प्रथम पुण्यतिथि पर ‘शब्दयात्रा भागलपुर’ ने याद किया हास्यावतार कविश्री रामावतार ‘राही’ को
वृहस्पतिवार 30 मई 2024 के अपराह्न ‘शब्दयात्रा भागलपुर’ द्वारा देश के सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग कवि श्री रामावतार राही की ‘प्रथम पुण्यतिथि’ पर एक ‘ऑनलाइन भावांजलि’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए ‘शब्दयात्रा भागलपुर’ के अध्यक्ष सह वरिष्ठ पत्रकार पारस कुंज ने कहा कि ‘राही जी की लोकप्रियता और महत्ता इसी बात से लगाई जा सकती है कि, मंचों पर गाये उनके गीतों को टेपरिकॉर्डर में रिकॉर्ड कर श्रोता घरों में भी जाकर सुना करते थे !’
बिहार अंगिका अकादमी पटना के निवर्तमान अध्यक्ष डॉ लखनलाल सिंह आरोही ने कहा – ‘हरिशंकर परसाई की परम्परा में अंगभूमि के शिखर व्यंग्यकार श्री रामावतार ‘राही’ हिन्दी व्यंग्य को अपने तेजाबी व्यंग्य के अवदान से समृद्ध कर भागलपुर की अस्मिता को गौरवान्वित करने वाले आलोक स्तम्भ थे !”
इस अवसर पर रामावतार ‘राही’ के वगलगीर कविश्री मुरारी मिश्र ने उनके बिछुड़न की पीड़ा को अपने शब्दों में कुछ यूं सुनाया – ‘इस संतनगर में था इन्सान बढ़ा प्यारा, सबको हंँसाने वाला खुद रोता था बेचारा !’ … ने माहौल को गमगीन कर दिया ।
सम्मानित पत्रिका ‘किस्सा’ की सम्पादिका सुश्री अनामिका शिव ने कहा – ‘अमर रहे उनकी हंँसी, अमर रहे उनका व्यंग, शब्दों से जिसने लिखी, जीवन की हरेक तरंग ! हर पंक्ति में बसती है, उनकी सजीव पहचान, हमेशा दिलों में जिंदा रहेंगे वो अनमोल इंसान !’
राही जी की सुपुत्री कविता राही ने अपनी वेदना और पिता की सीख को याद किया – ‘मेरे पिता जीवनभर कठिनाईयों से जुझते रहे, फिर भी एक बात मैंने उनसे सीखीं हैं कि कभी किसी से भी ईर्ष्या मत करना ! जब भी ये बात मन में आए, अपने से नीचे वाले लोगों को देखकर खुश रहा करना !’
समकालीन कविता के प्रतिष्ठित कवि श्री विनय सौरभ ने कहा – ‘जो लोग शहर की सांस्कृतिक प्राणवायु को बनाए रखते हैं और निर्लिप्त भाव से अपने काम में लगे रहते हैं, रामावतार ‘राही’ उनमें से एक थे । अंग जनपद की कविता-यात्रा में उनकी भूमिका को लोग याद रखेंगे !’
अंगिका ध्वनि वैज्ञानिक डॉ० रमेशमोहन आत्मविश्वास ने राही और मंजिल की बात कुछ यूं कहीं – ‘अंग अंगिका पथ के वे राही, कहलाते थे रामावतार ‘राही’, अपनी धुन लगन में वे चलते
जग रोया, वे मंजिल पा गये !’
नवगछिया की सम्मानित कवयित्री श्रीमती मीरा झा ने कहा – ‘राही’ जी चले गए रहनुमाई करते करते, दिल खोलकर मिलते हंँसते हंँसाते, गम और मुफलिसों की राह के ‘राही’, चले गए हास्य को अमर करते करते !’
अजगैबीधाम से चर्चित युवा कवि सुधीर कुमार प्रोग्रामर की बात कुछ अलग ही थी – ‘व्यंग-तरकस से मचाते थे तबाही मंच पर, लूट लेते हँस-हंँसा कर वाह-वाही मंच पर, एक ‘बगुला’, एक टोपी, हास्य के धनवान थे, गम-गरल पीकर हंँसाते राम-राही मंच पर !’
वीरकुंवर सिंह चौक से युवा कवि कमलकान्त कोकिलि के शब्द – ‘जिंदगी खत्म हो जाती है, कृति उनकी अमर रह जाती है, आप नहीं हों आपकी कमी, ‘राही’ सबको खल जाती है !’
काव्यजगत की युवा आवाज श्री विकास सोलंकी ने कहा –
‘राही’ जी की कृति को भुलाया नहीं जा सकता । मैं उनकी सरलता सहजता एवं आत्मीयता को याद कर अत्यंत भावुक हूंँ । मैंने अपना पहला काव्य-पाठ उन्हीं के प्रोत्साहन से कुपेश्वरनाथ मन्दिर में किया था !’
खगड़िया से नई पीढ़ी की तेजतर्रार कवयित्री डॉ स्वराक्षी स्वरा के शब्द – ‘जिस हृदय में सर्वदा परोपकार का वास है, उसके लिए ये जिंदगी, खुला खुला आकाश है ! सुप्रसिद्ध हास्य व्यंग्य कवि रही जी भी साहित्याकाश में हमेशा जगमगाते रहेंगे !’