पर्यावरण की स्वक्षता कायम रखने का संकल्प को दोहराया। दीवाली कार्ड निर्माण में भी बच्चों ने आकर्षक क्रियाशीलता को प्रर्दशित किया। दीया बनाओ व सजाओ में भी बच्चों की कल्पनाशीलता बरबस दाँतो तले उंगली दबाने को विवश करती हैं।

कार्यक्रम को सफल बनाने में अंशु, नेहा, जोया, आकांक्षा, अरबिंद, प्रतिभा मिश्रा व अन्य की भूमिका सराहनीय रही।