दुमका: विश्वविद्यालय में हुआ संगोष्ठी का आयोजन
दुमका: बुधवार को सिदो कान्हु मुर्मू विश्विविद्यालय के कुलपति प्रो बिमल प्रसाद सिंह की अध्यक्षता में एक संगोष्ठी का आयोजन कुलपति कांफ्रेंस कक्ष में किया गया जिसमें आईसीएसएसआर, नई दिल्ली द्वारा स्नातकोत्तर राजनीति विज्ञान विभाग को मिले प्रोजेक्ट जिसका विषय “कंटीन्युटी एंड चेंज इन संताल कल्चर” है उसके अद्ध्यन के विभिन्न आयामों पर चर्चा की गई।
इस संगोष्ठी के मुख्य अतिथि डॉ धूनी सोरेन थे। संगोष्ठी की शुरुआत में कुलपति प्रो सिंह ने डॉ धूनी सोरेन को पुष्प गुच्छ और अंग वस्त्र प्रदान कर उनका स्वागत किया और कहा की डॉ सोरेन संताल संस्कृति के निरंतरता और बदलाव के जीवित उदाहरण है। राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष सह डीन डॉ जैनेंद्र यादव ने विभाग की तरफ़ से कुलपति का पुष्प गुच्छ और अंग वस्त्र देकर स्वागत किया। इस प्रोजेक्ट के डायरेक्टर डॉ अजय सिन्हा ने इस प्रोजेक्ट के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला और इस अद्ध्यन के महत्व और इसका राजनीति पर पड़ने वाले प्रभाव को ढूँढने की बात कही।
डॉ धूनी सोरेन ने संताल संस्कृति के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला और उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया की संस्कृति को बचाये रखने के लिए अपनी भाषा को बचा के रखना आवश्यक है। उन्होंने इंग्लैंड और अमेरिका जैसे देशों में रहने वाले संतालों के जीवन के बारे में विस्तार से बताया एवं उन में आये बदलाव की चर्चा की। उन्होंने बताया कि कैसे वे अपनी भाषा को विदेश में भी जीवित रखें हुए हैं।
डॉ बिजय कुमार ने इस विषय पर अद्ध्यन के लिए शहरी और ग्रामीण , अमीर और ग़रीब, पढ़े लिखे और निरक्षर जैसे आयामों के आधार संस्कृति में आये बदलाव पर बल दिया, डॉ सुजीत सोरेन ने संस्कृति के भौतिक और दार्शनिक पक्षों पर अपना विचार व्यक्त करते हुए इस शोध प्रोजेक्ट में इन आयामों पर विचार करने की सलाह दी। प्रो अमिता कुमारी ने विस्थापन से आये बदलाव की चर्चा की और बताया की सिजनल विस्थापन का भी संस्कृति पर प्रभाव पड़ता है। प्रो अमिता ने जंगलों की लगातार हो रही कटाई को भी संताल संस्कृति में बदलाव का कारण बताया।
डॉ सुमित्रा हेमब्रन ने वैस्वीकरण और बाज़ार का संस्कृति के असर पर प्रकाश डाला। डॉ निर्मल मुर्मू ने शिक्षा के असर पर प्रकाश डाला और उससे आये परिवर्तन की चर्चा की। डॉ नीरज बासुकी ने इस बात पर ज़ोर दिया की संताल संस्कृति ने अन्य संस्कृतियों को भी प्रभावित किया है। इनके अलावे डॉ स्नेहलता मुर्मू, डॉ ईश्वर मरण्डी, डॉ मेरी मार्ग्रेट टुडू, डॉ अमित मुर्मू, डॉ होलिका, डॉ स्वेता मराण्डी, डॉ. दीपक कोठरीवाल, शोध छात्र दुर्गा साहा ने भी इस विषय पर अपने विचार प्रगट किए।
मंच संचालन प्रो अमिता कुमारी ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ इंद्रनिल मंडल ने किया।
रिपोर्ट- आलोक रंजन Alok Ranjan