भारत में रसायन विज्ञान के जनक प्रफुल्ल चंद्र राय की जयंती आज
आज रसायनज्ञ, उद्यमी, शिक्षक आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय की जयंती है। आज ही के दिन 2 अगस्त, 1861 में जैसोर ज़िले के ररौली गांव में उनका जन्म हुआ था।
आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय भारत में रसायन विज्ञान के जनक माने जाते हैं। वे एक सादगीपसंद तथा देशभक्त वैज्ञानिक थे, जिन्होंने रसायन प्रौद्योगिकी में देश के स्वावलंबन के लिए अप्रतिम प्रयास किए। उनका जन्म 2 अगस्त, 1861 ई. में जैसोर ज़िले के ररौली गांव में हुआ था। उनकी अध्ययन में बड़ी रुचि थी। वे बारह साल की उम्र में ही चार बजे सुबह उठ जाते थे। उन्हें ग्राम्य जीवन बहुत आकर्षित करता था। वे अक्सर ग्रामीणों से उनका सुख-दु:ख, हालचाल लिया करते थे। वे अपनी माँ के भंडारे से अच्छी अच्छी खाद्यसामग्री ले जाकर ग्रामीणों में बांट देते थे। सन् 1922 के बंगाल के अकाल के दौरान राय की भूमिका अविस्मरणीय है। ‘मैनचेस्टर गार्डियन’ के एक संवाददाता ने लिखा था; “इन परिस्थितियों में रसायन विज्ञान के एक प्रोफेसर पी. सी. राय सामने आए और उन्होंने सरकार की चूक को सुधारने के लिए देशवासियों का आह्वान किया। उनके इस आह्वान को काफ़ी उत्साहजनक प्रतिसाद मिला। बंगाल की जनता ने एक महीने में ही तीन लाख रूपए की मदद की। धनाढ्य परिवार की महिलाओं ने सिल्क के वस्त्र एवं गहने तक दान कर दिए। सैकड़ों युवाओं ने गाँवों में लोगों को सहायता सामग्री वितरित की। डॉ. राय की अपील का इतना उत्साहजनक प्रत्युत्तर मिलने का एक कारण तो बंगाल की जनता के मन में मौजूद विदेशी सरकार को धिक्कारने की इच्छा थी। इसका आंशिक कारण पीड़ितों के प्रति उपजी स्वाभाविक सहानुभूति थी, पर काफ़ी हद तक उसका कारण पी. सी. राय का असाधारण व्यक्तित्व एवं उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा थी। वह अच्छे शिक्षक के साथ एक सफल संगठनकर्ता भी थे। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भी सक्रिय भागीदारी निभाई। गोपाल कृष्ण गोखले से लेकर महात्मा गाँधी तक से उनका मिलना जुलना था। कलकत्ता में गांधी जी की पहली सभा कराने का श्रेय डॉ. राय को ही जाता है। राय एक सच्चे देशभक्त थे उनका कहना था;- “विज्ञान प्रतीक्षा कर सकता है, पर स्वराज नहीं”। वह स्वतंत्रता आन्दोलन में एक सक्रिय भागीदार थे। उन्होंने असहयोग आन्दोलन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के रचनात्मक कार्यों में मुक्तहस्त आर्थिक सहायता दी। उन्होंने अपने एक भाषण में कहा था- “मैं रसायनशाला का प्राणी हूँ। मगर ऐसे भी मौके आते हैं जब वक्त का तकाज़ा होता है कि टेस्ट-ट्यूब छोड़कर देश की पुकार सुनी जाए”। उनकी मृत्यु 16 जून, 1944 को हुई।