अंतर्राष्ट्रीय

18 मई: अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस

अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस प्रत्येक वर्ष 18 मई को मनाया जाता है। संग्रहालय में हमारे पूर्वजों की अनमोल यादों को संजोकर रखा जाता है। यह दिवस विश्वभर में संग्रहालयों की भूमिका के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए प्रतिवर्ष मनाया जाता है। लोग तो चले जाते हैं, लेकिन उनकी यादें हमेशा बनी रहती हैं। यह यादें भी कई तरह से संजोकर रखी जाती हैं। हमारे पूर्वजों ने अपनी यादों को सुन्दर तरीक़े से संजोकर रखा, जिससे कि हम भी उनके बारे में जान सकें। ऐसी कई चीज़ें हैं, जो हमारे पूर्वज तो हमारे लिए रख कर गए। किताबें, पाण्डुलिपियाँ, रत्न, चित्र, शिलाचित्र और अन्य सामानों के रूप में तमाम तरह की वस्तुएं संग्रहालयों में हमारे पूर्वजों की यादों को ज़िंदा रखे हुई हैं। हर देश की संस्कृति को समझने में कई वस्तुएं विशेष योगदान निभाती हैं, जिन्हें संग्रहालयों में सुरक्षित रखा जाता है। उसे नुक़सान न पहुंचे इसके लिए कई संग्रहालय बना दिये गए। जो हमें अपने पूर्वजों को याद रखने में मदद करते हैं। संग्रहालयों की विशेषता और उनके महत्व को समझते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 1983 में 18 मई को अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया। इसका उद्देश्य आम जनता में संग्रहालयों के प्रति जागरुकता फैलाना और उन्हें संग्रहालयों में जाकर अपने इतिहास को जानने के प्रति जागरुक बनाना है। यह दिवस विश्वभर में संग्रहालयों की भूमिका के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए प्रतिवर्ष मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय परिषद के अनुसार, संग्रहालय में ऐसी अनेक चीज़ें सुरक्षित रखी जाती हैं, जो मानव सभ्यता की याद दिलाती हैं। संग्रहालयों में रखी गई वस्तुएं प्रकृति और सांस्कृतिक धरोहरों को प्रदर्शित करती हैं। इस दिवस का उद्देश्य विकासशील समाज में संग्रहालयों की भूमिका के प्रति जन-जागरूकता को बढ़ाना है और यह कार्यक्रम विश्व में काफ़ी समय से मनाया जा रहा है।

भारतीय संग्रहालय, जिसे पहले कलकत्ता का इंपीरियल संग्रहालय कहा जाता था, भारत के पश्चिम बंगाल के मध्य कोलकाता में एक भव्य संग्रहालय है। यह दुनिया का नौवां सबसे पुराना संग्रहालय है और संग्रह के आकार के हिसाब से यह एशिया का सबसे पुराना और साथ ही सबसे बड़ा संग्रहालय है । इसमें प्राचीन वस्तुओं, कवच और आभूषणों, जीवाश्मों, कंकालों, ममियों और मुगल चित्रों का दुर्लभ संग्रह है । इसकी स्थापना एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल ने 1814 में भारत के कोलकाता में की थी। संस्थापक क्यूरेटर डेनिश वनस्पतिशास्त्री नाथनियल वालिच थे ।

pradip singh Deo
लेखक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव