8नवंबर: सितारा देवी जयंती
सितारा देवी भारत की प्रसिद्ध नृत्यांगना थीं। उनका जन्म आज ही के दिन 8 नवम्बर, 1920 को हुआ था। सितारा देवी का नाम कथक नृत्यांगना के रूप में किसी परिचय का मोहताज नहीं है। वे जिस मुकाम पर थीं, वहाँ तक पहुँचने के लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किया था। बहुत कम लोग यह जानते हैं कि मात्र सोलह साल की उम्र में उनका नृत्य देखकर गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने उन्हें “कथक क्वीन” के खिताब से सम्मानित किया था। आज भी लोग इसी खिताब से उनका परिचय कराते हैं।
इसके अतिरिक्त उनके खाते में ‘पद्मश्री’ और ‘कालिदास सम्मान’ भी हैं, जो कथक के प्रति उनकी सच्ची लगन और मेहनत को दर्शाते हैं। उस समय की परम्परा के अनुसार उनका विवाह आठ वर्ष की आयु में ही कर दिया गया था। उनके ससुराल वाले चाहते थे कि वह घरबार संभाल लें, किंतु वह स्कूल जाकर शिक्षा ग्रहण करना चाहती थीं। स्कूल जाने के लिए जिद पकड़ लेने पर उनका विवाह टूट गया और उन्हें ‘कामछगढ़ हाई स्कूल’ में प्रवेश दिला दिया गया। यहाँ उन्होंने एक अवसर पर नृत्य का उत्कृष्ट प्रदर्शन करके सत्यवान और सावित्री की पौराणिक कहानी पर आधारित एक नृत्य नाटिका में भूमिका प्राप्त करने के साथ ही अपने साथी कलाकारों को भी नृत्य सिखाने की ज़िम्मेदारी प्राप्त की। कुछ समय बाद सितारा देवी का परिवार मुम्बई चला आया। फ़िल्मों में कथक को लाने में इनका प्रमुख योगदान रहा था। बाद के दिनों में प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक के आसिफ़ और फिर प्रदीप बरोट से इन्होंने विवाह किया। सितारा देवी ने अपने सुदीर्घ नृत्य कार्यकाल के दौरान देश-विदेश में कई कार्यक्रमों और महोत्सवों में चकित कर देने वाले लयात्मक और ऊर्जा से भरपूर नृत्य प्रदर्शनों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। वह लंदन में प्रतिष्ठित ‘रॉयल अल्बर्ट’ और ‘विक्टोरिया हॉल’ तथा न्यूयार्क के ‘कार्नेगी हॉल’ में अपने नृत्य का जादू बिखेर चुकी हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि वे न सिर्फ़ कथक, बल्कि भरतनाट्यम सहित कई भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों और लोक नृत्यों में पारंगत हैं। उन्होंने रूसी बैले और पश्चिम के कुछ और नृत्य भी सीखें हैं। उनके कथक में बनारस और लखनऊ के घरानों के तत्वों का सम्मिश्रण दिखाई देता है। वह उस समय की कलाकार हैं, जब पूरी-पूरी रात कथक की महफिल जमी रहती थी।