बुद्ध पूर्णिमा विशेष: बुद्ध आज भी प्रासंगिक हैं
देवघर। बुद्ध पूर्णिमा 12 मई यानी आज है। वैशाख मास की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा कहते हैं। यह बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण त्योहार है, इसे बुद्ध जयंती के नाम से भी जाना जाता है।
वैशाख मास की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा कहते हैं। यह बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण त्योहार है, इसे बुद्ध जयंती के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस शुभ दिन पर ही गौतम बुद्ध का जन्म और उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। उनके जीवन में तीन अधिक महत्वपूर्ण घटनाएं रही है, पहला उनका जन्म, दूसरा ज्ञान और तीसरा मोक्ष, यह सभी एक ही तिथि पर आते हैं। इस पावन दिन विधि- विधान से भगवान बुद्ध की पूजा- अर्चना करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। बुद्ध की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं और हमें शांति, करुणा और ज्ञान का मार्ग दिखाती हैं। उन्होंने 483 ईसा पूर्व में कुशीनगर में अपना निर्वाण प्राप्त किया, जिसे ‘महापरिनिर्वाण’ कहा जाता है। बुद्ध का जीवन और उनकी शिक्षाएं हमें यह सिखाती हैं कि सच्ची खुशी बाहरी सुखों में नहीं, बल्कि आंतरिक शांति और ज्ञान में निहित है। बुद्ध की शिक्षाओं का गहरा प्रभाव भारतीय संस्कृति और दर्शन पर पड़ा है। उन्होंने अहिंसा, करुणा, और मैत्री के सिद्धांतों पर जोर दिया, जो आज भी समाज में शांति और सद्भाव स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने अपने शिष्यों को तर्क और अनुभव के आधार पर सत्य की खोज करने के लिए प्रोत्साहित किया। बुद्ध ने जातिवाद और कर्मकांडों का विरोध किया और सभी मनुष्यों की समानता पर जोर दिया। गौतम बुद्ध, जिन्हें ‘एशिया का प्रकाश’ भी कहा जाता है, विश्व के महान धार्मिक गुरुओं में से एक थे। उन्होंने सत्य, शांति, करुणा और समानता का संदेश दिया, जो आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करता है। उनकी शिक्षाएं बौद्ध धर्म का आधार बनीं, जो दुनिया के प्रमुख धर्मों में से एक है। 29 वर्ष की आयु में, सिद्धार्थ ने सत्य की खोज में अपना राजसी जीवन त्याग दिया। उन्होंने कठोर तपस्या और ध्यान किया। छह वर्षों तक भटकने और विभिन्न गुरुओं से ज्ञान प्राप्त करने के बाद, उन्हें बोधगया में एक पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई। इस ज्ञान के साथ, सिद्धार्थ गौतम ‘बुद्ध’ बन गए, जिसका अर्थ है ‘जागरूक’ या ‘प्रबुद्ध’।
