शिक्षा

आलेख: राष्ट्रीय शिक्षा नीति और प्रारंभिक शिक्षा


राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार, शिक्षा पूर्ण मानव क्षमता को प्राप्त करने, एक न्यायसंगत और न्यायपूर्ण समाज के विकास और राष्ट्रीय विकास को बढ़ावा देने के लिए मूलभूत आवश्यकता है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सार्वजनिक पहुंच प्रदान करना वैश्विक मंच पर सामाजिक न्याय और समानता, वैज्ञानिक उन्नति, राष्ट्रीय एकीकरण और सांस्कृतिक संरक्षण के संदर्भ में भारत की सतत प्रगति और आर्थिक विकास की कुंजी है। ये बातें इस तथ्य को ध्यान में रखकर कही जा रही हैं कि अगले दशक में भारत दुनिया का सबसे युवा जनसंख्या वाला देश होगा। यदि युवाओं को एक बेहतर मानव संसाधन के रूप में तैयार करना है तो शिक्षा उसमें सबसे महत्वपूर्ण है।
नई शिक्षा नीति में अवधारणात्मक समझ पर जोर दिया गया है। अभी तक यदि विद्यालयी शिक्षा के प्रारूप को देखें तो उसमें रट कर पढ़ लेने वाली पद्धति हावी थी। एक बच्चे को कितनी चीजें याद हैं यह हमारे समाज में महत्वपूर्ण रहा, बजाय इसके कि वह किसी विषय को लेकर कितनी समझ रखता है। कई बार केवल बचपन ही नहीं, अपितु बड़ी कक्षाओं की पढ़ाई भी केवल परीक्षा पास कर डिग्री ले लेने भर तक सीमित है । इस प्रक्रिया में केवल परीक्षा के समय पढ़कर पास हो जाना भर उद्देश्य है। यदि सामाजिक मान्यता केवल डिग्री भर लेना है तो शिक्षा की गुणवत्ता में कमी का होना स्वाभाविक है। इसलिए नई नीति में रचनात्मक व तार्किक सोच पर विशेष बल देकर केवल रट कर पास होने वाली प्रणाली को बदलने की कोशिश की गई है। इस नए रूप में नैतिकता, मानवीय व संवैधानिक मूल्यों को बढ़ाने पर बहुत जोर दिया गया है। विविधता और स्थानीय परिवेश के लिए सम्मान का भाव और भारतीय मूल्यों पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है।
विज्ञानियों एवं चिकित्सकों के अनुसार, एक स्वस्थ बच्चे का मस्तिष्क छह वर्ष तक की आयु में लगभग 85 प्रतिशत तक विकसित हो जाता है। इसलिए आरंभिक छह वर्ष की अवस्था एक बच्चे के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है जिसमें उसके मानसिक एवं शारीरिक विकास का ध्यान रखा जाना बहुत ही जरूरी हो जाता है, जिस और इस नीति में ध्यान दिया गया है। बच्चों का कम समय में ही शिक्षा को छोड़ देना एक बड़ी समस्या है। छठी- आठवीं तक 91 प्रतिशत, नौवीं दसवीं में 79 और 11वीं-12वीं में केवल 56 प्रतिशत विद्यार्थी ही आगे जा रहे हैं, यह चिंताजनक है। वर्ष 2030 तक माध्यमिक स्तर तक 100 प्रतिशत दर को कायम रखने की बात कही गई है।
इस नए पाठ्यक्रम में महत्वपूर्ण है। मातृभाषा पर बल । जहां तक संभव हो आठवीं तक की पढ़ाई भी मातृभाषा में ही हो। यह न केवल सीखने की क्षमता व गति को बढ़ाएगा, अपितु मातृभाषा के संरक्षण एवं संवर्धन का भी एक बड़ा उपाय है। भाषा की शक्ति व बहुभाषिकता को बढ़ाए जाने पर जोर देने से भारत के सांस्कृतिक वैविध्य को भी सुरक्षित किया जा सकेगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति को भारतीय ज्ञान प्रणाली के आधार पर तैयार करने पर बल दिया। गया है। योजनाएं इस पर आधारित हैं, पर सबसे बड़ा सवाल योजनाओं के क्रियान्वयन पर है। प्रारंभिक शिक्षा के खस्ताहाल हो जाने का एक बड़ा कारण आधारभूत ढांचे का अभाव और बड़ी मात्रा में शिक्षकों के पद रिक्त हैं। कई जगह शिक्षक अपने दायित्व का निर्वहन नहीं कर रहे। इन सब ने सम्मिलित रूप से सरकारी प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था की छवि को धूमिल किया है। मजबूरी में भले लोग अपने बच्चों का वहां नामांकन करा दें, लेकिन सच्चाई यही है कि सक्षम परिवार उधर रुख नहीं करते। इन सबसे निपटना आज भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। यदि इन व्यावहारिक समस्याओं को सुलझा लिया गया तो निकट भविष्य में हम इस दिशा में बेहतर स्थिति में होंगे।

लेखक विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल, शैक्षिक स्तंभकार हैं

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