राष्ट्रीय

14 जनवरी: माउंटेनमैन दशरथ मांझी जयंती

दशरथ मांझी एक ऐसे भारतीय व्यक्ति थे, जिन्हें ‘बिहार का माउंटेन मैन’ कहा जाता है। आज ही के दिन 14 जनवरी, 1934 को उनका जन्म हुआ था। दशरथ मांझी बिहार में गया के करीब गहलौर गाँव के एक गरीब मजदूर थे। केवल एक हथौड़ा और छेनी लेकर दशरथ मांझी ने अकेले ही 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट के एक सड़क बना डाली। 22 वर्षों कठिन परिश्रम के बाद दशरथ मांझी की बनायी सड़क ने अतरी और वजीरगंज ब्लाक की दूरी को 55 कि.मी. से घटाकर 15 कि.मी. कर दिया। दशरथ मांझी उर्फ़ माउंटेन मैन को आज हर कोई जानता है। कुछ समय पहले आई फिल्म ‘मांझी’ के द्वारा हर कोई उनके जीवन को करीब से जान पाया है। बिहार के छोटे से गाँव गहलौर के रहने वाले दशरथ मांझी ने ऐसा आश्चर्यजनक कार्य कर दिखाया था, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। आजादी मिलने के बाद भी गहलौर गाँव में ना बिजली थी, ना पानी और ना ही पक्की सड़क। उस गाँव के लोगों को पानी के लिए दूर जाना होता था। यहाँ तक की अस्पताल के लिए भी पहाड़ चढ़कर शहर जाना होता था, जिसमें बहुत समय लगता था। दशरथ मांझी के पिता ने गाँव के जमीदार से पैसे लिए थे, जिसे वह लौटा नहीं पाये थे। बदले में वह अपने बेटे को उस जमीदार का बंधुआ मजदूर बनने को बोलते हैं। किसी की गुलामी दशरथ मांझी को पसंद नहीं थी, इसलिए वह गाँव छोड़कर भाग जाते हैं और धनबाद की कोयले की खानों में काम शुरू कर देते हैं। फिर वे कुछ समय बाद अपने घर लौट आए और फाल्गुनी देवी से शादी की। अपने पति के लिए खाना ले जाते समय उनकी पत्नी फाल्गुनी पहाड़ के दर्रे में गिर गयी और उनका निधन हो गया। अगर फाल्गुनी देवी को अस्पताल ले जाया गया होता तो शायद वो बच जाती, यह बात दशरथ मांझी के मन में घर कर गई। इसके बाद दशरथ मांझी ने संकल्प लिया कि वह अकेले अपने दम पर वे पहाड़ के बीचों बीच से रास्ता निकालेगे। फिर उन्होंने 360 फ़ुट-लम्बा, 25 फ़ुट-गहरा 30 फ़ुट-चौड़ा गेहलौर की पहाड़ियों से रास्ता बनाना शुरू किया। उनका कहना था कि- जब मैंने पहाड़ी तोड़ना शुरू किया तो लोगों ने मुझे पागल कहा, लेकिन इस बात ने मेरे निश्चय को और भी मजबूत किया। उन्होंने अपने काम को 22 वर्षों में पूरा किया। इस सड़क ने गया के अत्रि और वज़ीरगंज सेक्टर्स की दूरी को 55 कि.मी. से 15 कि.मी. कर दिया। दशरथ मांझी के प्रयास का मज़ाक उड़ाया गया, पर उनके इस प्रयास ने गेहलौर के लोगों के जीवन को सरल बना दिया। हालांकि उन्होंने एक सुरक्षित पहाड़ को काटा, जो भारतीय वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम के अनुसार दंडनीय है। फिर भी उनका ये प्रयास सराहनीय था। बाद में दशरथ मांझी ने कहा था, ‘पहले-पहले गाँव वालों ने मुझ पर ताने कसे लेकिन उनमें से कुछ ने मुझे खाना दिया और औज़ार खरीदने में मेरी सहायता भी की।” उनके प्रयत्न का सकारात्मक नतीजा निकला। केवल एक हथौड़ा और छेनी लेकर उन्होंने अकेले ही 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट के एक सड़क बना डाली। इस सड़क ने गया के अत्रि और वज़ीरगंज सेक्टर्स की दूरी को 55 कि.मी. से 15 कि.मी. कर दी ताकि गांव के लोगों को आने जाने में तकलीफ ना हों। आख़िरकार 1982 में 22 वर्षों की मेहनत के बाद दशरथ मांझी ने अपने कार्य को पूरा किया। उनकी इस उपलब्धि के लिए बिहार सरकार ने सामाजिक सेवा के क्षेत्र में 2006 में ‘पद्म श्री’ हेतु उनके नाम का प्रस्ताव भी रखा।

pradip singh Deo
लेखक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव

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