साहित्य

24 मई: काज़ी नज़रुल इस्लाम जयंती

काज़ी नज़रुल इस्लाम प्रसिद्ध बांग्ला कवि, संगीत सम्राट, संगीतज्ञ और दार्शनिक थे। उन्हें वर्ष 1960 में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया गया था। नज़रुल ने लगभग तीन हज़ार गानों की रचना की और साथ ही अधिकांश को स्वर भी दिया। इनके संगीत के आजकल ‘नज़रुल संगीत’ या “नज़रुल गीति” नाम से जाना जाता है। उनका जन्म 24 मई 1899 को हुआ था। काज़ी नज़रुल इस्लाम का जन्म भारत के पश्चिम बंगाल प्रदेश के वर्धमान ज़िले में आसनसोल के पास चुरुलिया नामक गाँव में एक दरिद्र मुस्लिम परिवार में हुआ था। किशोरावस्था में विभिन्न थिएटर दलों के साथ काम करते-करते उन्होंने कविता, नाटक एवं साहित्य के सम्बन्ध में सम्यक ज्ञान प्राप्त किया। वे बांग्ला भाषा के अन्यतम साहित्यकार, देशप्रेमी तथा बांग्ला देश के राष्ट्रीय कवि हैं। पश्चिम बंगाल और बांग्ला देश दोनों ही जगह उनकी कविता और गान को समान आदर प्राप्त है। उनकी कविता में विद्रोह के स्वर होने के कारण उनको ‘विद्रोही कवि’ के नाम से जाना जाता है। उनकी कविता का वर्ण्य विषय ‘मनुष्य के ऊपर मनुष्य का अत्याचार’ तथा ‘सामाजिक अनाचार तथा शोषण के विरुद्ध सोच्चार प्रतिवाद’ है। उन्होंने लगभग 4,000 (ग्रामोफोन रिकॉर्ड सहित) गानों की रचना की तथा साथ ही अधिकांश को स्वर भी दिया। इनको आजकल ‘नज़रुल संगीत’ या ‘नज़रुल गीति’ नाम से जाना जाता है। अधेड़ उम्र में काज़ी नज़रुल इस्लाम ‘पिक्‌स रोग’ से ग्रसित हो गए थे, जिसके कारण शेष जीवन वे साहित्य कर्म से अलग हो गए। बांग्ला देश सरकार के आमन्त्रण पर वे 1972 में सपरिवार ढाका आये। उस समय उनको बांग्ला देश की राष्ट्रीयता प्रदान की गई। यहीं 29 अगस्त, 1976 को उनकी मृत्यु हुई। इनके सामूहिक संगीत और कविताओं का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान व्यापक रूप से उपयोग किया गया है। संगीत बहुत ही प्रेरक और क्रांतिकारी है, जिसमें मजबूत और शक्तिशाली शब्द और मनमोहक धुनें हैं। यह हर चीज की चरम सीमाओं के बारे में बात करता है। उन गीतों के बोल उत्तेजक हैं, क्योंकि वे रूढ़िवाद के खिलाफ और दर्शन और आध्यात्मिकता के व्यापक पैरामीटर पर जीवन के बारे में बात करते हैं। नजरुल के सामूहिक संगीत की खूबसूरती इसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में निहित है, जिसकी काफी आलोचना भी हुई। हालांकि, जो लोग इसके दर्शन को समझते थे, उन्होंने साहस और सीधेपन की प्रशंसा की। उन्होंने अपने संगीत का इस्तेमाल अपने क्रांतिकारी विचारों को फैलाने के लिए किया, मुख्य रूप से मजबूत शब्दों और शक्तिशाली, लेकिन आकर्षक धुनों के इस्तेमाल से। क्रांतिकारी गीतों में, करार ओई लोहो कोपट सबसे प्रसिद्ध है और इसका इस्तेमाल कई फिल्मों में किया गया है, खासकर बांग्लादेश की स्वतंत्रता-पूर्व अवधि के दौरान बनी फिल्मों में ।

pradip singh Deo
लेखक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव

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