मूर्तिशिल्पकार शंखो चौधरी की पुण्यतिथि आज
शंखो चौधरी भारतीय मूर्तिकार थे, जो भारत के कला परिदृश्य में एक प्रसिद्ध व्यक्ति थे। आज ही के दिन 28 अगस्त, 2006 को उनकी मृत्यु हुई थी। यद्यपि शंखो चौधरी का वास्तविक नाम ‘नर नारायण’ रखा गया था, लेकिन वे अपने घरेलू नाम ‘शंखो’ से अधिक व्यापक रूप से जाने जाते थे। शंखो चौधरी ने प्रसिद्ध मूर्तिकार रामकिंकर बैज से शिक्षा ग्रहण की थी, जिनसे वह पेरिस में मिले थे। शंखों चौधरी के मूर्तिशिल्प के विषयों में महिला आकृति और वन्य जीवन शामिल हैं। उन्होंने मीडिया की एक विस्तृत श्रृंखला में काम किया था। आपने लकड़ी, धातु, टेराकोटा, प्रस्तर का प्रयोग किया। उनकी मूर्तिशिल्प में वक्राकार रूप प्रदान कर उनको जीवंत बनाने की। कोशिश हुई है।
उनका जन्म 25 फ़रवरी, 1916 को संथाल परगना, बिहार में हुआ। वे रामकिंकर बेज के शिष्य थे। उन्होंने 1939 में स्थानक की उपाधि शांति निकेतन से प्राप्त की। 1945 में उन्होंने कलाभवन शांति निकेतन से ललित कला में डिप्लोमा प्राप्त किया एवं धातु की धुलाई का नेपाल पद्धति से अध्ययन किया। वे 1949 से 1970 तक यह बड़ौदा विश्वविद्यालय के मूर्ति कला विभाग के अध्यक्ष थे। उन्होंने टॉयलेट मूर्तिशिल्प में नारी आकृतियों को बैठी हुई मुद्रा में सरलीकृत रूप में प्रस्तुत किया गया था, दो हाथ सिर के पीछे रखे गए थे, इसमें रिक्त स्थान के माध्यम से रिक्तता को प्रदर्शित किया गया था। इस मूर्तिशिल्प में त्रिआयामी प्रभाव के साथ साथ ज्यामितीय प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। मूर्तिशिल्प को नारी आकृति के रूप में बनाया गया था, पर आंख, नाक, कान नहीं अंकित था। पक्षी मूर्तिशिल्प स्टील धातु का बना हुआ था। इसमें छाया प्रकाश का प्रभाव अत्यंत आकर्षक है। उन्हें 1956 में ललित कला अकादमी द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार, 1971 में पद्म श्री पुरस्कार, 1974 में सेंटर एस्कोलर यूनिवर्सिटी, फिलीपींस द्वारा डी. लिट, 1979 में विश्व-भारती विश्वविद्यालय से अबान-गगन पुरस्कार, 1982 में फेलो, ललित कला अकादमी, 1997 में रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट, 1998 – विश्व भारती विश्वविद्यालय द्वारा देसीकोट्टमा, 2000-2002 में कालिदास सम्मान, 2002 में आदित्य बिड़ला कला शिखर पुरस्कार, 2004 में ललित कला अकादमी द्वारा सम्मानित ललित कला रत्न, 2004 में लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड, लीजेंड ऑफ इंडिया से नवाजा गया था।