राष्ट्रीय

3 सितम्बर: सुप्रसिद्ध तबला वादक किशन महाराज जयंती

पंडित किशन महाराज भारत के सुप्रसिद्ध तबला वादक थे। ये बनारस घराने के वादक थे। इन्हें कला क्षेत्र में योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा सन 1973 में पद्म श्री और सन 2002 में पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया था। किशन महाराज तबले के उस्ताद होने के साथ साथ मूर्तिकार, चित्रकार, वीर रस के कवि और ज्योतिष के मर्मज्ञ भी थे।

किशन महाराज

किशन महाराज का जन्म काशी के कबीरचौरा मुहल्ले में 3 सितंबर 1923 को एक संगीतज्ञ के परिवार में हुआ। कृष्ण जन्माष्टमी पर आधी रात को जन्म होने के कारण उनका नाम किशन पड़ा। उन्होंने तबले की थाप की यात्रा शुरू करने के कुछ साल के अंदर ही उस्ताद फ़ैयाज़ ख़ाँ, पंडित ओंकार ठाकुर, उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली खां, पंडित भीमसेन जोशी, वसंत राय, पंडित रवि शंकर, उस्ताद अली अकबर खान जैसे बड़े नामों के साथ संगत की। कई बार उन्होंने संगीत की महफिल में एकल तबला वादन भी किया। इतना ही नहीं नृत्य की दुनिया के महान् हस्ताक्षर शंभु महाराज, सितारा देवी, नटराज गोपी कृष्ण और बिरजू महाराज के कार्यक्रमों में भी उन्होंने तबले पर संगत की। उन्होंने एडिनबर्ग और वर्ष 1965 में ब्रिटेन में कॉमनवेल्थ कला समारोह के साथ ही कई अवसरों पर अपने कार्यक्रम प्रस्तुत कर प्रतिष्ठा अर्जित की। उनके शिष्यों में वर्तमान समय के जाने माने तबला वादक पंडित कुमार बोस, पंडित बालकृष्ण अय्यर, सुखविंदर सिंह नामधारी सहित अन्य नाम शामिल हैं। वे प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे, माथे पर एक लाल रंग का टिक्का हमेशा लगा रहता था, वे जब संगीत सभाओं में जाते, संगीत सभायें लय ताल से परिपूर्ण हो गंधर्व सभाओं की तरह गीत, गति और संगीतमय हो जाती। उनका ज़िंदगी जीने का अन्दाज़ बहुत बिंदास रहा। उन्होंने ज़िंदगी को हमेशा ‘आज’ के आइने में देखा और अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ बिंदास जिया। लुंगी कुर्ते में पूरे मुहल्ले की टहलान और पान की दुकान पर मित्रों के साथ जुटान ताज़िंदगी उनका शगल बना रहा। मर्ज़ी हुई तो भैंरो सरदार को एक्के पर साथ बैठाया और घोड़ी को हांक दिया। तबीयत में आया तो काइनेटिक होंडा में किक मारी और पूरे शहर का चक्कर मार आए। उनकी दिनचर्या पूजा पाठ, टहलना, रियाज, अपने शौक़ पूरे करना, मित्रों से गप्पे मारना था। यह सब ज़िंदगी की आखिरी घड़ी तक जारी रहा। वे बड़ी बेबाकी से कहते थे कि मैं कोई उलझन या दुविधा नहीं पालता बल्कि उसे जल्दी से जल्दी दूर कर देता हूं। ताकि न रहे बांस और न बजे बांसुरी। साठ साल पहले शेविंग के दौरान मूंछें सेट करने में एक तरफ छोटी तो दूसरी तरफ बड़ी हो जाने की दिक्कत महसूस की तो झट से उसे पूरी तरह साफ़ करा दिया। इसके बाद फिर कभी मूंछ रखने की जहमत नहीं उठाई। उनकी दिनचर्या बड़ी नियमित थी। प्रात: छह बजे तक उठ जाते थे। बगीचे की सफाई, चिड़ियों को दाना पानी और फिर टहलने निकल जाते थे। इन्हें लय भास्कर, संगीत सम्राट, काशी स्वर गंगा सम्मान, संगीत नाटक अकादमी सम्मान, ताल चिंतामणि, लय चक्रवती, उस्ताद हाफिज़ अली खान व अन्य कई सम्मानों के साथ पद्मश्री व पद्म विभूषण अलंकरण से नवाजा गया।

pradip singh Deo
लेखक डॉ प्रदीप कुमार सिंह देव