9 दिसंबर: कवि रघुवीर सहाय जयंती
रघुवीर सहाय की गणना हिंदी साहित्य के उन कवियों में की जाती है जिनकी भाषा और शिल्प में पत्रकारिता का प्रभाव होता था और उनकी रचनाओं में आम आदमी की व्यथा झलकती थी। उनका जन्म आज ही के दिन 9 दिसंबर, 1929 को हुआ था।
रघुवीर सहाय एक प्रभावशाली कवि होने के साथ ही साथ कथाकार, निबंध लेखक और आलोचक थे। वह प्रसिद्ध अनुवादक और पत्रकार भी थे। उन्हें वर्ष 1982 में उनकी पुस्तक ‘लोग भूल गये हैं’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया। उनकी अन्य पुस्तकें ‘आत्महत्या के विरुद्ध’, ‘हंसो हंसो जल्दी हंसो’ और ‘सीढियों पर धूप में’ भी काफ़ी चर्चित रहीं। सहाय का सम्बंध उस पीढी से था जो स्वतंत्रता के बाद काफ़ी सारी आकांक्षाओं के साथ पली-बढी थी। सहाय ने उन्हीं आकांक्षाओं को अपनी कविताओं में व्यक्त किया है। सहाय की गिनती ऐसे कवियों में भी की जाती है जो प्रेरणा के लिए अतीत में झांकने के बजाय भविष्योन्मुखी रहना पसंद करते थे। वे दैनिक ‘नवजीवन’ में उपसंपादक और सांस्कृतिक संवाददाता रहे। ‘प्रतीक’ के सहायक संपादक, आकाशवाणी के समाचार विभाग में उपसंपादक, ‘कल्पना’ तथा आकाशवाणी[3], में विशेष संवाददाता रहे। ‘नवभारत टाइम्स’, दिल्ली में विशेष संवाददाता रहे। समाचार संपादक, ‘दिनमान’ में रहे। रघुवीर सहाय ‘दिनमान’ के प्रधान संपादक 1969 से 1982 तक रहे। उन्होंने 1982 से 1990 तक स्वतंत्र लेखन किया। उन्होंने अपनी कृतियों में उन मुद्दों, विषयों को छुआ जिन पर तब तक साहित्य जगत् में बहुत कम लिखा गया था। उन्होंने स्त्री विमर्श के बारे में लिखा, आम आदमी की पीडा ज़ाहिर की और 36 कविताओं के अपने संकलन की पुस्तक ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ के जरिए द्वंद्व का चित्रण किया। सहाय एक बडे और लंबे समय तक याद रखे जाने वाले कवि हैं। उन्होंने साहित्य में अक्सर अजनबीयत और अकेलेपन को लेकर लिखी जाने वाली कविताओं से भी परे जाकर अलग मुद्दों को अपनी कृतियों में शामिल किया। सहाय राजनीति पर कटाक्ष करने वाले कवि थे। मूलत: उनकी कविताओं में पत्रकारिता के तेवर और अख़बारी तजुर्बा दिखाई देता था। भाषा और शिल्प के मामले में उनकी कविताएं नागार्जुन की याद दिलाती हैं। अज्ञेय की पुस्तक ‘दूसरा सप्तक’ में रघुवीर सहाय की कविताओं को शामिल किया गया। उस दौर में तीन नाम शीर्ष पर थे – गजानन माधव मुक्तिबोध फंतासी के लिए जाने जाते थे, शमशेर बहादुर सिंह शायरी के लिए पहचान रखते थे, जबकि सहाय अपनी भाषा और शिल्प के लिए लोकप्रिय थे। उनकी दृष्टि से रघुवीर सहाय का चिंतन, उनकी रचनायें और अभिव्यक्ति पक्ष कहानियों के माध्यम से सशक्त बनकर प्रकट हुआ है। उनकी कहानियां हमें यह संदेश देती है कि भाषा के विविध स्तरों का यथोचित उपयोग कैसे किया जाये। उनकी मृत्यु 30 दिसंबर, 1990 को हुई।