राष्ट्रीय

7जून: नृत्य गुरु नटराज रामकृष्ण की पुण्यतिथि

नटराज रामकृष्ण भारत के एक नृत्य गुरु थे। उनकी मृत्यु आज ही के दिन 7 जून, 2011 को हुई थी। नटराज रामकृष्ण आंध्र प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष रहे थे। वह एक विद्वान और संगीतज्ञ भी थे, जिन्होंने आंध्र प्रदेश और दुनिया भर में शास्त्रीय नृत्य को बढ़ावा दिया। उन्होंने 40 से अधिक पुस्तकें लिखीं, जिनमें से कई को अत्यधिक सम्मानित किया गया। नृत्य की कला में नटराज रामकृष्ण के योगदान को व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है। मात्र 18 साल की उम्र में ही उन्हें मराठा के तत्कालीन शासक द्वारा नागपुर में ‘नटराज’ की उपाधि दी गई थी। उन्हें 700 साल पुराने नृत्य रूप ‘पेरिनी शिवतांडवम’ को पुनर्जीवित करने के लिए जाना जाता है। उन्होंने कुचिपुड़ी को पारंपरिक नृत्य रूप के साथ अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई। आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीलम संजीव रेड्डी के अनुरोध पर उन्होंने हैदराबाद में ‘नृत्य निकेतन’ नामक नृत्य विद्यालय की स्थापना की थी। सन 1991 में उन्हें ‘राजा-लक्ष्मी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था। अपने लंबे करियर में उन्होंने कई नर्तकियों को प्रशिक्षित किया और अत्यधिक प्रशंसित नृत्य नाटकों को लिखा और कोरियोग्राफ किया। उन्होंने ‘चिंदू यक्षगानम’ का प्रचार करने में बहुत मदद की, जो तेलंगाना का एक प्राचीन लोक रूप है। उन्होंने श्रीकाकुलम और विजयनगरम जिलों के टपेटागल्लू, पूर्व और पश्चिम गोदावरी जिलों के वीरा नाट्यम और गरगालु, देवदासी जैसी अन्य लोक कलाओं को भी पुनर्जीवित किया। उन्होंने डोमारस, गुरवाययालु, उरुमुलु और वेदी भगवतुलु जैसे नृत्य कलाकारों की भी मदद की और उन्हें प्रोत्साहित किया। उन्होंने भगवान वेंकटेश्वर के जीवन की रचना “नृत्य नाटक” के रूप में की थी। भारत सरकार द्वारा प्रायोजित एक शोध छात्र के रूप में नटराज रामकृष्ण ने तत्कालीन यूएसएसआर और फ्रांस में भारतीय नृत्य कला का प्रचार करने के लिए काम किया, जिससे भारतीय और पश्चिमी शास्त्रीय और लोक नृत्यों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया। उन्हें 21 जनवरी 2011 को संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप से सम्मानित किया गया था।

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लेखक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव