आम, तेरे अनेक नाम
आम नाम का प्रारंभ में ही कह देना उचित समझता हूँ कि में आम का शत नाम नहीं जानता हूँ, पर आम का है सैंकड़ों वाम। शायद कोई आम विशेषज्ञ भी एक साथ सभी नाम नहीं जानते है। स्थान, काल, परिवेश की भिन्नता के कारण आम का सभी जाति के नाम जानना असम्भव है। आल इंडिया फ्रुट इम्प्रूवमेंट प्रोजेक्ट से से प्रकाशित एक सूचि में ९९८ प्रकार के आम का उल्लेख है। अतः भारत में करीब 1 में करीबू एक हजार किस्म के आम पाये जाते हैं, जो भी हो, यही हमारा गौरव है कि स्वाद, गंध-वर्णयुक्त फलों का राजा, आम मुख्य रूप से भारतीय फल है। विदेशों में आम ऑग का परिचय देते समय लोग भारतीय फूलों का राजा कहते है। विज्ञान की परिभाषा में भी आग को मंगीफेरा है। तमिल भाषा में आम कहता है। भाषाविदों के मता को ‘मेनके’ कहता है। मतानुसार, तमिल राज ‘मेनके’ से मलयशिया में मयानगे’ एवं पर्तुगिज में मेगा शब्द की उत्पत्ति में मंगा से “मैंगो’ शब्द का संसार में आम के सदृश इतने प्रचलन हुआ। ससार म मनोहारी नाम और किसी फल का नहीं है। कुछ उल्लेखनीय करते हैं, जैसे- हिमसागर, सफेदा, कालापहाड़, गुलाब खस, नवाब वाब पसंद, वेगम पसंद, रानि पसंद किसन भोग, गोपाल भोग, इमान पसंद, जाफरनू नीलम, मोहनठाकुर, शुकतारा, दुखवण रेखा, दशेरी, जरदाल लालमाण, सुकुल, प्यारा फुलि, आग्रापाली, रस की गुलिस्ता, बैगन फुली इत्यादि ।
स्वीकार करता हूँ लंगड़ा और फजली तुलनात्मक रूप से अधिक लोकलिये है मगर इन दोनों के नाम श्रुति सुखकर नहीं या लंगड़ा का जन्मस्थान है काशी किंवदन्ति, वहाँ एक लंगड़ा फकिर के पेड़ में यह प्रथम पाया गया था। लोग इसे लंगड़ा फकिर का आम कहता भा। फकीर के बाद लंगड़ा अपना नाम और असाधारण स्वाद लेकर रह गया। फजली का जन्मस्थल मालदह है। यह आम आकार में बहुत बड़ा होता है। आम बाजार में जब करीब स समाप्त होने लगता है तब भी फजली बिंवि नाम का एक महिला के बगीचे में समय से इसका नाम फुजली हो गया। विभिन्न आम के नाम के पीछे अनेक कथा-क वा – कहानी है। कुछ ऐसे आम है जिसका नाम जन्म स्थान के नाम से चिन्हित हैं। जैसे लखनों का दशेरी गांव का आम है दुरी। आम भारत का. जातीय फल है। संस्कृत काव्य साहित्य में भी आम का वर्णण मिलता है। जैसे जैसे आम, आम्रताम्र, सहकार, च्युत, रसाल, आदि। वेद से लेकर रामायण, महाभारत सर्वत्र आम का उल्लेख है। हिन्दुओं के पूजा-पार्वण मामालिक घट के ऊपर आम्रपल्लुव लव का प्रभा आज भी प्रचलित है। पहले ही कहा गया है, आम्र जगत में संकड़ों भिन्न-भिन्न जाति का आम आमू है जिसका संटीक संख्या कहना मुश्किल है। जैसे मुम्बई का अल्फांसो नामक आम सुपरिचित है। तुलना तुलना में में कम परिचित है पतनम ज्योति, अप्पास, कागड़ी, हापुस, मगर में सारे एक ही आम अल्फान्सों का भिन्न-भिन्न नाम है।
इसी प्रकार सेब के सदृश दक्षिण भारत का आम रूमानि के संग ‘रुमालि’ का तुलना नहीं किया जा सकता। आम नाम के अन्त में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के संबध में कुछ कहना चाहूंगा कि कवि आम में अनुरक्त थे। वृद्धावस्था में भी कवि गर्मी के दिनों में न्ये भोजन वस्तु की तुलना में आम के प्रति अधिक आसक्त थे। एक और आम सेने के’ स्मृति कथा डा. सुकुमार सेने के भक्त डा. में मिलता है-‘ वो दिन 1932 का जुलाई जुन का महीना या शाम के समय आशुतोष होल का शोभा कविगुरु के उपस्थिति से और अधिक बढ़ गया था। जिसे स्मरण कर आज भी मन प्रसन्नता से भर जाता है। ऐसी घटना न कभी हुई न कभी होगी, हमलोग जितने लोग में प्रचुर मात्रा में केक, संदेश, मिठाई चाय बगैरा खाए- पीएं मगर गुरुदेव कुछ नहीं खाएं। बाद में आचार्य सुनीति कुमार चटर्जी के अनेक अनुरोध से एक लंगडा आम खाए थे। आज भी आम प्रचुर मात्रा में पाए जाते है, अत: आइए प्राण भर कर खुशी से आम खाते रहे।
