अंतर्राष्ट्रीय

02 दिसंबर: अंतरराष्ट्रीय दास प्रथा उन्‍मूलन दिवस

अंतरराष्ट्रीय दास प्रथा उन्‍मूलन दिवस प्रतिवर्ष 2 दिसम्बर को मनाया जाता है। इस दिवस को मनाये जाने का मुख्य उद्देश्य यही है कि सम्पूर्ण विश्व से दास प्रथा को समाप्त करना है। दास प्रथा विश्व के अधिकांश देशों में प्राचीन समय से ही व्याप्त रही है। इस प्रथा का उन्मूलन करने के लिए दुनिया भर में भले ही कितने भी प्रयास किए जा रहे हों, लेकिन यह प्रथा किसी-न-किसी रूप में आज भी जीवित है। संयुक्त राष्ट्र की ओर से 2 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय दास प्रथा उन्मूलन दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा की गई है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानव तस्करी और वेश्यावृत्ति को रोकने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसके बाद से हर साल 2 दिसंबर को यह दिवस मनाया जाता है। आज बेरोज़गारी का सामना कर रहे देशों के नागरिकों के दूसरे देशों में घरेलू नौकरों और कामगारों के तौर पर काम करने के रूप में दास प्रथा अब भी कायम है। भारत में समय-समय पर बेरोज़गारी लोगों को फ़र्जी दस्तावेजों के माध्यम से नौकरी के बहाने विदेशों में भेजने और वहां उनके शोषण के मामले सामने आते हैं। कुछ साल पहले केरल की एक महिला को काम के बहाने सऊदी अरब भेजने और वहां उसे एक शेख के यहां घरेलू नौकरानी बनाने का मामला सामने आया था। महिला के मालिक ने उस पर अत्याचार करते हुए उसके शरीर को कीलों से छेद दिया था, जिसके बाद किसी तरह महिला ने अपनी जान बचाई। इस मामले ने एक बार फिर नौकरी के बहाने विदेशों में जाने और वहां दासों की तरह रहने वाले भारतीयों का मामला सुर्खियों में ला दिया। मेंगलूर में जुलाई, 2010 में हुए विमान हादसे में मारे गए कई लोग भी फ़र्जी पासपोर्ट से खाड़ी देशों में गए थे। हादसे के बाद इस बात का खुलासा हुआ था कि दक्षिण भारत की कई एजेंसियां लोगों को नौकरी के बहाने विदेश भेजकर उन्हें दूसरे धंधों में लिप्त करवा रही है।

pradip singh Deo
लेखक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव