नारी तुम केवल श्रद्धा हो!
नारी तो रूप-रंग-रस-गंध पूर्ण साकार कमल है। नारी पुरुष के हृदय को प्रेम रूपी उजाले से भर देती है, वह त्रिकाल, त्रिभुवन, भूत, भविष्यत, वर्तमान हर जगह, हर काल में विद्यमान है। वह पुरुष को कठिनाइयों से उबार कर पुनः गतिशीलता प्रदान करती है। वह अपना अस्तित्व अपनी संतान के द्वारा प्रकट करती है। इसीलिए तो मुझे कवि दिनकर की वह पंक्तियाँ याद आती है। जिसमें वह कहते हैं-
नारी ! तुम धरती हो, गर्भ में छुपाये हो अनगिनत खजाने, कोमल रेणुका, कहीं रसवंती हो, दिनकर की कविता की तुम्हीं उर्वशी हो, नारी की एक दृष्टि धनुष बाण धारण किए करों को शिथिल कर देती है। उसकी शर रूपी चितवन सिंधु को परिमेय बना देती है। उसके अंतरतम गुढ़ रहस्यों को जानना बड़ा ही दुष्कर है। वह समाज का अंग और आदर्श है। हम सभी जानते हैं कि आज ही नहीं सदैव से ही नारी का महत्व रहा है।

एक समय था जब नारी को देवी की उपमा दी जाती थी और उसकी ममता पाने के लिए ईश्वर को राम और कृष्ण बनकर धरती पर आना पड़ा था। नारी मां के रूप में ममता, बहन के रूप में स्नेह मित्र के रूप में त्याग और पत्नी के रूप में प्रेम लुटाती है। एक परिवार में नारी की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। वह गृहिणी के रूप में अच्छे परिवार का निर्माण करती है तो एक अच्छा समाज बनता है। अच्छे समाज से अच्छे राष्ट्र का और अच्छे राष्ट्रों से अच्छे विश्व का निर्माण होता है। भारत में अहिल्या हुई है, तो सीता भी। पांचाली हुई हैं तो गांधारी भी। समाज में नारी की महत्त्व के कारण ही पुरुषों के नाम के आगे सदैव नारी का नाम जुड़ता रहा है जैसे भवानी शंकर, राधेश्याम, सीताराम, राधेकृष्ण लक्ष्मी शंकर आदि। जैसे-जैसे मानव का विकास होता गया वैसे-वैसे उनकी सोच और वस्तु स्थितियों में लगातार बदलाव आता गया जो बड़ी ही स्वाभाविक और सामान्य सी बात है। वैदिक काल से से लेकर आज तक के साहित्य को उठाकर देखने से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि नारियों को लेकर सदैव लोगों का चिन्तन बदलता रहा है।