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12 जनवरी: राष्ट्रीय युवा दिवस

राष्ट्रीय युवा दिवस भारत में स्वामी विवेकानन्द के जन्म दिवस पर अर्थात 12 जनवरी को प्रतिवर्ष मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयानुसार सन् 1985 ई. को ‘अन्तर्राष्ट्रीय युवा वर्ष’ घोषित किया गया। इसके महत्त्व का विचार करते हुए भारत सरकार ने घोषणा की कि सन् 1985 से 12 जनवरी यानी स्वामी विवेकानन्द जन्म दिन राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में देशभर में सर्वत्र मनाया जाए। राष्ट्रीय युवा दिवस को मनाने के सन्दर्भ में भारत सरकार का विचार था कि स्वामी विवेकानन्द जी का दर्शन एवं उनके जीवन तथा कार्य के पश्चात् निहित उनका आदर्श, यही भारतीय युवकों के लिए प्रेरणा का बहुत बड़ा स्रोत हो सकता है। इस दिन देश भर के विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में तरह-तरह के कार्यक्रम होते हैं, रैलियाँ निकाली जाती हैं, योगासन की स्पर्धा, पूजा-पाठ, व्याख्यान होते हैं और विवेकानन्द साहित्य की प्रदर्शनी लगती है। वास्तव में स्वामी विवेकानन्द आधुनिक मानव के आदर्श प्रतिनिधि हैं। विशेषकर भारतीय युवकों के लिए स्वामी विवेकानन्द से बढ़कर दूसरा कोई नेता नहीं हो सकता। उन्होंने हमें कुछ ऐसी वस्तु दी है जो हममें अपनी उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त परम्परा के प्रति एक प्रकार का अभिमान जगा देती है। स्वामी जी ने जो कुछ भी लिखा है वह हमारे लिए हितकर है और होना ही चाहिए तथा वह आने वाले लम्बे समय तक हमें प्रभावित करता रहेगा। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में उन्होंने वर्तमान भारत को दृढ़ रूप से प्रभावित किया है। वे आधुनिक भारत के एक महान् चिंतक, महान् देशभक्त, दार्शनिक, युवा संन्यासी, युवाओं के प्रेरणास्रोत और एक आदर्श व्यक्तित्व के धनी थे। भारतीय नवजागरण का अग्रदूत यदि स्वामी विवेकानंद को कहा जाए तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। ‘विवेकानंद’ दो शब्दों द्वारा बना है। विवेक+आनंद। ‘विवेक’ संस्कृत मूल का शब्द है। ‘विवेक’ का अर्थ होता है बुद्धि और ‘आनंद’ का शाब्दिक अर्थ होता है- खुशियां। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी सन् 1863 को कलकत्ता में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाई कोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। विश्वनाथ दत्त पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वे अपने पुत्र नरेन्द्र को भी अंग्रेज़ी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढर्रे पर चलाना चाहते थे, परंतु उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थीं। नरेन्द्र की बुद्धि बचपन से ही बड़ी तीव्र थी और परमात्मा को पाने की लालसा भी प्रबल थी। युवाओं के प्रेरणास्रोत, समाज सुधारक स्वामी विवेकानंद ने युवाओं का आह्वान करते हुए कठोपनिषद का एक मंत्र कहा था- उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत अर्थात ‘उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक कि अपने लक्ष्य तक न पहुंच जाओ।’ भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूंकने वाले स्वामी विवेकानंद ने भारतीय युवाओं में स्वाभिमान को जगाया और उम्मीद की नई किरण पैदा की। भारतीय युवा और देशवासी भारतीय नवजागरण के अग्रदूत स्वामी विवेकानंद के जीवन और उनके विचारों से प्रेरणा ले सकते हैं। 4 जुलाई 1902 को बेलूर के रामकृष्ण मठ में उन्होंने ध्यानमग्न अवस्था में महासमाधि धारण कर प्राण त्याग दिए। 39 वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद जो काम कर गए, वे आने वाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे।

pradip singh Deo
लेखक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव

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