अंतर्राष्ट्रीय

गिरती प्रजनन दर: भविष्य का नया संकट


किसी भी देश का भविष्य उसकी आने वाली पीढ़ी निर्धारित करती है। अगर आने वाली पीढ़ी पर ही खतरा मंडराने लगे, तो उस देश का सामाजिक और आर्थिक ताना-बाना विच्छिन्न होने लगता है। ऐसा ही कुछ खतरा एशिया के कुछ अमीर देशों के ऊपर मंडराने लगा है, जहां पिछले 30 वर्षों में महिलाओं की प्रजनन दर में भारी कमी आई है। जापान इस समस्या से पहले से ही जूझ रहा है। आंकड़ों से पता चलता है कि कई अमीर एशियाई देशों की हालत तो जापान से भी बदतर है। जापान की प्रजनन दर वर्ष 1990 में 1.6 थी, जो वर्ष 2020 में गिरकर 1.3 रह गई है, जबकि चीन में यह दर 2.3 से गिरकर 1.3, सिंगापुर में 1.7 से गिरकर 1.1, हांगकांग में 1.3 से गिरकर 0.9 और दक्षिण कोरिया में 1.6 से गिरकर 0.8 रह गई है। आम भाषा में समझें तो दक्षिण कोरिया में 1990 में जहां 10 महिलाएं 16 बच्चों को जन्म देती थीं, वहीं 2020 में 10 महिलाओं ने सिर्फ 8 बच्चों को जन्म दिया। चीन में वर्ष 2021 में 1.06 करोड़ बच्चे पैदा हुए, जो वर्ष 2020 की तुलना में 14 लाख कम थे। जापान में तो एक साल में सिर्फ 8 से 10 लाख बच्चे पैदा हो रहे हैं। तुलनात्मक रूप में देखें तो इसके उलट अमरीका में एक साल में लगभग 35 से 40 लाख बच्चे पैदा हो रहे हैं। इन एशियाई देशों में प्रजनन दर में कमी का कारण क्या है? समस्या के सामाजिक और आर्थिक दोनों पहलू हैं।

अगर सामाजिक कारणों की तरफ नजर डालें, तो सबसे पहला और प्रमुख कारण हैं कि अमीर एशियाई देशों में लोग आम तौर पर बिना शादी के बच्चे नहीं पैदा करते। जापान और दक्षिण कोरिया में सिर्फ 3 प्रतिशत बच्चे अनब्याही मांओं ने पैदा किए थे, क्योंकि कई देशों में (खासतौर पर चीन ) बिना बाप के बच्चे कई अधिकारों से वंचित रह जाते हैं। ऐसे प्रतिबंध नहीं होने की वजह से पश्चिमी अमीर देशों में यह दर 30 से 60 प्रतिशत के बीच है। इसी के साथ लोगों का शादी न करना भी इस समस्या को गंभीर करता जा रहा हैं। एक अनुमान के अनुसार जापान में वर्ष 2040 तक अविवाहित लोगों की संख्या पूरी आबादी की आधी हो जाएगी। ऐसे में एक बड़ा सवाल उठता है कि इतनी बड़ी संख्या में अविवाहित लोग समाज की संरचना को कैसे प्रभावित करेंगे? यह एक ऐसा विषय है जिस पर गहनता से विचार करने की जरूरत है।
आर्थिक कारणों में सबसे प्रमुख है, स्कूल की महंगी पढ़ाई। दुनिया के जिन दस शहरों मेें स्कूली शिक्षा सबसे ज्यादा महंगी है, उनमें से 4 चीन में हैं और एक दक्षिण कोरिया में। जापान में स्कूलों में दाखिले के लिए तैयारी करवाने वाले कोचिंग/ट्यूशन केंद्रों, जिन्हें जकू कहा जाता है, की संख्या वहां के स्कूलों से भी अधिक है। वर्ष 2018 में 50,000 जुकू जापान में थे, जबकि स्कूलों की संख्या 35,000 थी। महंगी पढ़ाई और इससे जुड़ी समस्याओं की वजह से वहां के लोग कम बच्चे पैदा कर रहे हैं। एक और आर्थिक कारण जिसने हाल ही में प्रजनन दर को प्रभावित किया है वह है, घरों की बढ़ती कीमतें। अनुसंधान से पता चलता है कि घर के महंगे होने के कारण शादीशुदा लोग बच्चे या तो देर से पैदा कर रहे हैं या निसंतान रहना पसंद कर रहे हैं। जापान में यह स्थिति इसलिए और भी ज्यादा गंभीर है, क्योंकि वहां पक्का घर नहीं बनाया जाता है और लकड़ी के घरों का मूल्य 22 सालों के बाद शून्य हो जाता है और इसके बाद उसे गिरा दिया जाता है। इस वजह से जापान में एक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में 4 से 5 बार घर खरीदना पड़ता है।
प्रजनन दर में होने वाली कमी से उपजने वाली समस्याएं सर्वविदित हैं। जापान इसका जीता-जागता उदाहरण है, जहां कार्यशील लोगों पर वृद्ध लोगों का भार निरंतर बढ़ता जा रहा है और यह आशंका है कि आने वाले वर्षों में जापान के पास काम करने के लिए युवा नहीं रहेंगे। अगर अब भी अमीर एशियाई देशों ने समस्या की गंभीरता को नहीं समझा, तो उन्हें सामाजिक और आर्थिक स्तर पर गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

-लेखक विजय गर्ग

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