राष्ट्रीय

नोटबंदी पर पुस्तक की आवश्यकता क्यों है ?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी दो भूलें ‘नोटबंदी’ ( विमुद्रीकरण /डिमॉनेटाइजेशन ) तथा ‘वस्तु एवं सेवा कर’ (जी एस टी) कही जाती हैं लेकिन निष्पक्ष समीक्षा करें तो ज्ञात होता है ये दोनों ही सुविचारित -सुनियोजित -सुसम्पादित एवं साहसी कार्य हैं और उनकी व्यवस्थित चर्चा की जानी चाहिए ताकि देशवासियों को अपनी सरकार पर “और अधिक राष्ट्रहितकारी उपायों को लागू कराने के लिए साधिकार अपेक्षा व्यक्त करने का साहस” मिले।
वर्ष 2017 में जब सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ने एक ही दिन नोटबंदी को लेकर “उसके समर्थन’ और ‘विरोध में” जन -जागृति के लिए आयोजन किये तो एक ‘कॉमर्स जर्नलिस्ट’ होने के नाते ‘नोटबंदी का सच’ सामने लाने के लिए पुस्तक की रचना का विचार उत्पन्न हुआ। वर्ष 2018 से मैंने सामग्रियां जुटानी शुरू कीं और 2022 के अवसान पर जब सर्वोच्च न्यायालय ने नोटबंदी के विरुद्ध दर्ज 58 याचिकाएं रद्द कर दीं तो अपने अध्ययन को समेटकर उसका सुनियोजन और सम्पादन का कार्य आरम्भ किया।

इस पुस्तक के लिए अध्ययन हेतु प्राथमिक और द्वितीयक, दोनों ही; स्रोतों से प्राप्त सूचनाओं को सम्मिलित किया गया है। देश के विभिन्न उद्योग -व्यापार संगठनों,भारतीय रिजर्व बैंक,अनेक बैंकरों -वित्त विशेषज्ञों, कुछ विश्वविद्यालयों, कई उद्योगपतियों एवं अर्थशास्त्रियों की सहायता से तथ्यों का संकलन मैंने किया है। एसोचैम, फिक्की, कन्फेडरेशन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्रीज, हिंदुस्तान चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स एन्ड इंडस्ट्रीज, इंडियन मर्चेंट चैम्बर, विभिन्न वाणिज्य दूतावासों के पुस्तकालय, मुंबई स्टॉक एक्सचेंज, सेबी, विभिन्न व्यावसायिक संगठन और अनेक कम्पनी सेक्रेटरीज एवं चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के साथ इस विषय में लगातार बातचीत करता रहा हूँ।

प्रधानमंत्री के सम्बन्ध में देश के अप्रतिम विदेशमंत्री डॉ एस जयशंकर कहते हैं कि ‘वे बहुत डिमांडिंग बॉस (प्रधानमंत्री) हैं और देश की आवश्यकता है कि प्रधानमंत्री डिमांडिंग हों ‘। लगभग 30 वर्षों से मैं देश की आर्थिक पत्रकारिता का अंग रहा हूँ – प्रशिक्षु संवाददाता से लेकर सम्पादक (आर्थिक विषय) के रूप में काम करते हुए जितना मानसिक विकास मेरा हो सका है उसके बल पर मैं इस पुस्तक के माध्यम से इस देश की सम्प्रभुत्व संपन्न -शक्तिशाली प्रजा को आवाहन देना चाहता हूँ कि वह ‘अधिक डिमांडिंग जनता’ बने और अपने प्रधानसेवक का झोला प्रेमपूर्वक लेकर अपने पास रख ले कि जबतक देश को ‘संतुष्टि सूचकांक में विश्व का प्रथम राष्ट्र नहीं बना दीजियेगा हम आपको हिमालय भी जाने नहीं देंगे’। मोदी सरकार ने अपने आठ वर्षों के कार्यकाल में देश की सकल घरेलु आय दोगुना से भी अधिक कर दिया है लेकिन ‘संतुष्टि सूचकांक में विश्व का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र बनाने के लिए ‘ बहुत कुछ किया जाना शेष है’, यद्यपि कि नरेंद्र मोदी की सरकार इस दिशा में अग्रसर है।

इस देश की प्रजा के पास ‘मोस्ट डिमांडिंग सिटीजन’ हो जाने के प्रचुर कारण हैं और ये कारण ‘सामरिक -आर्थिक -सामाजिक -कूटनीति’ आदि सभी क्षेत्रों में मोदी जी के आठ वर्षों के कार्यकाल में हुए कार्यों में निहित हैं। 26 मई 2014 को नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री का पद संभाला। उस समय देश की जीडीपी वृद्धि की दर 7.4 % थी। 2016 तक इसमें वृद्धि हुई और ये बढ़ कर 8.3 % तक पहुंच गई। आज भारत की जीडीपी 232 लाख करोड़ रुपये से अधिक है। नरेंद्र मोदी ने जब 2014 में प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी, उस समय खुदरा महंगाई दर 8.33 % थी,अप्रैल 2022 में देश में खुदरा महंगाई दर 7.79 प्रतिशत अंकित हुई (जो मोदीजी की सरकार के आठ वर्षों का उच्चतम स्तर है )। मई 2014 में देश का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 312 अरब डॉलर था, जो कि लगातार बढ़ते हुए 600 अरब डॉलर के पार निकल गया। बेरोजगारी दर की बात करें तो 2014 में यह 5.60 % थी, जबकि सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के ताजा आंकड़ों को देखें तो अप्रैल 2022 में देश में बेरोजगारी दर बढ़कर 7.83 % पर पहुंच गई। मोदी जी के सत्ता संभालने से पहले बीएसई का सेंसेक्स 24-25 हजार की परिधि में ही दिखता था, जो मोदी – राज में 60 हजार का आंकड़ा पार करने में कामयाब हुआ। मोदी सरकार जब सत्ता में आई उस समय प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 79 हजार रुपये थी, जो अब 1.50 लाख रुपये हो चुकी है।विदेशी मुद्रा भंडार की दॄष्टि से भारत का स्थान विश्व में चौथा हो गया है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक भारत रूस को पछाड़कर इस स्थान पर पहुंचा है। ब्रिटेन को पछाड़कर भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था मोदी जी के नेतृत्व में ही बना है।

सरकार आयात (इम्पोर्ट) कम करने और निर्यात (एक्सपोर्ट) बढ़ाने पर जोर दे रही है। इसी के चलते सरकार ने प्रोडक्शन लिंक्ड इनसेंटिव (PLI) की शुरुआत भी की है। उज्ज्वला, हर घर शौचालययुक्त, आयुष्मान कार्ड, प्रधानमंत्री फसल बीमा एवं लोकबीमा योजना, हर घर पेयजल जैसी सैंकड़ों योजनाएं जमीन पर सफलतापूर्वक उतारनेवाली मोदी सरकार के कार्यकाल में कृषि -उद्योग -वाणिज्य -विज्ञान एवं अनुसन्धान – बुनियादी सुविधाओं का विस्तार -रक्षा – लोक स्वास्थ्य -तकनीकी शिक्षा अर्थात हर क्षेत्र में देश ने प्रगति की है। इनकी नींव में नोटबंदी के प्रभाव भी हैं जिससे अनेक देश भारत के साथ व्यापार के लिए अमेरिकी डॉलर की मध्यस्थता समाप्त कर रूपये में विनिमय के लिए धड़ाधड़ अनुबंध किये जा रहे हैं।

किन्तु, चूँकि मेरा विषय आर्थिक है और मैंने इस पुस्तक के केंद्रीय विषय के रूप में “नोटबंदी ” को चुना है तो ‘नोटबंदी की परिभाषा से लेकर उसकी आवश्यकता एवं उसके कारण देश में हुए सकारात्मक कार्यों तथा चुनौतियों ‘ पर सप्रमाण तथ्यों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है और जिसे मोदी-विरोधी लोग नकारात्मक कहते हैं उन बातों को ‘चुनौतियों’ के रूप में रखा है जिससे सरकार और उसके योजनाकार के लिए भी यह पुस्तक सन्दर्भ -स्रोत के रूप में उपयोगी हो।

नोटबंदी’ शीर्षक इस पुस्तक में सामग्रियां 8 खण्डों में विभक्त हैं –

                                            खंड -1 के अध्याय

(क)1971 में ही होनी चाहिए थी नोटबंदी: नरेंद्र मोदी
(ख) लालबहादुर शास्त्रीत्व और नरेंद्र मोदीत्व
(ग) नोटबंदी का विरोध सबसे पहले डॉ राजेंद्र प्रसाद ने किया था
(घ ) नोटबंदी का फैसला अचानक नहीं हुआ
(ड) सर्वोच्च न्यायालय ‘नोटबंदी’ पर पहले भी दे चुका है अपना ऑब्ज़र्वेशन
(च) भारत में नोटबंदी से नेपाल को ९ अरब का घाटा ,बांग्लादेश -म्यांमार -सिंगापुर -मलेशिया सकते में
(छ ) नोटबंदी का ‘डेलारु इंटरनेशनल’ और पाकिस्तानी हवाला कारोबारी जावेद की आत्महत्या से सम्बन्ध

                                                  खंड -2 के अध्याय      

(ज) ‘काला धन’ कितना काला है { १९७० से कालेधन के सृजन में तेजी आयी ,यदि लगाई गयी होती देश में प्रतिव्यक्ति आय 7 लाख 40 हज़ार रूपये होती जो आज एक लाख पचास हज़ार रूपये है }

                                               खंड -3 के अध्याय    

(झ) नोटबंदी की परिभाषा
(ट) नोटबंदी के सामान्य कारण
(ठ) नोटबंदी का वैश्विक इतिहास
(ड) भारत में नोटबंदी का इतिहास

खंड -4 नोटबंदी 2016 : अल्पावधिक प्रभावों का अध्ययन

(ढ़) नोटबंदी 2016 की घोषणा और करेंसी नोट बदलने की प्रक्रिया
(ण) नोटबंदी 2016 और जनसाधारण पर प्रभाव
(त) नोटबंदी में बैंकरों और धनिकों का आचरण
(थ) नोटबंदी पर राजनीति
(द) नोटबंदी पर अर्थव्यवस्था के घटकों की त्वरित प्रतिक्रिया
(ध) नोटबंदी पर मीडिया की भूमिका
(न) नोटबंदी पर भारतबंदी की विफलता के अर्थ
(प) नोटबंदी के कष्टों पर भाजपा की चुनावी जीत के अर्थ
(फ) नोटबंदी की सफलता के लिए सरकारी प्रयासों का अध्ययन
(ब) नोटबंदी के सामाजिक एवं आर्थिक प्रभावों का मूल्यांकन , नोटबंदी 2016 की 101 उपलब्धियां

खंड -5 नोटबंदी 2016 : दीर्घावधि के प्रभावों का अध्ययन

(भ) दावोस आर्थिक सम्मेलन में भारत पर भरोसे का कारण
(म) नोटबंदी का ग्रामीण क्षेत्रों पर प्रभाव {कृषि, कुटीर एवं लघु उद्योग}
(य) नोटबंदी का नागरिक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
(र) नोटबंदी का शेयर बाजार पर प्रभाव
(ल) नोटबंदी का मुद्रा बाजार पर प्रभाव
(व) नोटबंदी का सराफा बाज़ार पर प्रभाव
(श) नोटबंदी का कमोडिटी बाजार पर प्रभाव
(ष) नोटबंदी का धातु बाजार पर प्रभाव
(स) नोटबंदी का उद्योग व्यापार पर प्रभाव
(ह) नोटबंदी का विदेश व्यापार पर प्रभाव
(क्ष) नोटबंदी का वित्त एवं बीमा क्षेत्र पर प्रभाव
(त्र) नोटबंदी का रोजगार एवं श्रम नियोजन क्षेत्र पर प्रभाव
(ज्ञ) नोटबंदी का स्टार्टअप योजनाओं पर प्रभाव
(अ) नोटबंदी का एम एस एम ई क्षेत्र पर प्रभाव
(आ)नोटबंदी का रियल इस्टेट पर प्रभाव
(इ) नोटबंदी का रिटेल मार्किट और ई -कॉमर्स पर प्रभाव
(ई) नोटबंदी का पर्यटन एवं मनोरंजन क्षेत्र पर प्रभाव
(उ) नोटबंदी का कपड़ा ,रसायन ,भारी उद्योग क्षेत्र पर प्रभाव
(ऊ) नोटबंदी का रेस्टॉरेंट -होटल क्षेत्र पर प्रभाव
(ए) नोटबंदी का विज्ञान एवं शोध क्षेत्र पर प्रभाव
(ऐ) नोटबंदी का विनिर्माण क्षेत्र पर प्रभाव
(ओ) नोटबंदी का स्वास्थ्य एवं औषधि क्षेत्र पर प्रभाव
(औ) नोटबंदी का शिक्षा क्षेत्र पर प्रभाव
(अं) नोटबंदी का कला एवं संस्कृति क्षेत्र पर प्रभाव
(अ:) नोटबंदी का संचार एवं उच्च प्रौद्योगिकी क्षेत्र पर प्रभाव
(ऋ) नोटबंदी का ऊर्जा निर्माण एवं वितरण क्षेत्र पर प्रभाव
(लृ ) नोटबंदी का उत्सवों और पारिवारिक आयोजनों पर प्रभाव
(ऊँ) नोटबंदी का सरकार की कल्याणकारी योजनाओं पर प्रभाव

                                                             खंड -6  परिचर्चात्मक अध्याय      

(1)क्या नोटबंदी से कालाधन,तस्करी और आतंकवाद समाप्त हो सकता है ?
(2) क्या नोटबंदी के कारण विश्व- व्यापार में भारतीय मुद्रा की स्वीकार्यता बढ़ रही है ?
(3) क्या हर पांच वर्ष में मुद्रा ,करेंसी नोट में बदलाव किया जाना चाहिए ?
(4) क्या डिजिटल लेनदेन , बिटक्वाइन ही आनेवाले समय का भविष्य है ?
(5) क्या करेंसी नोटों की आधारिता स्वर्ण ही बना रहेगा ?

   खंड 7 सोशल मीडिया में दिग्गजों का दंगल

(1)सरकारी कहानी में खोट : रितिका खेड़ा
(2)नोटबंदी ने आग में घी का काम किया : यशवंत सिन्हा
(3) अर्थव्यवस्था के लिए गहरा आघात:अरविंद केजरीवाल
(4) नोटबंदी के चलते कई लोगों की नौकरी चली गई:पी चिदंबरम
(5)करोड़ों लोगों का जीवन अस्तव्यस्त हो गया : डॉ. मनमोहन सिंह
(6) सभी कैश को औपचारिक अर्थव्यवस्था में लाने का उद्देश्य था : अरुण जेटली

      खंड -8  में  साक्षात्कार

(7) नोटबंदी से अनुत्पादक पैसा उत्पादक कार्यों में लगेगा : मुकेश अम्बानी
(8) लोग शेयरों में विश्वास करते हैं लेकिन वे अर्थव्यवस्था में विश्वास नहीं : झुनझुनवाला
(9) 2,000 का नोट शुरू करने की क्या जरूरत थी?’ : उदय कोटक
(10) नोटबंदी आर्थिक सुधारों के 3 सबसे महत्वपूर्ण कदमों में से एक:रतन टाटा
(11) व्यापार घाटा और बढ़ता ऋणपत्र चिंता का विषय :कुमारमंगलम बिड़ला
(12 ) नोटबंदी से इकोनॉमी का कचरा साफ होगा :अनिल अग्रवाल
(13 ) नोटबंदी का विकास से कोई लेना देना नहीं : अनिल बोकिल
(14) नोटबंदी की सलाह मैंने 2014 में ही दी थी :डॉ सुब्रह्मणियन स्वामी
(15) नोटबंदी से रोजगार के करोड़ों अवसर बने : मोदी

नोटबंदी की अवधारणा से लगायत उसके प्रभावों तक की चर्चा इस प्रकार सरल रूप में करने का प्रयास किया है जिससे पाठकों को अधिकतम प्रश्नों के उत्तर मिल सकें, यह सूचनाओं मात्र पर आधारित नहीं हो क्योंकि आंकड़े तथा सूचनाएं समय के साथ परिवर्तित हो सकती हैं एवं सर्वे -पैटर्न बदलने से अंतिम परिणाम भी परिवर्तित हो सकते हैं। आर्थिक विषयों के साथ यह संकट लगा रहता है इसलिए राजनीति और मनोरंजन के समाचारों से पाठक सहज ही जुड़ते हैं और दैनिक जीवन में भी अधिक उपयोगी व प्रभावकारी आर्थिक समाचार के पन्ने प्रायः उनींदी दोपहर में पढ़े जाते हैं ( यह मैं सामान्य पाठकों के लिए कह रहा हूँ ,उन प्रोफेशनल्स के लिए नहीं जो अर्थव्यवस्था में योगदान देते या उसका रिकॉर्ड रखते हैं )।

अनुभव हुआ कि राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखकर निष्पक्ष एवं निर्दयतापूर्वक ‘और पुस्तकें ‘ लिखे जाने की आवश्यकता है जो विश्वगुरु भारत के नागरिकों में आर्थिक विषयों को लेकर वैसा ही विमर्श करने का गुण विकसित करे जैसा स्वभाव अधिकांश भारतीयों में समसामयिक राजनीति पर चर्चा के लिए पाया जाता है। इस पुस्तक के लिए सामग्रियां जुटाने और उनका पुनरावलोकन करने से यह बात भी सामने आयी कि मोदी -सरकार के लिए कठोर निकष अपनाए जाएं।
नोटबंदी बहुत जोखिम भरा ही नहीं अपितु अत्यंत क्षोभकारक होने पर भी उसके विरुद्ध जनसाधारण में वह क्रोध उत्पन्न नहीं हो सका जिससे देश में अराजकता फैले, अशांति बढे और नियंत्रण से परे चला जाए तो इसका श्रेय निश्चय ही राजनेताओं को जाता है जिन्होने लगातार एक -दूसरे को चिकोटी काटकर वातावरण मनोरंजक बनाए रखा। इसकी चर्चा आगे के अध्यायों में विस्तार से होगी। प्रसंगवश कुछ रोचक पूरक सामग्रियां भी प्रस्तुत की गयी हैं जैसे भारतीय करेंसी नोट पर पाकिस्तान ने अपना मुहर मारकर उसका उपयोग किया था , प्रधानमंत्री राहुल गाँधी जी की नोंकझोंक , रिज़र्व बैंक का नया नामकरण कर ट्वीटर पर चुटकुले गढ़े जाने की बात। ये करेंसी नोटों की चर्चा में मनोरंजक तरीके से गुंथे गए हैं जिससे पुस्तक की उपयोगिता निश्चय ही बढ़ती है। अस्तु , इस पुस्तक में विमुद्रीकरण ,उसके प्राचीन रूप का अनुमानित अध्ययन ,विमुद्रीकरण का संक्षिप्त इतिहास , मोदी सरकार द्वारा विमुद्रीकरण का घोषित लक्ष्य और उसकी प्राप्ति हुई अथवा सरकार विफल रही -इन बातों का अध्ययन अर्थशास्त्रीय अनुशासन के अनुसार आंकड़ों -गणितीय सूत्रों की न्यूनतम सहायता से प्रस्तुत करने का प्रयास रहा है।

यह पुस्तक मेरे माता -पिता को समर्पित है जिन्होने मुझे हर बार ‘ स्वयं को मिटाने और फिर नए सिरे से गढ़ने का गुण ‘ दिया है। मेरी पत्नी श्रीमती अनिता पाठक झा को यह श्रेय है कि पुस्तक गणितीय सूत्रों के अर्थशास्त्रीय बोझिलता से अलग हो सकी और तथ्यों को सरलता से रोचक भाषा में प्रस्तुत किया जा सका ( इसके लिए अंतिम प्रारूप का पुनर्लेखन मुझे तीन बार करना पड़ा ) ।विषयों को अलग -अलग कर खंड -खंड में प्रस्तुत करने का सुझाव बिटिया मनीषा का है {जो स्वयं तिलकामांझी विश्वविद्यालय (भागलपुर)में स्नातक (अर्थशास्त्र) की विद्यार्थी है }। बिटिया ने ध्यान दिलाया कि नोटबंदी के कारण सिक्कों को नया जीवन मिला है और वे फिर से चलन में आ गए अन्यथा कोई 25 -50 पैसे या 1 -2 -5 रूपये के सिक्के लेना नहीं चाहता था। लोगों द्वारा उपेक्षित किये जाने के कारण चलन से 1 -2-5 -10 और 20 पैसे के सिक्के पता नहीं कहाँ चले गए ,अब शायद सरकार सम्पोषित संग्रहालयों में ही वे मिलें।
मेरे पहले के लिखे को अप्रासंगिक कर मुझे पुनर्लेखन के लिए बार -बार धकेलने के उद्देश्य से, हर बार नए तथ्यों को भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में इकठ्ठा शोधपत्रों से ढूंढकर ‘लिखे को अधूरा अथवा असामयिक -अप्रासंगिक’ सिद्ध करते रहने का काम बेटे अनीश ने किया जो भागलपुर (बिहार) में ही स्नातक (गणित) के विद्यार्थी हैं। ‘भारत में विमुद्रीकरण (नोटबंदी) तीन नहीं ,सात बार हुआ’ – यह शोध उन्होने ही किया है किन्तु उद्देश्य सहायता नहीं बल्कि तंग करना अधिक रहा है (1926,1995 और 2011 का उद्धरण तीन अलग -अलग दिनों में बताए जबकि पता पहले चरण में ही उनको हो गया था )। वे बिटिया की तरह शोध में सहायक नहीं रहे ,मेरे लिखे को सुनकर उसमें मीनमेख निकाल ‘लिखे को ध्वस्त करने’ के लिए वह प्रायः सज्ज मिले। इसके तीन कारण मुझे समझ में आए -(क) अनीश भी अधिकाँश युवजन की तरह मोदीभक्त हैं और ‘मोदी जी की निंदा का किंचित संदेह’ भी उनको असहज कर देता है (ख) आज के युवाओं की तरह वह भी किसी बात को बिना जांचे -परखे मानने को तैयार नहीं (ग) वह मोदी जी पर कोई पुस्तक लिख रहे हैं (यह बात बिटिया ने बतायी)।
बेटी सहायक रही है,बेटा मूलतः स्वभाव से चिकोटीबाज है – योगदान दोनों ने जी खोलकर किया ,इसके लिए दोनों को स्नेहयुक्त धन्यवाद। इस पुस्तक के लिए जिन्होने मेरा संबल बढ़ाया है उनका आभार विशेष तौर पर एक पृष्ठ में व्यक्त किया है। पुस्तक के अंत में सन्दर्भों की सूची भी दी है जिससे अधिक जिज्ञासु पाठकों को अपने अध्ययन में सुविधा मिले।आशा है , सुधि -सुविज्ञ पाठकवृन्द अपनी प्रतिक्रियाओं -टिप्पणियों -सुझावों से भी मुझे समृद्ध करेंगे। इस पुस्तक की सफलता यह होगी कि आर्थिक विषयों पर रुचि बढ़ानेवाले ‘और लेखक’ सामने आएं, ‘और अध्येता ‘ अपना विषय रखें।

भारत में अब तक दो ही प्रधानमंत्री ऐसे हुए जिन्होने जनसाधारण की आत्मा को छुआ, उनके भरोसे को हिमालय सी ऊंचाइयां दीं -पहला, भारतरत्न लालबहादुर शास्त्री और दूसरे नरेंद्र मोदी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी करके पूरे देश में ‘भ्रष्टाचार, आर्थिक असमानता दूर करने तथा आतंकवाद की रीढ़ तोड़ने ” के एकमात्र अस्त्र के रूप में उसको इतना प्रचारित किया कि उनके द्वारा 50 दिन मांगने पर भारत की जनता ने अपने लाड़ले प्रधानमंत्री को ‘पता नहीं कितने पचास दिन’ दे दिये और पलटकर पूछा भी नहीं। अवसर आया तो ‘और अधिक शक्ति ‘ देकर पुनः प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया। जनता का यह विश्वास ‘नरेंद्र मोदीत्व ‘ है। इससे पहले शास्त्री जी ने 1965 में कहा ” हमें भारत का स्वाभिमान बनाए रखने के लिए देश के पास उपलब्ध अनाज से ही काम चलाना होगा। हम किसी भी देश के आगे हाथ हाथ नहीं फैला सकते। इसलिए देशवासियों को सप्ताह में एक समय का उपवास करना चाहिए। इससे देश इतना अनाज बचा लेगा कि अगली फसल आने तक देश में अनाज की उपलब्धता बनी रहेगी। पेट पर रस्सी बांधो, साग-सब्जी ज्यादा खाओ, सप्ताह में एक दिन एक वक्त उपवास करो, देश को अपना मान दो ” उनके इस आह्वान का जनता पर जबर्दस्त असर पड़ा और लोगों ने यहां तक कह दिया कि वे हफ्ते भर तक चूल्हा नहीं जलाएंगे – यह ” लालबहादुर शास्त्रीत्व ” है।

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