राष्ट्रीय

आलेख: विकराल होती खाद्य चुनौती


विजय गर्ग

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष यानी यूएनएफपीए की ‘स्टेट आफ वर्ल्ड पापुलेशन रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है। फिलहाल जिस तेजी से विश्व की आबादी बढ़ रही है, उसके हिसाब से इसका दबाव प्राकृतिक संसाधनों पर स्पष्ट रूप से पड़ रहा है। इतना ही नहीं, विश्व समुदाय के समक्ष पलायन भी एक समस्या के रूप में उभर रहा है, क्योंकि बढ़ती आबादी के चलते लोग बुनियादी सुविधाओं के लिए दूसरे देशों में पनाह लेने को मजबूर हैं। आज पूरी दुनिया के लिए बढ़ती आबादी और सिकुड़ते संसाधन गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि जनसंख्या के अनुपात में संसाधनों की वृद्धि सीमित है। यही वजह है कि करीब आठ अरब की आबादी का बोझ ढोती यह पृथ्वी जनसंख्या से पैदा हुई अनेक समस्याओं के निदान की बाट जोह रही है। पूरी दुनिया की आबादी में अकेले एशिया की हिस्सेदारी 61 फीसद है। यही भारत के लिए दुनिया की महाशक्ति बनने में सबसे बड़ी बाधा है।
फिलहाल भारत की जनसंख्या विश्व जनसंख्या का 18 फीसद है। भूभाग के लिहाज से हमारे पास 2.5 फीसद जमीन और 4 फीसद जल संसाधन है। ऐसे में तेजी से बढ़ती जनसंख्या देश की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं की जननी बनकर देश के सामने खतरे की घंटी हो सकती है। आज जनसंख्या वृद्धि देश की हर समस्या का मूल कारण बनती जा रही है। गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, अशिक्षा, लचर स्वास्थ्य सेवाएं, अपराध, स्वच्छ पानी की कमी, इन सबके पीछे भी जनसंख्या वृद्धि एक बड़ा कारण है। इतना ही नहीं, देश में जमीन के कुल साठ फीसद हिस्से पर खेती होने के बावजूद करीब बीस करोड़ लोग भुखमरी का शिकार हैं। वहीं दूसरी तरफ, जिस रफ्तार से जनसंख्या बढ़ रही है, इतनी बड़ी जनसंख्या का आने वाले समय में पेट कैसे भरा जाए, यह भी एक अहम सवाल है। जलवायु परिवर्तन न केवल आजीविका, पानी की आपूर्ति और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर रहा है, बल्कि खाद्य सुरक्षा के सामने भी चुनौती खड़ी हो रही है। दुनिया के अधिकांश देश आज जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, उनमें से खाद्य सुरक्षा की चुनौती सबसे प्रमुख है।
हालांकि यह प्रश्न कोई नया नहीं है, लेकिन इसे एक नए आयाम से देखने की आवश्यकता है। कृषि योग्य भूमि पर भी अतिक्रमण हो रहा है, इसका रकबा घट रहा है, जबकि खाने वाले लोग बढ़ रहे हैं। कृषि भूमि का अन्य उपयोगों के लिए तेजी से परिवर्तन हो रहा है। किसान कृषि से दूर हो रहे हैं, जिससे भारत में खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा बढ़ सकता है। इतना ही नहीं, कृषि भूमि का हास भारत के सामाजिक-आर्थिक ताने- बाने को भी प्रभावित कर रहा है। हालांकि, इस दौरान सरकार द्वारा बंजर भूमि को कृषि योग्य भूमि में बदलने से जुड़ी कुछ सफल कहानियां भी हैं। बावजूद इसके, यह भी एक तथ्य है कि हमारे देश में खेती योग्य भूमि साल-दर-साल घट रही है।
‘वेस्टलैंड एटलस 2019’ के मुताबिक, पंजाब जैसे कृषिप्रधान राज्य में 14,000 हेक्टेयर और पश्चिम बंगाल में 62,000 हेक्टेयर खेती योग्य भूमि घट गई है। वहीं, सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा सबसे अधिक खतरनाक लग सकता है, जहां हर साल विकास कार्यों के चलते 48,000 हेक्टेयर कृषि भूमि घटती जा रही है। अब गौर करने वाली बात है कि 1992 में, ग्रामीण परिवारों के पास 11.7 करोड़ हेक्टेयर भूमि थी, जो 2013 तक घटकर केवल 9.2 करोड़ हेक्टेयर रह गई है। यानी महज दो दशक के अंतराल में 2.2 करोड़ हेक्टेयर भूमि ग्रामीण परिवारों के हाथ से निकल गई। अगर यही सिलसिला चलता रहा तो कहा जा रहा है कि अगले वर्ष तक भारत में खेती का रकबा आठ करोड़ हेक्टेयर ही रह जाएगा।
जनसंख्या नियंत्रण के लिए देश में कई योजनाएं बनीं, लेकिन वे सफल नहीं हो सकीं। इसके लिए राष्ट्रीय नीति बननी बहुत जरूरी है। बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या देश के विकास को प्रभावित कर रही है। बड़ी जनसंख्या तक योजनाओं का समान रूप से लाभ वितरण संभव नहीं हो पाता, जिसकी वजह से हम गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से दशकों बाद भी उबर नहीं सके हैं। हमारे देश की जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा आज भी गरीबी की चपेट में है। जाहिर है कि अगर आबादी बढ़ती है, तो गरीबों की संख्या में वृद्धि होना स्वाभाविक है। विश्व भूख सूचकांक की 2022 की रपट के मुताबिक, भारत में 16.3 फीसद आबादी कुपोषित है। पांच साल से कम उम्र के 35.5 फीसद बच्चे अविकसित हैं। भारत में 3.3 फीसद बच्चों की पांच साल की उम्र से पहले ही मौत हो जाती है।
खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की ताजा रपट ‘द स्टेट आफ फूड सिक्युरिटी ऐंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड’ के अनुसार दुनिया भर में 80 करोड़ से ज्यादा लोग भुखमरी से जूझ रहे थे। यानी दुनिया का हर दसवां शख्स भूखा है। इतना ही नहीं, रपट के अनुसार अभी भी दुनिया में 31 करोड़ लोग स्वस्थ आहार की पहुंच से बाहर हैं। साफ है, दुनिया भर में तमाम कार्यक्रमों और संयुक्त राष्ट्र की कोशिशों के बावजूद खाद्य असामनता और कुपोषण को अभी तक खत्म नहीं किया जा सका है। खाद्य और कृषि संगठन के मुताबिक, इसका एक बड़ा कारण देशों के बीच संघर्ष, जलवायु परिवर्तन और आर्थिक मंदी है।
बहरहाल, बढ़ती आबादी के कारण ही दुनिया भर में तेल, प्राकृतिक गैसों, कोयला आदि ऊर्जा संसाधनों पर दबाव अत्यधिक बढ़ गया है, जो भविष्य के लिए बड़े खतरे का संकेत है। भले हम तेज विकास को लेकर गर्व करते रहें, पर सच यह है कि दुनिया भर में भुखमरी का गंभीर संकट मंडरा रहा है। अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कहा है कि अकाल और खाद्य समस्या का मुख्य कारण सिर्फ खाद्य पदार्थों का अभाव नहीं, बल्कि लोगों की क्रयशक्ति में कमी इसके पीछे मूल कारण है। वहीं, एक आकलन के अनुसार पूरी दुनिया में 30 फीसद अनाज बर्बाद हो जाता है। किसान भी आबादी के अनुपात में अनाज उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं। महंगाई बढ़ने का यह एक बड़ा कारण है। खैर, समय बदल रहा है और स्थिति भी । ऐसे में दुनिया की बड़ी आबादी को भुखमरी से बाहर निकालने के लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत है।
जनसंख्या नियंत्रण एवं खाद्य उत्पादन में वृद्धि की आवश्यकता केवल भारत के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए एक चिंता का विषय है। इन दोनों समस्याओं के निदान हेतु विश्व स्तर पर अभिनव प्रयास हो रहे हैं। भारत विश्व के उन देशों में है जहां खाद्यान्न की प्रति व्यक्ति उपज बेहद कम हैं। यहां अमीर वर्ग, मध्यवर्ती किसान और व्यापारी ही उपयुक्त भोजन प्राप्त कर पाते हैं। शेष ग्रामीण, मजदूरों, लघु कृषकों, आदिवासियों, मध्यवर्गीय लोगों के समक्ष अन्न की समस्या सुरसा की तरह मुंह फैलाती जा रही है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य शैक्षिक स्तंभकार मलोट