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वन्यजीव विशेषज्ञ पद्मश्री डॉ. रॉबिन बनर्जी की पुण्यतिथि आज

आज अपने वतन के यशस्वी पर्यावरणविद्, चित्रकार, फोटोग्राफर और दस्तावेजी फिल्म निर्माता डॉ. रॉबिन बनर्जी की पुण्यतिथि है। आज ही के दिन 6 अगस्त, 2003 को उनकी मृत्यु हुई थी।

रॉबिन बनर्जी ने कुल 32 डॉक्यूमेंट्री बनायीं। उन्होंने वाइल्ड-लाइफ को बचाने और सहेजने के लिए खुद को इस तरह से समर्पित कर दिया था कि अपने मेडिकल प्रोफेशन को बिल्कुल ही छोड़ दिया। प्रकृति और पर्यावरण के प्रति उनके इसी समर्पण के लिए उन्हें 1971 में ‘पद्म श्री’ से नवाज़ा गया। उन्हें अपनी वाइल्ड-लाइफ फिल्मों के लिए 14 अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाज़ा गया था। वे पेशे से एक डॉक्टर थे जिन्होंने दूसरे विश्व युद्ध में रॉयल नेवी में अपनी सेवाएं दीं थीं। उन्होंने काज़ीरंगा का परिचय पूरी दुनिया से कराया। उनका जन्म 12 अगस्त, 1908 को पश्चिम बंगाल के बहरामपुर में हुआ था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा शांतिनिकेतन से हुई। फिर उन्होंने ‘कोलकाता मेडिकल कॉलेज’ से डिग्री ली। इसके बाद की उनकी पढ़ाई लिवरपूल और एडिनबर्ग से हुई। साल 1937 में उन्होंने लिवरपूल में रॉयल नेवी को जॉइन किया। दूसरे विश्व युद्ध में उन पर युद्ध का बहुत प्रभाव पड़ा और इसके बाद वह अपनी ज़िन्दगी कहीं शांति और सुकून के बीच बिताना चाहते थे। इसलिए उन्होंने भारत वापिस लौटने का निर्णय किया। यहाँ साल 1952 में असम चबुआ टी एस्टेट में उन्हें एक स्कॉटिश डॉक्टर के साथ काम करने का मौका मिला। उनका परिचय काज़ीरंगा से हुआ। हाथी पर बैठकर उन्होंने इस मंत्रमुग्ध कर देने वाले जंगल की सिर्फ एक यात्रा की और इस जगह ने उनके दिल में अपनी जगह बना ली। कुछ समय बाद उन्हें 1954 में बोकाखाट के धनाश्री मेडिकल एसोसिएशन के चीफ मेडिकल अफसर के पद पर नियुक्त किया गया। बोकाखाट, काज़ीरंगा से बहुत पास है और यहाँ से उनके प्रकृति प्रेम की शुरुआत हुई। उनके एक ब्रिटिश दोस्त ने उन्हें बहुत छोटा 8 मि.मी. वाला सिने-कैमरा गिफ्ट किया था और इसी कैमरे से उन्होंने एक फोटोग्राफर और फिल्म-मेकर के तौर अपने कॅरियर की दूसरी पारी की शुरुआत की। अब वह हर थोड़े दिनों में नेशनल पार्क की सैर करने लगे। जल्दी ही उनके 8 मि.मी. कैमरे की जगह एक प्रोफेशनल 16 मि.मी. कैमरे, पोलार्ड बोरेक्स ने ले ली। इसके छह साल बाद बहुत से फिल्मिंग सेशन के बाद, एक फिल्म, ‘काज़ीरंगा’ सामने आई। ड्रेस्डेन के ज़ूओ गार्डन के डायरेक्टर डॉ. वोफगंग वुलरिच और जूओलॉजिकल सोसाइटी, फ्रैंकफर्ट के एक प्रोफेसर, डॉ. बर्नार्ड ज़ेमिएक ने 1961 में रॉबिन बनर्जी से इस फिल्म को बर्लिन में एक जर्मन टीवी पर ब्रॉडकास्ट करने की अनुमति मांगी। यह काज़ीरंगा का दुनिया से शायद पहला परिचय था। पहली बार दुनिया के लोग स्क्रीन पर एक सींग वाले राइनो को देख रहे थे और यह उनके लिए किसी अजूबे से कम नहीं था। और फिर विश्व को एक महान वाइल्ड-लाइफ फिल्म-मेकर मिल गया। उन्होंने कुल 32 डॉक्यूमेंट्री बनायीं, जिनमें काज़ीरंगा, वाइल्ड लाइफ ऑफ इंडिया, ड्रैगन्स ऑफ़ कॉमोडो आइलैंड, द अंडरवॉटर वर्ल्ड ऑफ़ शार्क्स, राइनो कैप्चर, ए डे एट ज़ू, वाइट विंग्स इन स्लो मोशन, मॉनसून, द वर्ल्ड ऑफ़ फ्लेमिंगो जैसी डॉक्यूमेंट्रीज़ शामिल हैं। उन्होंने वाइल्ड-लाइफ को बचाने और सहेजने के लिए खुद को इस तरह से समर्पित कर दिया कि अपने मेडिकल प्रोफेशन को बिल्कुल ही छोड़ दिया। प्रकृति और पर्यावरण के प्रति उनके इसी समर्पण के लिए उन्हें 1971 में ‘पद्म श्री’ से नवाज़ा गया। उन्हें अपनी वाइल्ड-लाइफ फिल्मों के लिए 14 अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाज़ा गया। वे मरकर भी अमर हैं।

लेखक डॉ प्रदीप कुमार सिंह देव विवेकानंद शैक्षणिक, सांस्कृतिक एवं क्रीड़ा संस्थान के केंद्रीय अध्यक्ष हैं