साहित्य

कहानी: जान की कीमत एक रूपया 

सूरज की लालिमा के साथ आंख खुलते ही बेटी सोनी का ताप देख रीमा सोच में पड़ गई। वक्त के साथ बिगड़ती तबीयत देख वह फौरन चौराहे के दवाखाना पहुंची। 

 “भैया, दो पेरासिटामोल की गोली दे दीजिए और कुछ एंटीबायोटिक भी।” “मैडम पहले प्रिसक्रिप्शन दिखाइए, दुकानदार ने कहा।

 “भैया ऐसे ही दे दीजिए, डॉक्टर के पास नहीं गए हैं। अचानक सुबह उठकर देखा तो बच्ची बिल्कुल बुखार से तप रही थी।”

” मैडम, लेकिन बिना प्रिस्क्रिप्शन के हम दवा नहीं देते।”

” प्लीज भैया, अभी मात्र 7:00 बज रहे हैं डॉक्टर 10 से पहले नहीं आएंगे।”

 इतने में रीमा के हालात देख उन्होंने दवा निकाल कर दे दी। रीमा फौरन ‌घर भागी और सोनी को दवा दी। 

 करीब दो घंटे बीत गए, लेकिन बुखार पर कोई असर न देखकर उसने पिता को सारी सूचना दी, जो 45 दिनों से ट्रेनिंग में नेपाल बॉर्डर पर तैनात थे। यह सुनते ही उन्होंने फौरन डॉक्टर को दिखाने की सलाह दी।

 दस बजने ही वाले थे कि रीमा बेटी सोनी को लेकर नर्सिंग होम पहुंची। डॉक्टर साहब उसे जांच कर प्रिस्क्रिप्शन बताते हुए, यदि कल तक बुखार कम नहीं हुआ तो ब्लड टेस्ट करवाना होगा। इतने में रीमा ने सोनी को पहले खिलाई दवाई के पत्ते को डॉक्टर साहब को दिखाया — सर यह दवा मैंने आज सुबह दी थी, लेकिन इससे उसकी तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ। 

  डॉक्टर साहब बड़े गौर से देखते रहे। “कहां से ली आपने यह दवाई ?”

” बेटी सोनी की बिगड़ी तबीयत देख सामने के चौराहे की अमृत भैया की दुकान से …”

“डॉक्टर साहब मौन रहे, फिर बोले– यह मत खिलाएगा , इसकी डेट एक्सपायर हो चुकी है।”

क्या!!

“हां , आपने खरीदा तो देखा नहीं, “

“नहीं सर मैंने कुछ ध्यान नहीं दिया। वो

 बार-बार मुझसे प्रिस्क्रिप्शन मांग रहे थे मगर मैंने उन्हें ऐसे ही देने को कहा ..”

“आप लोग ना इसलिए तो…” अरे पैसे दे रहे हैं तो थोड़ा जांच करके तो सामान लिया कीजिए .!”

“वह मन ही मन सोचते रहे, इतनी सुविधा के बावजूद भी लोगों के ये हालात…. यह यहीं छोड़ दीजिए।”

“सिर झुकाए रीमा वहां से चली गई।”

 प्रिस्क्रिप्शन दिखाकर फिर से आप नई दवाइयां ले लीजिए।

“जी जरूर सर”

रीमा ने अन्य मेडिकल स्टोर से दवा ली, और यह दवाई फौरन अपना रंग भी दिखाने लगी। वहीं डॉक्टर साहब के गले से एक्सपायरी डेट वाली दवा की बात नहीं उतर रही थी। वह घर लौटते हुए अमृत भाई की दुकान पर पहुंचे ।

“अरे डॉक्टर साहिब आप ! अमृत भाई ने कहा” हां , जरा तबीयत कुछ सही नहीं लग रही है, मुझे दो पेरासिटामोल की गोली दे देना।”

 अरे बैठिए , अभी देता हूं…

 आगे करते हुए लीजिए,

 डॉक्टर साहब वहीं खड़े दवाइयों को गौर से देखते रहे। लेकिन खुद को रोक न सके और बोले “क्या आप लोग बिना प्रिस्क्रिप्शन के दवाइयां देते हैं .”

“सर, वैसे तो नहीं देते, मगर अब आपसे…..’

“अच्छा चलिए, कोई बात नहीं, क्या आपने यह दवाई आज सुबह किसी को दी थी ?

“ऐसा तो मुझे कुछ याद नहीं, लेकिन वह मन ही मन सोचने लगे।”

 ‘ख्याल कीजिए शायद कुछ याद आ जाए।” 

“अरे सर सारा दिन हजारों लोग दवाइयां ले जाते हैं, कहां इतना ख्याल रहता हैं।”

“आपकी बात तो सही है” इतने में अमृत भाई ने कहा–ये दवाई शायद आज राम-राम के बेला में एक महिला ले गई थी, कुछ उसकी बच्ची को अचानक बहुत ताप आ गया था, और मेरे पास नया स्टॉक नहीं था तो यही दे दिया।”

 ” लेकिन अमृत भाई यह तो दो महीना पहले ही एक्सपायर हो चुका है।”

 ” हां साहब , जल्दी-जल्दी में कुछ ख्याल नहीं किया । “

अमृत भाई आप समझ नहीं सकते हैं कि आपकी एक छोटी-सी गलती किसी की जान भी ले सकती थी। जानते हैं, एक मरीज जब दवा लेने दवा खाना आता है तो डॉक्टर के बाद उसे ही फरिश्ता मान लेता है। वह कागज पर स्याही तो जरूर देखता है लेकिन अनजाना सा।!

“हां, आपकी बात तो सही है ,

अमृत भाई ऐसी चीज आप लोग रखते ही क्यों हैं? मेरी बात मानिए, जितनी दवाइयां एक्सपायर हो चुकी हैं, उन्हें कंपनी को रिटर्न क्यों नहीं करते। आज तो सोशल मीडिया का जमाना है, एक रिटर्न मैसेज कीजिए उनकी कंपनी के सदस्य यहां आकर स्वयं ही ले जायेंगे। केवल कुछ प्रतिशत की ही तो आपकी हानि होगी।

 डॉक्टर साहब की बात सुन अमृत भाई फौरन कंपनी को रिटर्न मैसेज किये और सारी एक्सपायर दवाइयां पैक करवा दीं। यह देख अमृत भाई के चेहरे पर शर्मिंदगी की हंसी आई तो वही डॉक्टर साहब को कुछ अच्छा करने की तसल्ली हुई।

लेखिका डॉली साह, हैलाकादी (असम) हैं