3 नवंबर: चित्रगुप्त पूजा पर विशेष
आज पूजे जाएंगे कायस्थों के आराध्यदेव भगवान चित्रगुप्त
समूचे भारतवर्ष में कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को कायस्थ जाति अपने पूर्वज भगवान चित्रगुप्त की पूजा अर्चना धूमधाम से करते हैं। कायस्थ जाति का इतिहास उतना ही पुराना है जितना किसी भी वर्ण या जाति का हो सकता है। वेद, पुराण, उपनिषद और स्मृति ग्रंथ सभी इस बात के साक्षी हैं। हम चित्रगुप्त वंशी हैं,हमारे संबंध में पद्म पुराण, मत्स्य पुराण,स्कंद पुराण एवं गरुड़ पुराण आदि में भी पर्याप्त जानकारियां मिलती हैं। खासकर ऋग्वेद, यजुर्वेद व अथर्ववेद में अनेक ऋचाएं कायस्थ जाति को प्रमाणित करती है।
शिव पुराण के मुताबिक सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि रचना के बाद 11000 (ग्यारह हजार) वर्ष तक समाधि लगाई थी। इस क्रम में उनके शरीर से सांवले वर्ण के भगवान चित्रगुप्त जी प्रकट हुए। जब भगवान ब्रह्मा ने आंखे खोली तो सामने अपनी दूसरी काया देखकर आश्चर्यचकित हो गए। तत्पश्चात ब्रह्मदेव ने कहा तुम मेरी काया से उत्पन्न हुए हो इसलिए तुम्हारी जो संतान होगी वह कायस्थ जाति के नाम से जाने जाएंगे। इसी लिए उन्होंने अपनी मानस काया का नामकरण चित्रगुप्त रखा। साथ ही उन्हें स्वर्ग लोक में पाप व पुण्य का लेखा-जोखा रखने का दायित्व सौंपा। इसके बाद से पृथ्वी पर मनुष्यों द्वारा किए जाने वाले पाप व पुण्य का स्पष्ट निर्धारण स्वर्ग में होने लगा। लिखने पढ़ने की वही परंपरा आज तक चली आ रही है। ब्रह्मा से उत्पन्न हुए हम कायस्थ जाति के लोग कलम पकड़कर उच्चतर बौद्धिक क्षमता वाले कार्य करने लगे। कायस्थ जाति का किसी जाति से द्वेष नहीं रहता है। हम सदैव समाज के सभी वर्गों की सेवा के प्रति प्रतिबद्ध हैं। आज की वैज्ञानिक भाषा में हम बात करें तो हम भगवान ब्रह्मा के क्लोन से उत्पन्न हुए है। हमारे पूर्वज भगवान चित्रगुप्त धर्मराज के इतने समीप हैं की अल्पायु को दीर्घायु कर सकते हैं। भगवान चित्रगुप्त की शादी हुई है। उनकी दो पत्नी नंदिनी एवं शोभावती थी। इन दोनों से क्रमशः आठ संतान पैदा हुए। सभी के नाम क्रमशः श्रीवास्तव, सक्सेना, भटनागर, माथुर, अम्बष्ट,गौड़, निगम, कर्ण,कुलश्रेष्ठ, स्थाना, वाल्मीकि एवं सूर्यध्वज हैं।
पूजा का विधान:
चित्र पूजा के दिन सुबह उठकर भगवान चित्रगुप्त की पूजा नैवेद्य व धूप दीप तथा पुष्प मालाओं के साथ की जानी चाहिए। इस अवसर पर अपने इष्ट देव के समक्ष एक दिन के लिए अपनी लेखनी अर्थात कलम को सुपुर्द कर देनी चाहिए। कहा जाता है कि इस दिन कायस्थ जाति के लोग लिखने पढ़ने से परहेज करते हैं। इससे पूर्व सादे कागज पर मंत्र आदि लिखकर भगवान चित्रगुप्त की आराधना की जाती है। शाम में चित्रांश परिवार आरती और प्रीति भोज का भी निर्वहन करते हैं। देवघर में अनेक मुहल्लों में भगवान चित्रगुप्त की प्रतिमा स्थापित कर लोग अपने आराध्य की पूजा करते हैं। इसके अलावा कायस्थ जाति के प्रत्येक घरों में विधि विधान के साथ भगवान चित्रगुप्त की पूजा की जाती है।