देवघर (शहर परिक्रमा)

साहित्यकार श्यामाचरण दुबे जयंती आज

आज अपने वतन के यशस्वी साहित्यकार श्यामाचरण दुबे की जयंती है। आज ही के दिन 25 जुलाई, 1922 को उनका जन्म हुआ था। मौके पर स्थानीय विवेकानंद शैक्षणिक, सांस्कृतिक एवं क्रीड़ा संस्थान के केंद्रीय अध्यक्ष डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा- श्यामाचरण दुबे भारतीय समाजशास्त्री एवं साहित्यकार थे। उन्हें एक कुशल प्रशासक और विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के सलाहकार के रूप में भी याद किया जाता है। वे साहसिक और मानवीय गुणों से संपन्न व्यक्ति थे। ‘मध्य प्रदेश उच्च शिक्षा अनुदान आयोग’ के सदस्य रहकर उन्होंने विश्वविद्यालय के स्तर पर पाठ्यक्रमों का आधुनिकीकरण करवाया। वर्ष 1993 में उन्हें उनकी कृति ‘परंपरा और इतिहास बोध’ के लिए भारतीय ज्ञानपीठ ने ‘मूर्ति देवी पुरस्कार’ से सम्मानित किया था। समाजशास्त्र और मानव-विकास के क्षेत्र में उनके शोधों का महत्वपूर्ण स्थान है।

श्यामाचरण दुबे

उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में उन्होंने अध्यापन कार्य किया। उनमें अनेक महत्वपूर्ण संस्थानों के महत्वपूर्ण गरिमा मय पदों को सुशोभित किया। स्वतंत्र भारत के सर्वोच्च समाज-विज्ञानियों में उनकी गणना होती है। उनके लेखन में समाज, संस्कृति और जीवन के ज्वलंत प्रश्नों को उठाया गया है। ऐसे विषयों पर उनकी तार्किक स्पष्टता साफ दिखाई देती है। उनके विश्लेषण और स्थापनाएं उच्च स्तरीय एवं महत्वपूर्ण है। वे अपने विषय की मर्मज्ञ विद्वान थे। उनके लेखन में जीवन के वास्तविक यथार्थ का सच प्रस्तुतीकरण पाठक को आकर्षित करता है। भारत की जनजातियां तथा ग्रामीण समुदाय पर केंद्रित उनके लेख विद्वानों और शिक्षित समाज में समादृत होते रहे हैं। भारतवर्ष में उनकी विद्वता को सदा सम्मान मिलता रहा। उनकी भाषा और शैली पर उनके व्यक्तित्व की स्पष्ट छाप है। उनके विचारों की तरह ही उनकी भाषा भी स्पष्ट और सहज है। तार्किकता का प्रभाव सर्वत्र देखा जा सकता है। एक के बाद एक बात क्रमिक रूप से आती है। उनके तर्क अकाट्य होते हैं। वे अपनी बात सहजता पूर्वक, छोटे-छोटे वाक्य में आरंभ करते हैं। कभी-कभी बात पर बल देने के लिए वाक्यों का अधूरा ही छोड़ देते हैं। जिससे कि पाठक का ध्यान आकर्षित हो। अपने विषय को स्पष्ट करने के लिए दुबे जी प्रश्न उठाते हैं और फिर अगले वाक्यों में उसका समाधान भी कर देते हैं। उनकी अभिव्यक्ति शैली में आप और हम से युक्त हैं। प्रश्नोत्तर शैली से वह पाठक को बांधे रहते हैं। उनकी भाषा सहज सरल अडंबर हीन तथा शैली प्रवाह पूर्ण, जोशीली एवं निरंतरता से युक्त है। वे एक सशक्त गद्यकार थे। उनका निधन सन 1996 में हुआ। वे मरकर भी अमर हैं।

लेखक: डॉ प्रदीप कुमार सिंह देव