आज विवेकानंद संस्थान का स्थापना दिवस, लगातार 30 वर्ष से सेवा जारी
देवघर: स्थानीय विवेकानंद शैक्षणिक, सांस्कृतिक एवं क्रीड़ा संस्थान की स्थापना आज ही के दिन 11 सितंबर, 1994 को हुई थी। उस वक्त संस्थान का नाम, विवेकानंद भ्रातृ संघ था।
संस्थान के केंद्रीय अध्यक्ष बताते हैं कि सन् 2001 में इसका नाम सर्वसम्मति से बदलकर विवेकानंद शैक्षणिक, सांस्कृतिक एवं क्रीड़ा संस्थान रखा गया। डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव, कृत्यानंद सिंह, सुजीत लाहिड़ी, गोवर्धन पाल एवं मंजू मोदक द्वारा स्थापित संस्थान आज अंतर्राष्ट्रीय पहचान बनाने में कामयाबी हासिल की है। संस्थान के बैनर तले अभी तक लगभग एक लाख पंद्रह हजार व्यक्तियों को पुरस्कृत किया जा चुका है। वर्तमान में मैं डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव अध्यक्ष, देबाशीष मंडल सचिव, प्रभाकर कापरी कोषाध्यक्ष एवं अन्य कई पदाधिकारी पदेन हैं। संस्थान 2014 से राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय समारोह का आयोजन होता आ रहा है। देवघर के अलावे मुर्शिदाबाद, दीघा, पोर्ट ब्लेयर एवं अन्य जगहों में कार्यक्रम भी आयोजित हुआ है।
आगे डॉ. देव ने शिकागो धर्मसभा के बारे में कहा-131 साल पहले आज के दिन विवेकानंद ने दिया ऐसा भाषण कि चमत्कृत हो गए श्रोता। 11 सितंबर 1893 के दिन जब स्वामी विवेकानंद शिकागो में खचाखच भरे हाल में भाषण देने खड़े हुए तो लोगों को अंदाज नहीं था कि इस संन्यासी के शुरुआती शब्द ही उन्हें ऐसा चमत्कृत कर देंगे कि वो फिर उसके भाषण के जादू में खो जाएंगे। मौका था शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन का। विवेकानंद के इस भाषण को आज भी ऐतिहासिक भाषण के तौर पर याद किया जाता है। उन्होंने आध्यात्म और भाईचारे का जो संदेश दुनिया में पहुंचाया, उसने भारत की एक अलग छवि दुनिया के सामने रची। उन्होंने भाषण की शुरुआत ‘मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों’ कहकर की, उनके इन शब्दों ने जादू ही कर दिया। ऐसे शब्द पहली बार सुने गए थे जब हर किसी को भाई और बहन मानते हुए संबोधित किया गया हो। इन शब्दों ने ऐसा चमत्कार किया कि सभागार में कई मिनट तक तालियां बजती रहीं। इसकी गूंज हर कोने से सुनाई दे रही थी। फिर उनके पूरे भाषण को बहुत ध्यान से सुना गया। भाषण के बाद पूरी दुनिया भारत को आध्यात्म के केंद्र के तौर पर देखने लगी। ये हैं स्वामी विवेकानंद के उस विख्यात भाषण के कुछ खास अंश : अमेरिका के बहनों और भाइयों, आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया की प्राचीनतम संत परम्परा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं। सभी जातियों, संप्रदायों के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी। मुझे गर्व है कि हमने अपने दिल में इजरायल की वो पवित्र यादें संजो रखी हैं, जिनमें उनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था। फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली।