SKMU: दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार संपन्न
दुमका: सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय दुमका में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का गुरुवार को सफलतापूर्वक समापन हो गया। यह सेमिनार झारखंड सरकार के उच्च एवं तकनीकी विभाग द्वारा प्रायोजित था। सेमिनार में देश भर से करीब 200 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। गुरुवार को दूसरे दिन के पहले सत्र में लगभग 45 शोधार्थियों ने महिला के विभिन्न आयामों पर अपने शोध आलेख प्रस्तुत किए। इस सत्र की अध्यक्षता सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान और वाणिज्य संकाय के संकायाध्यक्ष डॉ. टी.पी. सिंह ने की। इस सत्र में विभिन्न शोधपत्रों के माध्यम से महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य, अधिकारों और उनके सशक्तिकरण पर महत्वपूर्ण विचार विमर्श हुआ। सभी शोधार्थियों ने अपने विचारों का गहरा प्रभाव छोड़ा। इस अवसर पर डॉ. टीपी सिंह ने महिलाओं के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक स्थिति पर किए जा रहे शोध की सराहना की और समाज में महिलाओं की भूमिका को और अधिक सशक्त बनाने के लिए ऐसे शोधों के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि शोधार्थियों को अपने शोध के निष्कर्षों को समाज में लागू करने की दिशा में काम करना चाहिए। उन्होंने कहा हमें गहरे आत्मचिंतन की आवश्यकता है कि क्या हमारे शोध जेंडर गेप को पाटने में प्रभावी और सार्थक भूमिका निभा रहे हैं। यह सवाल हमारे लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि महिलाओं और पुरुषों के बीच समानता स्थापित करने के लिए हमारे प्रयासों का परिणाम सही दिशा में होना चाहिए।
दूसरे दिन का दूसरा सत्र प्रोफेसर इशिता मुखोपाध्याय की अध्यक्षता में पैनल चर्चा से शुरू हुआ। इस सत्र में पैनलिस्ट डॉ. नितिशा खालको, डॉ. मीनाक्षी मुंडा और डॉ. शालिनी साबू थीं।

प्रोफेसर इशिता मुखोपाध्याय बताया कि स्त्री और पुरुष जैसे समाज दो ध्रुव में बांटा हुआ नहीं देखना चाहिए । इस तरह विषय को देखने समझने से हम समस्या को सही परिपेक्ष्य में नहीं समझ सकते हैं। आप पुरुष होते हुए भी स्त्री ध्रुव के प्रतिनिधि हो सकते हैं और स्त्री होते हुए भी हम पुरुष मानसिकता से संचालित हो सकते हैं ।यह सिर्फ शारीरिक तौर पर नहीं बल्कि मानसिक स्थितियों के आधार पर समस्या को समझने की कोशिश है।
इसके बाद डॉक्टर मीनाक्षी मुंडा, प्राध्यापिका, मानव शास्त्र विभाग, कोल्हन विश्वविद्यालय ने अपनी बात रखते हुए आदिवासी समाज और संस्कृति के सार्थक अर्थो पर प्रकाश डाला कि हम सही संदर्भ में इसे समझ नहीं पाते हैं । गहराई से इसके अर्थ और आयाम को नहीं समझ पाना ही कई समस्याओं का कारण है ।हमारे आदिवासी समाज में जो पूजा पद्धति है ,जो व्यवस्थाएं हैं ,उनका भी एक सार्थक अर्थ और महत्व है ,जिसे हमें सही संदर्भ में समझना होगा। तभी हम झारखंड के आदिवासी महिलाओं के स्थिति और संदर्भों पर संवेदनशील होकर बातें कर पाएंगे।
डॉक्टर नितिशा खालको ,प्राध्यापिका हिंदी विभाग, बीएसके कॉलेज, मैथन, विनोबा भावे विश्वविद्यालय ने अपनी बातों को रखते हुए बताया कि हमारे आसपास से घटित के घटनाएं जो की किताब भी ज्ञान से अलग है हमें सोचने समझने का एक नया संदर्भ देती हैं। उन्होंने कुछ घटनाओं का इस संबंध में जिक्र किया जो कि काफी मर्माहत करने वाली थी। उन्होंने बताया कि पुरुष सत्ता किस प्रकार महिलाओं की मानसिकता को भी निर्धारित करता है ।यह केकड़ा वाला अवधारणा दे देता है कि महिलाएं ही महिलाओं पर अत्याचार करती है ।यह सब एक उपमा है जो की नारी को बेचारगी की सीमा में कैद रखना चाहती है।
डॉक्टर शालिनी साबू, प्राध्यापिका इंस्टिट्यूट ऑफ़ लीगल स्टडीज, रांची विश्वविद्यालय ने अपनी बातों को कानूनी परिपेक्ष में प्रस्तुत करने की कोशिश की जहां महिला अधिकारों के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ने पड़ी है । अभी भी आजाद भारत के फैसला यहां तक की सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले में हाथ डालने से बचता रहा है। और वह संसद के ऊपर डालकर एक मौन धारण कर लेता है। उन्होंने बताया कि अधिकतर जो महिलाओं को लेकर भेदभाव या फिर सामाजिक अत्याचार होते हैं ,उसका कारण संपत्ति विवाद है ,जो कि जमीन से बंधे हुए हैं । कृषि और खनन जमीन पर केंद्रित रहता है और जमीन किसी दूसरे के हाथ में न जाए इसके लिए अनेक महिला उत्पीड़न और अत्याचार झेलती हैं।कई कुप्रथा और रीति-रिवाज की जड़ों में यह है।
इन सब चर्चाओं के बाद द्वितीय सत्र की शुरुआत रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों से हुआ ।जिसमें महिला अधिकारों पर केंद्रित गीत और नृत्य प्रस्तुत किए गए गए। …दीवारें ऊंची है गलियां है तंग ….आजाद है रहना मुझे ! बहुत ही सार्थक और मनोरंजन कार्यक्रम विश्वविद्यालय के छात्राओं के द्वारा प्रस्तुत किए गए ।
सेमिनार की सचिव और इतिहास विभाग की सहायक प्राद्यपिक अमिता कुमारी ने पिछले दो दिनों में सेमिनार में हुए गतिविधियों से सभी को परिचित कराई।
इसके बाद पैनल डिस्कशन के तौर पर हिंदी साहित्य के जाने-मेरी कवित्री निर्मला पुतुल और कुलपति प्रो बिमल प्रसाद सिंह की उपस्थिति में जाने-माने अर्थशास्त्री दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक और रांची विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर प्रो.जीन ड्रेजे द्वारा विचारों को प्रस्तुत किया गया ।
डॉक्टर निर्मला पुतुल ने अपनी बातों को रखते हुए संवैधानिक मूल्यों की चर्चा की। आदिवासी समाज के संदर्भ में कहां उनका हनन हो रहा है ,इस पर विचार करते हुए अपने अनुभव को साझा किया ।आज भी कुछ क्षेत्रों में हाथियों के डर से आदिमासी महिलाओं को पेड़ पर बच्चे जनने पड़ते हैं ।उनके लिए कोई स्वास्थ्य चिकित्सा व्यवस्था अभी भी उपलब्ध नहीं है । यह आधुनिक समाज के लिए एक बहुत ही चिंतनीय पहलू है।
प्रोफेसर जीन ड्रेजे द्वारा अपनी बातों को रखते हुए इस तरह के आयोजनों के प्रशंसा करते हुए बताया कि विश्वविद्यालय के आयाम के लिए यह बहुत ही जरूरी आयोजन है, जो कि सार्थक संवाद, संबंध और चिंतन को हमारे सामने रखते हैं। यह चिंतन के नए धरातल प्रस्तुत करते हैं। विश्वविद्यालय कोई कोचिंग संस्था नहीं है, जो परीक्षा पास करने पर केंद्रित है। यहां हमें सांस्कृतिक और मानवीय मूल्यों के व्यापक संदर्भों से परिचय प्राप्त होते हैं। अत जीवन जीने की कला यहां हमें प्राप्त होती है ।और मानवीय संवेदनशीलता का विकास होता है।
उन्होंने विषय के संदर्भ में आदिवासी समाज में को -ऑपरेशन और कंपटीशन के विशेष आयाम की चर्चा की। सहयोग और प्रतियोगिता की एक बिल्कुल ही नई कल्पना आदिवासियों के पास है, जिसे सभी समाज बहुत कुछ जान और सीख सकते हैं। अन्य समाजों की तुलना में झारखंडी महिला आदिवासी समाज को निश्चित तौर पर जो स्वतंत्रता प्राप्त है वह उनकी अपनी परंपरा की देन है। जो की प्राकृतिक के साथ सहचार्य से प्राप्त हुई है ।
समापन समारोह में कुलपति प्रो. बिमल प्रसाद सिंह ने झारखंड सरकार के उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग को आभार व्यक्त करते हुए कहा कि महिला संवेदनशीलता पर इस तरह के कार्यक्रम अब निरंतर आयोजित होते रहेंगे। उन्होंने कहा कि शिक्षा के माध्यम से ही हम समाज की कुरीतियों को समाप्त कर सकते हैं। कुलपति ने यह भी कहा कि यह सेमिनार अत्यंत सार्थक रहा है, और विश्वविद्यालय का प्रयास रहेगा कि सेमिनार के परिणामों को नीति निर्माताओं तक पहुँचाया जाए।
प्रो. बिमल प्रसाद सिंह ने आयोजन समिति सहित सभी को सफल आयोजन के लिए बधाई दी। कार्यक्रम के समापन पर स्नातकोत्तर वाणिज्य विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. बिनोद मुर्मू और सेमिनार के संयुक्त सचिव डॉ. बिनोद मुर्मू ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।
इसके बाद, राष्ट्रीय महिला दिवस पर आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं में विजेता छात्र-छात्राओं को पुरस्कार प्रदान किए गए। मंच संचालन राजनीति विज्ञान की शोध छात्रा स्निग्धा हांसदा और वैशाली बरियार ने किया। कार्यक्रम के आयोजन में आयोजन मंडली समेत स्नातकोत्तर विभाग के छात्र-छात्रओं का भूमिका महत्वपूर्ण रहा।
सोविनियर का किया गया विमोचन-
इस संगोष्ठी में एक विशेष सोविनियर का विमोचन किया गया, जिसमें झारखंड राज्य के राज्यपाल और कुलाधिपति संतोष कुमार गंगवार, विधानसभा अध्यक्ष रविंद्रनाथ महतो, झारखंड के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. सुदिव्य कुमार सोनू, विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बिमल प्रसाद सिंह, सेमिनार के समन्वयक डॉ. अजय सिन्हा और आयोजन सचिव अमिता कुमारी के संदेशों को शामिल किया गया है। सोविनियर में इन प्रमुख व्यक्तित्वों के संदेशों के साथ ही संगोष्ठी में भाग लेने वाले कुल 57 शोधार्थियों के शोध आलेखों को भी स्थान दिया गया।
यह सोविनियर झारखंड राज्य की महिलाओं के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक आयामों पर किए गए शोधों का संग्रह है। इसमें प्रत्येक शोध पत्र के सारांश को शामिल किया गया है, जिससे महिला सशक्तिकरण और उनके अधिकारों के संदर्भ में किए गए महत्वपूर्ण अनुसंधानों का सार स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया गया है। इस संगोष्ठी में प्रस्तुत शोध आलेखों ने न केवल झारखंड की महिलाओं की स्थिति को उजागर किया, बल्कि समाज में उनके योगदान को भी महत्वपूर्ण तरीके से दिखाया। यह आयोजन महिलाओं के मुद्दों पर जागरूकता फैलाने और उनकी स्थिति को सशक्त बनाने की दिशा में एक अहम कदम साबित हुआ।
समापन समारोह में विद्यार्थियों को पुरस्कृत किया गया:
अंतरास्ट्रीय महिला दिवस पर विश्विद्यालय में विभिन्न स्नातकोत्तर विभाग के छात्रों के बीच आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओ के विजेता छात्रों को भी इस सेमिनार में पृस्कारित किया गया।
संवाददाता: आलोक रंजन