देवघर (शहर परिक्रमा)

एमएमडीपी प्रशिक्षण के जरिए हाथीपांव कम करने की बतायी जा रही तकनीक

देवघर जिले में फाइलेरिया नियंत्रण पर लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इसी क्रम में जिले के विभिन्न प्रखंडों के पंचायतों में पेशेंट सपोर्ट ग्रुप (फाइलेरिया से ग्रसित मरीजों का एक समूह) के माध्यम से एमएमडीपी किट के द्वारा अपने प्रभावित अंगों के देखभाल व नियमित रूप से साफ सफाई के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसी क्रम में गुरुवार को देवीपुर प्रखंड के भोजपुर पंचायत स्थित खड़कुआ हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर व शुक्रवार को मोहनपुर प्रखंड के मेदनीडीह एचडब्ल्यूसी पर पेशेंट सपोर्ट ग्रुप (पीएसजी) के सदस्यों के द्वारा मोरबिलिटी मैनेजमेंट एंड डिसएबिलिटी प्रीवेंस (एमएमडीपी) की ट्रेनिंग दी गयी। इस दौरान फाइलेरिया मरीज रतन पंडित व परमेश्वर नापित के प्रभावित अंगों की साफ— सफाई कर गांव के अन्य फाइलेरिया ग्रसित मरीजों को एमएमडीपी की ट्रेनिंग दी गयी। इस दौरान प्रशिक्षण में मौजूद सभी सदस्यों को फाइलेरिया बीमारी के उपचार व बचाव के बारे में भी जानकारी दी गयी। ज्ञातव्य हो कि आगामी 21 अप्रैल को जिला मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल में दिव्यांगता प्रमाण पत्र के लिए शिविर का आयोजन किया जाएगा। इस शिविर में फाइलेरिया मरीजों के प्रभावित अंगों के अवस्था सह लेवल की जांच कर प्रमाण पत्र निर्गत किए जाएगें। दिव्यांगता सर्टिफिकेट प्राप्त होने पर सामाजिक कल्याण विभाग द्वारा इन्हें आवश्यकतानुसार सहायता राशि प्रदान की जाती है।

फाइलेरिया के मरीजों को मिल रहा है दिव्यांगता प्रमाण पत्र

इस संबंध में सिविल सर्जन डॉ जुगल किशोर चौधरी ने बताया कि फाइलेरिया के मरीजों को झारखंड राज्य में वर्णित मापदंड के अनुसार दिव्यांगता प्रमाण पत्र निर्गत किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जो भी व्यक्ति फाइलेरिया बीमारी से ग्रसित हैं। वे अपने नजदीकी सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में संपर्क कर 21 अप्रैल को जिला सदर अस्पताल, देवघर में लगने वाले विकलांगता शिविर में आकर अपनी दिव्यांगता प्रमाण पत्र बनवा सकते है। उन्होंने कहा कि उक्त दिव्यांगता प्रमाण पत्र को निर्गत कराने में पेशेंट सपोर्ट ग्रुप के सदस्य भी काफी सकारात्मक भूमिका निभा रहे हैं। सिविल सर्जन डॉ जे. के. चौधरी ने कहा कि ऐसे व्यक्ति जो भी फाइलेरिया बीमारी से पीड़ित हैं, वह स्वयं व अपने परिवार के सदस्यों तथा अपने पास पड़ोस के लोगों को भी बीमारी के उपचार व बचाव हेतु जागरूक करें।

एमएमडीपी से फाइलेरिया के एक्यूट अटैक में आती है कमी

इस बाबत जिला भीबीडी कंसल्टेंट डॉ गणेश कुमार यादव ने कहा कि फाइलेरिया एक लाइलाज बीमारी है। इसके रोकथाम के लिए सरकार द्वारा पांच स्ट्रेटजी पर कार्य किया जा रहा है। जिसमें मुख्यतः दो रणनीति प्रमुख है:- एक एमएमडीपी किट का प्रशिक्षण व वितरण, वहीं दूसरा वर्ष में एक बार चलाए जाने वाले एमडीए अभियान के दौरान फाइलेरिया रोधी दवाओं का सेवन है। डॉ गणेश ने बताया कि एमएमडीपी प्रशिक्षण से काफी हद तक हाथीपांव के सूजन वॉइस से होने वाले दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है। इसमें फाइलेरिया से ग्रसित व्यक्ति सामान्य एवं साफ पानी व साबुन, सूती तौलिया एवं डेटाॅल के माध्यम से अपने प्रभावित अंग की उपर से नीचे की तरफ सफाई करते हैं। इसके बाद कॉटन तौलिए के माध्यम से हल्के हाथों से थपथपा कर पोछकर उस पर आवश्यकतानुसार एंटीसेप्टिक क्रीम लगाते हैं। इसके अलावे एमएमडीपी प्रशिक्षण के दौरान कुछ व्यायाम भी बताए जाते हैं, जिनके माध्यम से रोगी के एक्यूट अटैक की तीव्रता और ड्यूरेशन में कमी आती है। इसके अलावा फाइलेरिया नियंत्रण हेतु तीन अन्य रणनीतियों यथा तीसरा फाइलेरिया रोग को फ़ैलाने वाले वेक्टर पर नियंत्रण के तरीके अपनाने, चौथा जन समुदाय एवं जनप्रतिनिधि आदि के साथ समाज के विशिष्ट लोगों के द्वारा आईपीसी सह जन जागरूकता कार्यक्रम चलाने तथा पांचवां व अंतिम रणनीति नवाचार का प्रयोग कर फाइलेरिया बीमारी के रोकथाम के सार्थक प्रयास किये जा रहे हैं। साथ ही हाइड्रोसील रोगियों का ऑपरेशन कर फाइलेरिया बीमारी पर नियंत्रण के प्रयास किये जा रहे हैं।

माइक्रोफाइलेरिया सर्वे के दौरान धनात्मक आए रोगियों का पुनः छ: महीने पर जांच व उपचार का फॉलोअप

इस संबंध में जिला भीबीडी नियंत्रण पदाधिकारी डॉ अभय कुमार यादव ने बताया कि विगत वर्षों के दौरान रात्रि रक्त पट्ट संग्रह में पाए गए माइक्रोफाइलेरिया धनात्मक रोगियों का प्रत्येक छः माह पर पुनः जांच कर उनका पूर्ण उपचार किया जा रहा है। यह उपचार तब तक चलता है जब तक की उसके शरीर में माइक्रोफाइलेरिया का परिणाम ऋणात्मक नहीं आ जाए। इस प्रकार से फाइलेरिया से ग्रसित होने वाले नए रोगियों की संख्या में कमी लाने का प्रयास किया जा रहा है।

फाइलेरिया बीमारी का लक्षण दिखने में कम से कम 10 से 15 वर्षों का समय लग जाता

जिला भीबीडी पदाधिकारी डॉ अभय कुमार यादव ने बताया कि फाइलेरिया बीमारी का कोई उपचार नहीं है। अगर कोई व्यक्ति को फाइलेरिया बीमारी होती है। तो उसके लक्षण दिखने में कम से कम 10 से 15 वर्षों का समय लग जाता है। अत: इस बीमारी का बचाव ही एकमात्र उपचार है। उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार फाइलेरिया बीमारी दुनिया की दूसरी सबसे भयंकर कुरुपता एवं स्थायी दिव्यांगता लाने वाली बीमारी है। उन्होंने कहा कि फाइलेरिया बीमारी के उन्मूलन और आमजनों को जागरूक करने में पीएसजी के सदस्यों द्वारा अहम भूमिका निभाई जा रही है। जो काफी सराहनीय है।

कार्यक्रम के दौरान सीफार (सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च – सीएफएआर) संस्था ने तकनीकी सहयोग प्रदान किया। एमएमडीपी ट्रेनिंग के दौरान सीफार के प्रोजेक्ट एसोसिएट विकास चौहान, यदुनंदन मंडल और फाइलेरिया मरीज भूदेव पांडेय, कामदेव पंडित, उर्मिला देवी, विराज देवी, शंकुतला देवी, अमली देवी, सुनिता देवी, आनंदी देवी, विकास कुमार सिंह,कार्तिक दास, यशोदा देवी, सुमित्रा देवी और जायनाथ राणा समेत कई लोग मौजूद थे। इस दौरान प्रखंड स्तर के एमटीएस, एसआई, एसडब्ल्यू एवं एमपीडब्ल्यू के साथ ग्रामीण स्तर पर सहिया दीदी व पीएसजी ग्रुप के सदस्यों, ग्रामीणों आदि का भी सराहनीय सहयोग रहा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *